संवाददाता: विकास बाबू आर्य
दो लाख कार्निया की हर वर्ष होती है जरूरत मात्र तीस हजार ही हो पाता है नेत्रदान
बदायूं:. समदृष्टि क्षमता विकास एवं अनुसंधान मण्डल (सक्षम) की जिला बैठक हुई जिसमें नेत्रदान महादान को लेकर चर्चा एवं विचार विमर्श किए गए सक्षम द्वारा नेत्रदान पखवाड़ा के तहत जो 25 अगस्त से 8 सितंबर तक चल रहा था उसमें आज तीन लोगों ने मरणोपरांत नेत्रदान करने का संकल्प लिया!
मरणोपरांत नेत्रदान करने वालों मैं आर्स विद्या का पठन-पाठन कराने वाले विद्वान आचार्य धर्मवीर, वेदयज्ञ कराने वाले विद्वान रूप सिंह और शिक्षक प्रशांत सक्सेना को सक्षम के अध्यक्ष विपिन जौहरी ने अपने आवास पर प्रमाण पत्र व माला पहनाकर सम्मानित किया
नेत्रदान करने के दौरान विचार गोष्ठी में आचार्य धर्मवीर जी ने कहा के मरने के बाद शरीर राख बन जाता है इसलिए क्यों ना जो लोग नेत्रहीन है उन लोगों के लिए दान देना मरणोपरांत भी जिंदा रहने का एक प्रत्यक्ष प्रमाण है क्योंकि मरने के बाद जो आंख और शरीर राख में तब्दील हो जाएगी राख बनने से अच्छा है हम किसी के जीवन में अंधेरे से उजाला कर दें!
वहीं शिक्षक प्रशांत सक्सेना ने कहा मरणोपरांत शरीर का हर अंग जलकर राख हो जाता है अगर हमारे शरीर का कोई हिस्सा किसी के काम आता है तो वह दान सबसे बड़ा दान है
सक्षम प्रचार प्रमुख विकास बाबू आर्य ने कहा कि हर वर्ष भारत में लगभग आठ लाख मौतें होती हैं जिनमें से मात्र 30 हजार लोग ही नेत्रदान करते हैं अगर सभी लोग नेत्रदान करने लगे तो बहुत से लोगों के जीवन में जो अंधेरा है वह उजाले से लबालब हो जाएगा और वह आपके मरने के बाद आपकी आंखों से दुनिया देख सकेगा!
सक्षम संस्था के अध्यक्ष विपिन जौहरी ने कहा कि हर वर्ष 2 लाख जोड़ी कार्निया की जरूरत पड़ती लेकिन नेत्रदान सिर्फ 30 हजार लोगों का ही हो पाता है जो चिंता का विषय है इसलिए नेत्रदान के लिए ज्यादा से ज्यादा लोगों को आगे आना चाहिए जिसके जीवन में अंधेरा है वह उजाले से भर जाए और कहां की
नेत्रदान करने के लिए संस्था के किसी भी कार्यकर्ता या पदाधिकारी को सूचना देकर नेत्रदान करवा सकते हैं
अंत में सक्षम संस्था के अध्यक्ष विपिन जौहरी ने सभी नेत्रदान करने वालों का आभार व्यक्त किया इस मौके पर एडवोकेट प्रदीप भारती, विनोद कुमार सक्सेना, विजय कुमार सक्सेना, माधव जौहरी , आचार्य धर्मवीर, रूप सिंह, प्रशांत सक्सेना आदि लोग मौजूद रहे