हिन्दू पंचांग के अनुसार माघ मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को षटतिला एकादशी के नाम से जाना जाता है। षटतिला एकादशी के दिन भगवान विष्णु की आराधना की जाती है। भगवान विष्णु को तिल का भोग लगाया जाता है। षटतिला एकादशी व्रत में तिल का छ: रूप में उपयोग करना उत्तम फलदाई माना जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, षटतिला एकादशी के दिन तिल का दान करने से स्वर्ग की प्राप्ति होती है और जो जितना तिल दान करता है, उतने हजार वर्ष तक स्वर्ग में स्थान पाता है। षटतिला एकादशी पर  तिल को पानी में डालकर स्नान करने और तिल का दान करने का भी विशेष महत्व बताया गया है। आइए जानते हैं कि षटतिला एकादशी की तिथि, पूजा का मुहूर्त, और पारण का समय क्या है-

षटतिला एकादशी शुभ मुहूर्त

षटतिला एकादशी तिथि आरंभ: 27 जनवरी, गुरुवार, रात्रि 02.16 से

षटतिला एकादशी तिथि समाप्तल 28 जनवरी, शुक्रवार  रात्रि 11.35 पर

ऐसे में षटतिला एकादशी का व्रत 28 जनवरी को रखा जाएगा।

पारण तिथि:  29 जनवरी, शनिवार, प्रातः 07.11 से 09.20 तक

षटतिला व्रत का महत्व

शास्त्रों के अनुसार हर एकादशी का अलग महत्व है। षट्तिला  एकादशी के व्रत से घर में सुख-शांति के वास होता है। जो भी श्रद्धालु षट्तिला एकादशी का व्रत करते हैं उनको जीवन के सभी सुख प्राप्त होते हैं मान्यता है कि  व्यक्ति को जितना पुण्य कन्यादान और हजारों सालों की तपस्या और स्वर्ण दान से मिलता है, उतना ही पुण्य षट्तिला एकादशी का व्रत रखने से भी प्राप्त होता है। अपने नाम के अनुरूप यह व्रत तिल से जुड़ा हुआ है। तिल का महत्व तो सर्वव्यापक है और हिन्दू धर्म में तिल बहुत पवित्र माने जाते हैं। विशेषकर पूजा में इनका विशेष महत्व होता है। इस दिन तिल का 6 प्रकार से उपयोग किया जाता है।

–    तिल के जल से स्नान करें

–    पिसे हुए तिल का उबटन करें

–    तिलों का हवन करें

–    तिल मिला हुआ जल पीयें

–    तिलों का दान करें

–    तिलों की मिठाई और व्यंजन बनाएं

मान्यता है कि इस दिन तिलों का दान करने से पापों का नाश होता है और भगवान विष्णु की कृपा से स्वर्ग लोक की प्राप्ति होती है।

षटतिला एकादशी व्रत विधि

–    षटतिला एकादशी व्रत रखने वाल श्रद्धालुओं को गंध, फूल, धूप दीप, पान सहित विष्णु भगवान की षोड्षोपचार (सोलह सामग्रियों) से पूजा करें।

–    उड़द और तिल मिश्रित खिचड़ी बनाकर भगवान को भोग लगाएं।

–    रात को तिल से 108 बार ॐ नमो भगवते वासुदेवाय स्वाहा इस मंत्र से हवन करें।

–    भगवान की पूजा कर इस मंत्र से अर्घ्य दें- सुब्रह्मण्य नमस्तेस्तु महापुरुषपूर्वज। गृहाणाध्र्यं मया दत्तं लक्ष्म्या सह जगत्पते।।

–    रात को भगवान के भजन करें, अगले दिन ब्राह्मणों को भोजन करवाएं।

–    इसके बाद ही स्वयं तिल युक्त भोजन करें।

–    यह व्रत सभी मनोकामनाएं पूर्ण करने वाला है।

 

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