भाद्रपद महीने की एकादशी को अजा या जया एकादशी कहा जाता है। इस दिन व्रत या उपवास के साथ ही भगवान विष्णु की पूजा करने से अश्वमेध यज्ञ का फल मिलता है। साथ ही इस दिन तुलसी पूजा और उसके दान की भी परंपरा है। जिससे जाने-अनजाने में हुए हर तरह के पाप खत्म हो जाते हैं। इस तिथि को लेकर पंचांग भेद भी है। कई जगह 2 को तो कुछ जगहों पर 3 सितंबर को ये एकादशी व्रत किया जाएगा
इसके नामों का मतलब
इस एकादशी का व्रत करने से मोक्ष मिलता है यानी दोबारा जन्म नहीं लेना पड़ता। इसलिए इसे अजा कहा जाता है। इस व्रत से ही राज हरिशचंद्र की जीत हुई थी और उन्हें अपना राज्य वापस मिल गया था। इसलिए इसे जया एकादशी कहा जाता है।
अजा एकादशी व्रत कथा
श्रीकृष्ण ने अर्जुन को इस एकादशी व्रत के विधि-विधान और महत्व के बारे में बताया था। उन्होंने अर्जुन को बताया कि भाद्रपद महीने में आने वाली इस अजा एकादशी व्रत की कथा को भक्ति भाव के साथ सुनने से ही अश्वमेध यज्ञ का फल मिल जाता है। साथ ही हर तरह के पाप भी खत्म हो जाते हैं।
श्रीकृष्ण कहते हैं कि पौराणिक काल में अयोध्या में श्रीराम के वंशज चक्रवर्ती राजा हरिश्चन्द्र हुए थे। वो सत्यनिष्ठा और ईमानदारी के लिए प्रसिद्ध थे। देवताओं ने उनकी परीक्षा ली। जिससे राजा ने सपने में देखा कि ऋषि विश्ववामित्र को उन्होंने अपना राज्य दान कर दिया है। सुबह सचमुच विश्वामित्र ने उनसे कहा कि तुमने सपने में मुझे अपना राज्य दान दिया। इसके बाद राजा हरिश्चन्द्र ने सत्यनिष्ठ व्रत का पालन करते हुए पूरा राज्य विश्वामित्र को दे दिया।
दान के लिए दक्षिणा चुकाने के लिए राजा हरिश्चन्द्र को पूर्व जन्म के कर्म फल के कारण पत्नी, बेटा और खुद को बेचना पड़ा। हरिश्चन्द्र को एक डोम ने खरीद लिया जो श्मशान में लोगों का दाह संस्कार करवाता था। तब राजा एक चाण्डाल के दास बन गए। उन्होंने कफन लेने का काम किया, लेकिन इस आपत्ति के काम में भी सत्य का साथ नहीं छोड़ा।
जब इस काम को करते हुए कई साल बीत गये तो उन्हें अपने इस नीच कर्म पर बहुत दुख हुआ और इससे मुक्त होने का उपाय खोजने लगे। जब वो इसी चिन्ता में बैठे थे तब गौतम ऋषि वहां पहुंचे। हरिश्चन्द्र ने उन्हें अपना दुख सुनाया।
इससे महर्षि गौतम भी दुखी हुए और उन्होंने राजा से कहा कि भाद्रपद महीने के कृष्णपक्ष की एकादशी का व्रत और रात्रि जागरण करो। इससे सभी पाप खत्म हो जाएंगे। वक्त आने पर राजा ने इस एकादशी का व्रत किया। जिससे उनके पाप खत्म हो गए और उन्होंने अपका मरा हुआ बेटा फिर जिंदा हो गया और उन्हें अपना राज्य भी वापस मिल गया।