सावन महीने का आखिरी प्रदोष व्रत 20 अगस्त, शुक्रवार को आ रहा है। शुक्रवार के दिन पड़ने वाले प्रदोष को शुक्र प्रदोष कहते हैं। इस दिन भगवान शिव की विशेष पूजा से हर दोष दूर होते हैं। शुक्रवार होने के कारण शिव पूजा से सुख-समृद्धि और उम्र भी बढ़ेगी।

शिव और स्कंदपुराण में प्रदोष

शिव और स्कंदपुराण के मुताबिक, प्रदोष यानी त्रयोदशी तिथि पर शाम को सूर्यास्त के वक्त यानी प्रदोष काल में भगवान शिव कैलाश पर अपने रजत भवन में नृत्य करते हैं। इस दौरान की गई उनकी पूजा से मनोकामना पूरी होती है। इस संयोग में भगवान शिव की पूजा से हर तरह के दोष भी दूर होते हैं।

त्रयोदशी तिथि शुक्रवार को

सावन का आखिरी प्रदोष व्रत शुक्रवार को रहेगा। शुक्लपक्ष की तेरहवीं यानी त्रयोदशी तिथि गुरुवार की रात तकरीबन 11 बजे से शुरू हो जाएगी। जो कि शुक्रवार को रात करीब 9 बजे तक रहेगी। शुक्रवार को सूर्यास्त यानी प्रदोष काल में त्रयोदशी तिथि होने से इसी दिन ये व्रत करना चाहिए।

संकल्प के बाद दूध का सेवन कर रखें व्रत

–    पुरी के ज्योतिषाचार्य डॉ. गणेश मिश्र बताते हैं कि प्रदोष व्रत यूं तो निर्जला यानी बिना पानी पिए रखा जाता है। इसलिए इस व्रत में फलाहार का विशेष महत्व होता है। प्रदोष व्रत पूरे दिन रखा जाता है।

–    सुबह नहाने के बाद व्रत का संकल्प लें। प्रदोष काल में भगवान शिव की पूजा करने के बाद ही भोजन ग्रहण करना चाहिए। इस दिन व्रत के दौरान पूजा की थाली में अबीर, गुलाल, चंदन, अक्षत, फूल, धतूरा, बिल्वपत्र, जनेऊ, कलावा, दीपक, कपूर, अगरबत्ती और फल होना चाहिए।

–    इस व्रत में दूध का सेवन करें और पूरे दिन उपवास धारण करें। प्रदोष व्रत में अन्न, नमक, मिर्च आदि का सेवन नहीं करना चाहिए। व्रत के समय एक बार ही फलाहार ग्रहण करना चाहिए।

 

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