बदायूँ  । जिला कृषि रक्षा अधिकारी ने कृषक एडवाइजरी जारी की है कि रवी मौसम की प्रमुख फसल गैहूँ में पीला रतुआ एवं करनाल बन्ट से बचाव के सम्बन्ध में सुझाव यह है कि-

पीला रतुआ

अ- सामान्यतया पीला रतुआ प्रकोप हेतु 6 से 18 डिग्री सेन्टीग्रेड तापमान एवं 90 प्रतिशत से अधिक आद्रता के साथ- साथ बदलीयुक्त मौसम अनुकूल होता है । प्रायः इस रोग का प्रकोप जनवरी व फरवरी माह में दिखाई देता है ।

ब- रोग का प्रकोप होने पर पीले से नारंगी रंग के यूरेडियोस्पोर धारियों के आकार में पत्तियों पर पाउडर के रूप में दिखाई पड़ते है जिसे हाथ लगाने पर हाथों में पीला पाउडर चिपक जाता है ।

स-यह रोग खेत में 10-15 पौधों पर गोल घेरे के रूप में शुरू होकर वाद पूरे खेत में फैलता है ।

द-पीला रतुआ से बचाव हेतु नाइट्रोजनयुक्त उर्वरकों का प्रयोग अधिक नहीं करना चाहिए तथा प्रकोप के लक्षण परिलक्षित होने पर प्रोपिकोनाजोल 0.1 प्रतिशत अथवा ट्रेवुकोनाजोल 50 प्रतिशत ट्राईफलोक्सीस्ट्राबिन 25 प्रतिशत डब्लू ० जी ० 0.06 प्रतिशत का घोल बनाकर 15 दिन के अन्तराल पर छिड़काव करना चाहिए ।

  1. करनाल वन्ट

अ-करनाल वन्ट बीज एवं भूमि जनित रोग है इस बीमारी से न तो पौधों की सभी वालियाँ और न ही वालियों में सभी दाने प्रभावित होते है इस की पहचान खेत में नहीं हो पाती है और ज्यादातर मामलों में फसल की कटाई और थ्रेसिंग के बाद ही दिखाई पड़ती है।

ब-इसके प्रकोप की दशा में गेहूं की वालियाँ एवं दानों पर काले रंग के रूप में टेलियोस्पोर चिपके रहते है जिसका प्रसार हवा द्वारा तेजी से होता है।

स-ठण्डा तापमान, उच्च आर्द्रता एवं रूक रूक कर होने वाली वारिश रोग के विकास को वड़ावा देती है।

द-यदि गतवर्षो में इस रोग का संक्रमण राह हो और मौसम रोग संक्रमण के लिए अनुकूल हो तो फूल अवस्था के दौरान यथा सम्भव सिंचाई नहीं करनी चाहिए।

य-गेहूँ की पुष्पा अवस्था में तापमान में गिरावट एवं अधिक आद्रिता होने की स्थिति में वालियाँ निकलते समय प्रोपीकोनाजोल 0.1 प्रतिशत का सुरक्षात्मक छिड़काव करना चाहिए।

 

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