ज्येष्ठ महीने के कृष्णपक्ष में नारद जयंती, संकष्टी चतुर्थी, अपरा एकादशी, वट सावित्री और शनि जयंती जैसे बड़े तीज-त्योहार आते हैं। तिथियों की घट-बढ़ के बावजूद ज्येष्ठ महीने का कृष्णपक्ष पूरे 15 दिनों का ही है। जो कि 27 मई से शुरू हुआ और 10 जून को खत्म होगा। ज्येष्ठ कृष्णपक्ष के आखिरी 5 दिनों में लगातार तीज-त्योहार रहेंगे। जो कि 6 जून, रविवार को एकादशी से शुरू होंगे और 10 जून, गुरुवार को अमावस्या पर शनि जयंती के साथ ही पूरे हो जाएंगे। ये 5 दिन व्रत-उपवास, पूजा-पाठ और स्नान-दान के लिहाज से बहुत खास रहेंगे। इन दिनों में किए गए धार्मिक कामों का कई गुना पुण्य मिलेगा।

अचला एकादशी (6 जून, रविवार): ज्येष्ठ महीने के कृष्णपक्ष की इस एकादशी पर भगवान विष्णु के साथ पीपल और तुलसी की भी विशेष पूजा की जाती है। इस दिन व्रत करने से कई यज्ञों का फल मिलता है।

सोम प्रदोष (7 जून, सोमवार): सोमवार शिव पूजा के लिए विशेष माना जाताा है। इस दिन साल का दूसरा प्रदोष व्रत रहेगा। जो कि सोम प्रदोष का शुभ संयोग बना रहा है। इस तिथि पर शिव पूजा और व्रत करने से हर तरह के संकट दूर हो जाते हैं।

शिव चतुर्दशी (8 जून, मंगलवार): हर महीने कृष्णपक्ष की चतुर्दशी तिथि को मासिक शिवरात्रि मनाई जाती है। इस दिन भगवान शिव की विशेष पूजा और व्रत करने से जाने-अनजाने में हुए पाप खत्म हो जाते हैं और हर तरह के दोष दूर होते हैं।

लिंग व्रत (9 जून, बुधवार): इस दिन भी चतुर्दशी तिथि रहेगी। इसलिए नारद पुराण के मुताबिक, इस दिन भगवान शिव की विशेष पूजा के साथ लिंग व्रत किया जाता है। इसमें भोलेनाथ की पूजा शाम को की जाती है। जिसमें आटे का शिवलिंग बनाकर पंचामृत और बिल्वपत्र से विशेष पूजा करते हैं। ऐसा करने से उम्र, एश्वर्य और हर तरह का सुख बढ़ता है।

वट सावित्री और शनि जयंती (10 जून, गुरुवार): ज्येष्ठ महीने की अमावस्या पर वट सावित्री व्रत और शनि जयंती पर्व मनाया जाता है। इस दिन महिलाएं बरगद के पेड़ की पूजा के साथ सत्यवान और सवित्री की पूजा भी करती हैं। जिससे उनका सौभाग्य और पति की उम्र बढ़ती है। इसी दिन शनिदेव का जन्म माना गया है। इसलिए शनि दोष से छुटकारा पाने के लिए इस अमावस्या पर शनिदेव की विशेष पूजा और उनको तेल चढ़ाने की परंपरा है।

 

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