17 सितंबर, शुक्रवार को सूर्य राशि बदलकर कन्या में आ जाएगा। इसलिए इस दिन कन्या संक्रांति मनाई जाएगी। इस पर्व पर स्नान, दान और पूजा-पाठ करना शुभ माना गया है। कन्या संक्रांति को विश्वकर्मा पूजा दिवस के रूप में भी मनाते हैं। दक्षिण भारत में ये पर्व बहुत ही खास माना जाता है क्योंकि वहां सौर कैलेंडर को ज्यादा महत्व दिया जाता है। वहां संक्रांति को संक्रमण कहा जाता है।

कन्यागत सूर्य पूजा से खत्म होती है परेशानियां

पुरी के ज्योतिषाचार्य डॉ. गणेश मिश्र बताते हैं कि इस संक्रांति पर स्नान, दान के साथ ही पितरों के लिए श्राद्ध करना बहुत शुभ माना जाता है। क्योंकि उपनिषदों, पुराणों और स्मृति ग्रंथों में कहा गया है कि जब सूर्य कन्या राशि में हो तब किया गया श्राद्ध पितरों को सालों तक संतुष्ट कर देता है।

कन्या राशि में मौजूद सूर्य की पूजा करने से हर तरह की बीमारियां और परेशानियां दूर होने लगती हैं। इसलिए इस दिन को अनुकूल समय की शुरुआत का प्रतीक भी माना जाता है। सालों पहले जब तिथियों की घट-बढ़ बहुत कम होती थी तब ये संक्रांति अश्विन महीने में होती थी। इसलिए इसे अश्विन संक्रांति भी कहा जाता है। संक्रांति का पुण्यकाल विशेष माना जाता है और इस पुण्यकाल में पवित्र नदियों में स्नान करने का विशेष महत्व है।

प. बंगाल और ओडिशा में भी खास है कन्या संक्राति

कन्या संक्रांति पश्चिम बंगाल और ओडिशा में भी खास पर्व के जैसे मनाया जाता है। इस पर्व पर विशेष परंपराएं पूरी की जाती हैं। माना जाता है कि कन्या संक्रांति पर पूरे विधि विधान से सूर्यदेव की पूजा की जाए तो हर तरह के कष्ट दूर हो जाते हैं। कन्या संक्रांति पर जरूरतमंद लोगों की मदद जरूर करनी चाहिए। सूर्य देव बुध प्रधान कन्या राशि में जाएंगे। इस तरह कन्या राशि में बुध और सूर्य का मिलन होगा। इससे बुधादित्य योग का निर्माण होगा।

हर संक्रांति का अपना अलग महत्व होता है। कन्या संक्रांति भी अपने आप में विशेष है। इस अवसर पर भगवान विश्वकर्मा की उपासना की जाती है। भगवान विश्वकर्मा की उपासना से कार्यक्षमता बढ़ती है। कार्यक्षेत्र और बिजनेस में आने वाली परेशानियां भी दूर हो जाती हैं। धन और वैभव की प्राप्ति होती है।

 

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