सोमवार, 20 सितंबर से पितृ पक्ष शुरू हो रहा है और ये 6 अक्टूबर तक रहेगा। मान्यता है कि इन दिनों में पितरों के शुभ कर्म करने से परिवार के मृत सदस्यों की आत्मा को शांति मिलती है। उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पं. मनीष शर्मा के अनुसार गरुड़ पुराण में भगवान विष्णु ने गरुड़ देव को पितृ पक्ष का महत्व बताया था। महाभारत के अनुशासन पर्व में भीष्म पितामह और युधिष्ठिर के संवाद बताए गए हैं। इन संवादों में भीष्म पितामह ने युधिष्ठिर को बताया था कि श्राद्ध कर्म की शुरुआत कैसे हुई?

भीष्म पितामह ने बताया था कि प्राचीन समय में सबसे पहले महर्षि निमि को अत्रि मुनि ने श्राद्ध का ज्ञान दिया था। इसके बाद निमि ऋषि ने श्राद्ध किया और उनके बाद अन्य ऋषियों ने भी श्राद्ध कर्म शुरू कर दिए। इसके बाद श्राद्ध कर्म करने की परंपरा प्रचलित हो गई।

पितरों के साथ ही अग्निदेव भी ग्रहण करते हैं धूप-ध्यान

पितृ पक्ष में पितरों के लिए धूप-ध्यान किया जाता है। जलते हुए कंडे पर गुड़, घी, भोजन अर्पित करते हैं। ऐसा करने से पितरों के साथ ही अग्निदेव भी अन्न ग्रहण करते हैं। मान्यता है कि अग्निदेव के साथ भोजन करने पर पितर देवता भी जल्दी तृप्त हो जाते हैं। इसलिए पितृ पक्ष में धूप-ध्यान करते समय जलते हुए कंडे पर ही पितरों के लिए भोजन अर्पित किया जाता है।

श्राद्ध, पिंडदान और तर्पण का अर्थ

पितृ पक्ष में घर-परिवार के मृत पूर्वजों को श्रद्धा से याद किया जाता है, इसे ही श्राद्ध कहा जाता है। पिंडदान करने का मतलब ये है कि हम पितरों के लिए भोजन दान कर रहे हैं। तर्पण करने का अर्थ यह है कि हम जल का दान कर रहे हैं। इस तरह पितृ पक्ष में इन तीनों कामों का महत्व है।

पितृ पक्ष में किसी गौशाला में गायों के लिए हरी घास और उनकी देखभाल के लिए धन का दान करना चाहिए। किसी तालाब में मछलियों को आटे की गोलियां बनाकर खिलाएं। घर के आसपास कुत्तों को भी रोटी खिलानी चाहिए। इनके साथ ही कौओं के लिए भी घर की छत पर भोजन रखना चाहिए। जरूरतमंद लोगों को भोजन खिलाएं। किसी मंदिर में पूजन सामग्री भेंट करें। इन दिनों भागवत गीता का पाठ करना चाहिए।

 

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