अश्विन मास की नवरात्र गुरुवार, 7 अक्टूबर से शुरू हो रही है। इस बार ये पर्व 8 दिनों का रहेगा और 15 अक्टूबर को दुर्गा नवमी के साथ खत्म होगा। इसे शारदीय नवरात्र भी कहा जाता है। देवी का आवाहन, पूजन और विसर्जन, ये तीनों शुभ काम सुबह ही करना चाहिए।
उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पं. मनीष शर्मा के अनुसार नवरात्र की शुरुआत जिस वार से होती है, उस वार के अनुसार देवी मां अलग-अलग वाहनों पर सवार होकर धरती लोक आती हैं। अगर नवरात्र की शुरुआत सोमवार या रविवार से होती है तो मां दुर्गा हाथी पर सवार होकर पृथ्वी लोक आती हैं। अगर मंगलवार या शनिवार से नवरात्र शुरू हो रही है तो माता घोड़े पर सवार होकर आती हैं। अगर नवरात्र की शुरुआत बुधवार से हो रही है तो देवी मां नाव में आती हैं। अगर गुरुवार या शुक्रवार से नवरात्र शुरू होती है तो माता डोली में सवार होकर आती हैं। इस वार नवरात्र गुरुवार से शुरु हो रहे हैं यानी देवी दुर्गा डोली में सवार होकर आएंगी।
माता का आगमन डोली में होगा और प्रस्थान भी डोली में ही होगा। इस वाहन का संदेश ये है कि देवी मां की कृपा से भक्तों की मनोकामनाएं पूरी होंगी और देश-दुनिया की अशांति खत्म होगी, व्यापार बढ़ेगा और जनता को सुख मिलेगा।
अश्विन मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि यानी नवरात्र के पहले दिन घटस्थापना करके शक्ति पूजन शुरू किया जाता है। प्रतिपदा से नवमी तक भक्त को अंदर-बाहर से शुद्धि रखकर देवी मां का पूजन करना चाहिए। भक्त को अंदर से शुद्धि रखनी चाहिए यानी विचारों की पवित्रता, बुरे विचारों का त्याग करें। बाहर से शुद्धि यानी अधार्मिक कर्मों से बचें और धर्म के अनुसार काम करें। श्रीदुर्गााशप्तसती का पाठ करें। संयम पूर्वक रहें। नवरात्र का व्रत करने वाले भक्त शुद्ध और संयमित रहेंगे, देवी पूजा जल्दी सफल हो सकती है।
नवरात्र के दिनों में देवी मां के प्राचीन मंदिरों में देवी दर्शन करना का महत्व काफी अधिक है। अगर संभव हो सके तो किसी पौराणिक महत्व वाले देवी मंदिर की यात्रा जरूर करें। दर्शन-पूजन करते समय कोरोना महामारी से संबंधित नियमों का पालन जरूर करें।