BUDAUN SHIKHAR
बदायूँ
ग्राम ब्लाक, तहसील, जिला,मन्डल व प्रदेश स्तर पर कागजों में गठित सतर्कता समितियां गरीबों के राशन पर डाका रोक पाने में असमर्थ हैं।
कोटेदारों,पूर्ति निरीक्षकों और पूर्ति विभाग के अधिकारियों व कार्मिकों की चल अचल परिसम्पतियो में गुणोत्तर वृद्धि में गरीबों का बहुत बड़ा योगदान है।
कोटेदारों को संरक्षण देने हेतु पूर्ति विभाग के अफसरों ने एक फार्मूला विकसित किया है, शिकायतकर्ताओं के नाम ही सूची से पृथक कर खाद्यान्न से वन्चित कर देते हैं, ताकि कोई कोटेदार की शिकायत करने का साहस ही नहीं कर सके।
कोटेदारों के इतने वोट नहीं है कि वे चुनाव में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकें किन्तु चुनाव जीतने के बाद जनप्रतिनिधि भी कोटेदारों का साथ देकर अपने वोट बैंक का शोषण कराते हैं। इसका स्पष्ट प्रमाण भी है कि किसी भी जनप्रतिनिधि द्वारा कभी भी यह प्रयास नहीं किया गया कि गरीबों तक उनका राशन पहुंच सके।
इस वैश्विक आपदा में भी गरीबों के निवालों पर डाका डालने वाले कोटेदारों पर एफआईआर तो होना ही चाहिए और उन्हें बिना किसी रियायत के जेल भी भेजा जाना चाहिए , लेकिन इसी के साथ इस खाद्यान्न भ्रष्टाचार की चेन का भी सफाया होना चाहिए।
इस चेन में कोटेदार तो सबसे आखिरी और दृश्य किरदार हैं। जिसे सभी चोर समझते हैं ,लेकिन इसी के साथ उस सिस्टम की भी जांच हो, जिसमें भ्रष्टाचार की एक पूरी चेन जुड़ी हुई है, जिलापूर्ति कार्यालय से लगाकर,पूर्ति निरीक्षक, मार्केटिंग इस्पेक्टर, राशन वितरण का साक्षी (सुपरवाइजर) जिसके सामने राशन वितरण का दावा किया जाता है और खाद्यान्न माफिया। इन सभी की कमर तोड़े बिना कोटेदार को निलंबित और जेल भेज देने भर से सार्वजनिक वितरण प्रणाली में पारदर्शिता नहीं आ सकती है।
बदायूं जनपद के 15 ब्लाकों पर एफसीआई के गोदामों का हाल जानना हो तो कभी भेष बदल कर चले जाइए,या अपनी टीम से गोपनीय जांच करा लीजिए।पता चल जाएगा कि कैसे मार्केटिंग इस्पेक्टर कोटेदार से प्रति बोरा एक निर्धारित धनराशि लेता है। कैसे इन्ही गोदामों पर क्षेत्र के खाद्यान्न माफिया और कोटेदारों के बीच सेतु बनता है यही निरीक्षक,कैसे प्रति ग्राम पंचायत के उठान के तय खाद्यान्न से एक चौथाई या आधा अथवा कई बार पूरा का पूरा राशन कोटेदार के यहां नहीं पहुंच, सीधे खाद्यान्न माफिया के गाड़ी पर लदकर उसके निजी गोदामों में चला जाता है और घंटे भर में सरकारी सीलबंद बोरे से राशन दूसरे बोरे में चला जाता है और यहाँ दूसरे जनपदों की मंडियों में ऊंचे भाव बिक जाता है।
यदि यह अनाज कोटेदार के यहा पहुंचा है तो वितरण के समय अंगूठा लगाकर प्रति यूनिट 2 या 3 किग्रा राशन हड़प लिया जाता है। कैसे साक्षी के रूप में वीडीओ या सेक्रेटरी, कोटेदार से उपकृत होकर उसके तैयार डमी राशन वितरण पंजिका पर बिना मौके पर पहुंचे या पहुंच कर ही हस्ताक्षर बना देता है।कैसे आपूर्ति विभाग और उसका अधिकारी इस चेन में मजबूती से जुड़कर भ्रष्टाचार के इस गोरखधंधे को निर्बाध चलाता है। कैसे प्रति कोटेदार विभागीय सुविधा शुल्क वसूला जाता है और उसका नीचें से ऊपर तक बंदरबांट किया जाता है।
दरअसल यह पूरी की पूरी एक ‘करप्शन चेन सिस्टम’ है।जिसमें सफेशपोश से लेकर अफसर तक एक एक कड़ी जुड़ी है।यह इनका बारहमासी धंधा है।
लेकिन कोरोना जैसी वैश्विक महामारी के समय में भी यह धंधा यदि सामान्य दिनों की तरह निर्बाध ढंग से चल रहा है तो इनके ऊपर गंभीर धाराओं में मुकदमा होना ही चाहिए और साथ ही पूरे चेन सिस्टम पर भी। इसकी गोपनीय टीम बनाकर जनपद के सभी ब्लाकों की सघन जांच होनी चाहिए। निसहाय और निराश्रितों की दुवाएं जरूर लगेगीं। क्योंकि अन्त्योदय समाज के विकास की बात तो यह सरकार भी करती है। और भाजपा के आदर्श पुरूष दीनदयाल उपाध्याय जी भी उसी अन्त्योदय समाज की बात करते हैं,जिनके अधिकारों पर यह डाका डाला जा रहा है।

