अभी सावन चल रहा है, ये माह 22 अगस्त तक चलेगा। इस महीने में शिव पूजा करने का विशेष महत्व है। पूजा करते समय शिवलिंग पर बिल्व पत्र, चावल, चंदन, आंकड़ा, धतूरा, फूल, फल, गुलाल आदि चीजें अर्पित की जाती हैं। इन चीजों में बिल्व पत्र का विशेष स्थान है। अगर कोई व्यक्ति जल चढ़ाकर सिर्फ बिल्व पत्र चढ़ाता है, तब भी भक्त को शिव कृपा मिल सकती है।

उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पं. मनीष शर्मा के अनुसार बिल्व पत्र का वृक्ष घर के आंगन में या घर के आसपास हो तो वास्तु के कई दोष दूर हो सकते हैं। आयुर्वेद में भी बिल्व वृक्ष का विशेष महत्व है। कई दवाओं में इसका उपयोग किया जाता है।

जिसके आंगन में बिल्व वृक्ष है और उस वृक्ष की देखभाल सही ढंग से की जाती है तो वहां रहने वाले लोगों के विचारों में सकारात्मकता बनी रहती है। अगर घर के आंगन में बिल्व का पौधे लगाना हो तो उत्तर-पश्चिम कोण में लगाना चाहिए। ये दिशा बिल्व वृक्ष के लिए शुभ रहती है। अगर उत्तर-पश्चिम कोण में लगाना संभव न हो तो इसे घर की उत्तर दिशा में भी ये पौधा लगाया जा सकता है।

शिवलिंग पर चढ़ाया गया बिल्व पत्र बासी नहीं माना जाता है। एक ही बिल्व पत्र को धोकर अगले दिन फिर से पूजा में चढ़ाया जा सकता है। नए बिल्व पत्र न मिलने पर ऐसा कई दिनों तक किया जा सकता है।

ध्यान रखें अष्टमी, चतुदर्शी, अमावस्या और रविवार को बिल्व पत्र नहीं तोड़ना चाहिए। इन तिथियों पर बाजार से खरीदकर या पुराने बिल्व पत्र को फिर से धोकर शिवजी को चढ़ा सकते हैं।

शिवपुराण में बिल्व को शिवजी का ही स्वरूप बताया गया है। इसे श्रीवृक्ष भी कहते हैं। श्री लक्ष्मी जी का ही एक नाम है। इस कारण बिल्व की पूजा से लक्ष्मीजी की कृपा भी मिल सकती है। इस वृक्ष की जड़ों में गिरिजा देवी, तने में महेश्वरी, शाखाओं में दक्षायनी, पत्तियों में पार्वती, फूलों में गौरी और फलों में देवी कात्यायनी का वास माना गया है।

 

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