जिला संवाददाता विजय कुमार वर्मा
बदायूँ : श्री रघुनाथ जी मंदिर मे श्रीमद्भागवत कथा सप्ताह ज्ञान यज्ञ के अंतिम दिन पंडित मुमुक्षु कृष्ण शास्त्री ने प्रद्युम्न जन्म, राजा नृग उद्घार एवं सुदामा चरित का वर्णन किया। भागवत कथा के उपरांत वेद मंत्रोच्चारण के साथ हवन यज्ञ हुआ। जिसके उपरांत ब्रह्म भोज एवं विशाल भंडारे का आयोजन किया गया।

शनिवार को शहर के श्री रघुनाथ जी मंदिर ( पंजाबी मंदिर ) में आयोजित श्रीमद्भागवत कथा सप्ताह ज्ञान यज्ञ में सातवें दिन परम श्रद्धेय भागवत भास्कर पं. मुमुक्षु कृष्ण शास्त्री ने कथा को आगे बढ़ाते हुए प्रद्युम्न जन्म, राजा नृग उद्घार एवं सुदामा चरित का वर्णन किया।
उन्होंने बताया कि जब भगवान कृष्ण के पुत्र प्रद्युम्न का जन्म हुआ तो द्वारिका नगरी में चहुंओर जश्न मनाया जाने लगा। इसी बीच जरासंध के इशारे पर शंबासुर प्रद्युम्न को उठा ले गया और समुद्र में फेंक दिया। समुद्र के अंदर एक मछली ने जैसे ही मुंह खोला वैसे ही प्रद्युम्न उसके मुंह में प्रवेश कर उदरस्थ हो गए। वह मछली एक मछुआरे के द्वारा शंबासुर के यहां पहुंच गयी, रसोईए द्वारा मछली काटने पर प्रद्युम्न को विद्यावती को दे दिया। प्रद्युम्न बड़े होने पर शंबासुर का वध करने के बाद विद्यावती के साथ द्वारिका पहुंचे। इसके उपरांत कथा वाचक ने राजा नृग का उद्घार एवं सुदामा चरित का वर्णन किया।


पंडित मुमुक्षु कृष्ण शास्त्री ने बताया कि मित्रता कैसे निभाई जाए यह श्री कृष्ण सुदामा से सीखें। सुदामा अपनी पत्नी के आग्रह पर अपने सखा से मिलने के लिए द्वारिका पहुंचे। सुदामा ने द्वारिकाधीश के महल का पता पूछा और महल की ओर बढ़ने लगे द्वार पर द्वारपालों ने सुदामा को भिक्षा मांगने वाला समझकर रोक दिया। तब उन्होंने कहा कि वह कृष्ण के मित्र हैं। द्वारपाल महल में गए और प्रभु से कहा कि कोई उनसे मिलने आया है।अपना नाम सुदामा बता रहा है। द्वारपाल के मुंह से उन्होंने सुदामा का नाम सुना प्रभु सुदामा सुदामा कहते हुए तेजी से द्वार की तरफ भागे सामने सुदामा सखा को देखकर उन्होंने उसे अपने सीने से लगा लिया। सुदामा ने भी कन्हैया कन्हैया कहकर उन्हें गले लगाया और सुदामा को अपने महल में ले गए ओर उनका अभिनंदन किया। कथा के अंतिम दिन एक साथ हजारों भक्तों ने नृत्य का ऐसा समा बांधा की कोई भी भक्ति रस के इस सागर में डूबने से खुद को नहीं रोक पाया। कथा पांडाल में भक्तों का सैलाब उमड़ा हुआ था‌ और तरफ राधे-राधे की गूंज ही थी।


भागवत कथा के उपरांत वेद मंत्रोच्चारण के साथ हवन यज्ञ हुआ। यज्ञ में आहुति देकर सभी की खुशहाली और विश्व में सभी के स्वस्थ रहने की कामना की गयी। हवन पूर्ण आहुति के उपरांत ब्रह्म भोज एवं विशाल भंडारे का आयोजन किया गया, जिसमें सभी भक्तगणों एवं शहर वासियों ने बहुत ही प्रेम से भंडारा प्रसाद ग्रहण किया।

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