BUDAUN SHIKHAR

बदायूँ

मार्च महीना बीतने को है,जिससे भ्रष्टाचारी भी लूट की रफ्तार बढा दी है। इन दिनों मनरेगा ग्राम पंचायतों मे लूट का एक बड़ा जरिया बन चुका है। टुकडों में काम दिखाना ,एक ही निर्माण को डबल दिखाना सचिव और प्रधानों और जेई को आम बात है , मौके पर कोई आडिट नहीं होता ,सालों खुली बैठक नहीं होती, काम के टेण्डर अखबारों में नहीं छपाते ,ग्राम प्रधान अधिकारियों के मिलीभगत से फर्जी मास्टर रोल भर रहे हैं। लेकिन इन भ्रष्टाचारियों पर कोई लगाम लगाने वाला नहीं है। ग्राम पंचायतों मे दिनदहाड़े खुली लूट करने वालों के लिए कोई कानून नहीं बना हुआ है। महात्मा गांधी रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) योजना में जिले में लूट मची हुई है। कई ग्राम पंचायतों में मनरेगा के तहत जेसीबी व अन्य मशीनों से काम कराया गया, लेकिन मास्टर रोल में मजदूरों व उनके जॉब कार्ड का नंबर दर्ज कर लिया गया तो कई ग्राम पंचायतों मे काम चल नहीं रहे लेकिन मास्टर रोल भरने का सिलसिला जारी है। मालूम हो कि मनरेगा साल 2005 में लागू हुआ था। इस योजना का मकसद गांवों के समुचित विकास के साथ गांव के बेरोजगारों को रोजगार देना था। इस अधिनियम के जरिए हर ग्रामीण बेरोजगार को 100 दिनों के काम की गारंटी दी गई थी। इसके लिए ग्रामीण बेरोजगारों का जॉबकार्ड बनाया गया था। काम में गड़बड़ी न हो इसके लिए कानूनी प्रक्रिया बनाई गई थी। लेकिन भ्रष्ट पदाधिकारियों, कर्मियों, रोजगार सेवकों और बिचौलियों ने इस कानून की ऐसी काट निकाली कि कोई पकड़ नहीं सके। मजदूर सही, जॉब कार्ड सही लेकिन मास्टर रोल फर्जी। काम करेगी जेसीबी मशीन लेकिन मास्टर रोल में जॉब कार्ड नंबर के साथ रहेगा मजदूरों का नाम। मजदूरों का जॉब कार्ड थोक में बिचौलियों के पास होगा, इसके एवज में मजदूर को कभी-कभार कुछ टोकन मनी मुफ्त में मिलेगा व तालाब, कुआं, सड़क या कुछ और निर्माण हो कहीं भी कोई मजदूर काम नहीं करेगा। ये सिस्टम काफी समय से कई पंचायतों में चली आ रही है व जिले में मनरेगा अधिनियम की धज्जियां उड़ाई जा रही हैं।

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