मंगलवार, 1 मार्च को महाशिवरात्रि है। इस दिन शिव जी के मंदिरों में दर्शन करने की विशेष परंपरा है। शिव जी के प्रसिद्ध तीर्थों में उत्तर प्रदेश के काशी (वाराणसी) का महत्वपूर्ण स्थान है। काशी में विश्वनाथ जी के अलावा भी कई और भी पौराणिक महत्व वाले शिव मंदिर हैं। कई मंदिरों का इतिहास सैकड़ों साल पुराने हैं। ऐसा ही एक प्राचीन मंदिर है तिलभांडेश्वर महादेव। इस मंदिर के संबंध में मान्यता है कि हर साल मकर संक्रांति पर यहां स्थित शिवलिंग तिल-तिल करके बढ़ता है। इस कारण इस मंदिर को तिलभांडेश्वर कहा जाता है। मंदिर से जुड़ी कई कथाएं प्रचलित हैं।

तिलभांडेश्वर महादेव मंदिर में शिवरात्रि पर काफी बढ़ी संख्या में शिव भक्त पहुंचेंगे। इस पर्व के अलावा सोमवार और प्रदोष व्रत पर भी भक्त दर्शन के लिए पहुंचते हैं। आमतौर पर यहां भक्त कालसर्प दोष की शांति के लिए भी पूजा करते हैं। मंदिर में कई देवी-देवताओं की प्रतिमाएं स्थापित हैं।

स्वयं प्रकट हुआ है ये शिवलिंग

तिलभांडेश्वर महादेव शिवलिंग के संबंध में यहां मान्यता प्रचलित है कि ये स्वयंभू शिवलिंग है। ये क्षेत्र ऋषि विभांड की तप स्थली था। ऋषि विभांड यहीं पर शिव पूजा करते थे। भगवान ने उनके तप से प्रसन्न होकर वरदान दिया था कि ये शिवलिंग हर साल तिल के बराबर बढ़ता रहेगा। इस शिवलिंग के दर्शन से अश्वमेघ यज्ञ से मिलने वाले पुण्य के बराबर पुण्य फल मिलता है। तिल के बराबर बढ़ते रहने से और ऋषि विभांड के नाम पर इस मंदिर को तिलभांडेश्वर नाम मिला है।

एक अन्य मान्यता के अनुसार पुराने समय में इस क्षेत्र में तिल की खेती होती थी। उस समय किसानों को इस क्षेत्र में ये शिवलिंग दिखाई दिया था। लोगों ने शिवलिंग की पूजा करनी शुरू कर दी। यहां के लोग शिवलिंग पर तिल चढ़ाते थे। इस वजह से इसे तिलभांडेश्वर कहा जाने लगा।

औरंगजेब से जुड़ी है मंदिर की कथाएं

यहां कथा प्रचलित है कि मुगल बादशाह औरंगजेब काशी आया था। उस समय बादशाह ने इस मंदिर को तोड़ने के लिए यहां सैनिक भेजे थे। जैसे ही सैनिकों ने शिवलिंग को तोड़ने की कोशिश की तो शिवलिंग से रक्त बहने लगा। ये चमत्कार देखकर सभी सैनिक यहां से भाग गए।

एक अन्य कथा के अनुसार एक बार अंग्रेजों ने शिवलिंग के बढ़ने की सत्यता जांचने की कोशिश की थी। अंग्रेजों ने शिवलिंग के चारों ओर धागा मजबूती से बांध दिया था जो कि कुछ समय बाद टूट गया था।

 

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