21 सितंबर से अश्विन महीना शुरू हो गया है जो 20 अक्टूबर तक रहेगा। इस हिंदी महीने में 24 सितंबर को कृष्णपक्ष की संकष्टी चतुर्थी और नवरात्र के दौरान 9 अक्टूबर को विनायक चौथ रहेगी। इन दोनों दिनों में भगवान गणेश की विशेष पूजा करने की परंपरा है। स्कंद और ब्रह्मवैवर्त पुराण के मुताबिक इन दोनों तिथियों पर गणेश की विशेष पूजा के साथ व्रत रखने से परेशानियां दूर होती हैं और मनोकामनाएं पूरी होती है।
संकट से बचाने वाला व्रत
संकष्टी चतुर्थी के दिन भगवान गणेश की विधि-विधान से पूजा की जाती है। ये व्रत नाम के मुताबिक ही है। यानी इसे सभी कष्टों का हरण करने वाला माना जाता है। मान्यता है कि इस दिन व्रत और भगवान गणेश की आराधना करने से सभी तरह के कष्टों से मुक्ति मिलती है। संकष्टी चतुर्थी व्रत शादीशुदा महिलाएं पति की लंबी उम्र और सौभाग्य की कामना से करती हैं। वही, कुंवारी कन्याएं भी अच्छा पति पाने के लिए दिन भर व्रत रखकर शाम को भगवान गणेश की पूजा करती हैं।
चतुर्थी तिथि 24 और 25 को
संकष्टी गणेश चतुर्थी व्रत शुक्रवार को पड़ रहा है। इस दिन चतुर्थी तिथि सूर्योदय के बाद यानी सुबह तकरीबन 8.30 से शुरू होगी और अगले दिन 10. 35 तक रहेगी। डॉ. गणेश मिश्र बताते हैं कि संकष्टी श्री गणेश चतुर्थी व्रत चन्द्रोदय व्यापिनी चतुर्थी मे ही किया जाता है। इस व्रत में सूर्योदय के वक्त जो तिथि हो उसका विचार नहीं किया जाता। इसलिए 24 सितंबर को ही ये व्रत किया जाना चाहिए।
व्रत विधि: फलाहार और दूध ही ले सकते हैं
सूर्योदय से पहले उठकर नहाएं और सूर्य के जल चढ़ाने के बाद भगवान गणेश के दर्शन करें। गणेश जी की मूर्ति के सामने बैठकर दिनभर व्रत और पूजा का संकल्प लेना चाहिए। इस व्रत में पूरे दिन फल और दूध ही लिया जाना चाहिए। अन्न नहीं खाना चाहिए। इस तरह व्रत करने से मनोकामनाएं पूरी होती है। भगवान गणेश की पूजा सुबह और शाम यानी दोनों वक्त की जानी चाहिए। शाम को चंद्रमा को अर्घ्य देने के बाद व्रत पूरा करें।
पूजा विधि: पहले गणेश पूजा फिर चंद्रमा को अर्घ्य
पूजा के लिए पूर्व-उत्तर दिशा में चौकी स्थापित करें और भगवान गणेश की प्रतिमा स्थापित करें। चौकी पर लाल या पीले रंग का कपड़ा पहले बिछा लें। गणेश जी की मूर्ति पर जल, अक्षत, दूर्वा घास, लड्डू, पान, धूप आदि अर्पित करें। अक्षत और फूल लेकर गणपति से अपनी मनोकामना कहें और उसके बाद ऊँ गं गणपतये नम: मंत्र बोलते हुए गणेश जी को प्रणाम करने के बाद आरती करें। इसके बाद चंद्रमा को शहद, चंदन, रोली मिश्रित दूध से अर्घ्य दें. पूजन के बाद लड्डू प्रसाद स्वरूप ग्रहण करें।