गुरुवार, 11 मार्च को महाशिवरात्रि पर हरिद्वार महाकुंभ का पहला शाही स्नान है। कुंभ के लिए देशभर के अलग-अलग हिस्सों से लाखों नागा साधु हरिद्वार पहुंचेगे। इन दिनों अलग-अलग अखाड़ों की पेशावाइयां हरिद्वार में निकल रही हैं। पेशवाई में सभी नागा साधु पूरे श्रृंगार के साथ शामिल होते हैं।
कुंभ में नागा साधु सभी के लिए आकर्षण का प्रमुख केंद्र होते हैं। इन साधुओं का श्रृंगार, रहन-सहन, पूजा-पाठ सबकुछ लोगों को आकर्षित करता है। कुंभ के बाद सभी नागा साधु समाज से अलग रहते हैं। इसीलिए सिर्फ कुंभ के समय ही आम लोग इन साधुओं को आसानी से देख पाते हैं। इन साधुओं का जीवन बहुत रहस्यमयी होता है।
नागा साधु बनने की प्रक्रिया भी बहुत कठिन होती है। इन्हें कठोर नियमों का पालन करना होता है। नागा साधु बनने से पहले व्यक्ति को खुद का पिंडदान करना पड़ता है। सभी अखाड़ों में नए नागा साधु को दीक्षा देने नियम अलग-अलग होते हैं। लेकिन, कुछ ऐसे नियम भी हैं जिनका पालन सभी अखाड़ों में किया जाता है।
नागा साधु बनने के लिए कैसे मिलती है अखाड़े में प्रवेश की अनुमति
साधु बनाने से पहले अखाड़े वाले उस व्यक्ति के बारे सारी जानकारी अपने स्तर पर हासिल हैं। उस व्यक्ति के घर-परिवार के बारे में मालूम किया जाता है। अगर अखाड़े के साधुओं को लगता है कि व्यक्ति साधु बनने के योग्य है, सिर्फ तब ही उसे अखाड़े में प्रवेश की अनुमति मिलती है।
साधु बनने से पहले ब्रह्मचर्य की परीक्षा
अखाड़े में प्रवेश करने के बाद उस व्यक्ति के ब्रह्मचर्य की परीक्षा होती है। इस परीक्षा में काफी समय लगता है। ब्रह्मचर्य में सफल होने के बाद उसके पांच गुरु बनाए जाते हैं। ये पांच गुरु पंच देव या पंच परमेश्वर के नाम से जाने जाते हैं। इनमें शिवजी, विष्णुजी, शक्ति, सूर्य और गणेश शामिल हैं। ब्रह्मचारी को महापुरुष की संज्ञा मिल जाती है। व्यक्ति को महापुरुष बाद अवधूत कहा जाता है। अवधूत के रूप में व्यक्ति खुद का पिंडदान करता है।
इसके बाद व्यक्ति को नागा साधु बनाने के लिए नग्न अवस्था में 24 घंटे तक अखाड़े के ध्वज के नीचे खड़ा रहना होता है। इसके बाद अखाड़े के बड़े नागा साधु नए व्यक्ति को नागा साधु बनाने के लिए उसे विशेष प्रक्रिया से नपुंसक कर देते हैं। इस प्रक्रिया के बाद व्यक्ति नागा दिगंबर साधु घोषित हो जाता है।
ऐसी होती है नागा साधु की दिनचर्या
नागा साधु बनने के बाद गुरु से मिले गुरुमंत्र का जाप करना होता है, उसमें आस्था रखनी होती है। नागा साधु को भस्म से श्रृंगार करना पड़ता है। रूद्राक्ष धारण करना होता है।
ये साधु दिन में एक समय भोजन करते हैं। एक नागा साधु को सिर्फ सात घरों से भिक्षा मांगने का अधिकार होता है। अगर सात घरों से खाना न मिले तो उस दिन साधु को भूखा रहना पड़ता है।
नागा साधु जमीन पर सोते हैं। ये साधु समाज से अलग रहते हैं। एक बार नागा साधु बनने के बाद उसके पद और अधिकार भी समय-समय पर बढ़ते रहते हैं। नागा साधु महंत, श्रीमहंत, जमातिया महंत, थानापति महंत, पीर महंत, दिगंबरश्री, महामंडलेश्वर और आचार्य महामंडलेश्वर जैसे पद तक पहुंच सकते हैं।