लंदन : कोविड लक्षणों वाले लोगों का परीक्षण करना ब्रिटेन के महामारी से निपटने के प्रयासों का महत्वपूर्ण हिस्सा रहा है, जो वायरस वाले लोगों की पहचान करने और उन्हें अलग थलग करके संचरण को कम करता है। लेकिन इसका प्रभावी होना, लक्षणों वाले लोगों के टेस्टिंग कराने पर निर्भर करता है, जो एक स्पष्ट प्रश्न उठाता है: वास्तव में बीमारी के लक्षणों वाले लोगों का कितना अनुपात परीक्षण कराता है?

जोए कोविड अध्ययन, जो सरकार द्वारा वित्त पोषित है और किंग्स कॉलेज लंदन और शहर के गेज और सेंट थॉमस अस्पतालों सहित एक समूह द्वारा संचालित है, इस प्रश्न का उत्तर देने के लिए विशिष्ट रूप से कार्यरत है। यूके में हर दिन 40 लाख से अधिक प्रतिभागी अध्ययन के ऐप के माध्यम से किसी लक्षण की सूचना देते हैं जो वह महसूस कर रहे हैं, और हाल में कराए किसी कोविड परीक्षणों के परिणाम के बारे में भी सूचना देते हैं।

महामारी के दौरान परीक्षण नियम विकसित हुए हैं, लेकिन एक नियम लगातार बना हुआ है: यदि आपको एनएचएस द्वारा सूचीबद्ध कोविड के मुख्य तीन लक्षणों (बुखार, लगातार खांसी, या स्वाद या गंध की हानि) में से कोई है और आप नहीं जानते हैं कि आपको कोविड संक्रमण है तो आपको पीसीआर टेस्ट करवाना चाहिए। और अध्ययन के आंकड़ों का विश्लेषण करके, मैं और मेरे सहयोगी यह जानने में सक्षम हुए हैं कि इनमें से किसी भी लक्षण का अनुभव करने वाले प्रतिभागियों में से कितने लोग उनके लक्षण प्रकट होने के तुरंत बाद परीक्षण के लिए जाते हैं।

परिणाम आश्चर्यजनक थे। दिसंबर 2020 में हमने देखा कि जिन लोगों ने तीन मुख्य लक्षणों में से एक की सूचना दी, उनमें से 25% ने इसके तुरंत बाद पीसीआर टेस्ट कराने के बारे में जानकारी नहीं दी। इसका सीधा मतलब था कि उन्होंने लक्षण होने के बावजूद टेस्ट नहीं करवाया। वह भी तब जब पर्याप्त अतिरिक्त परीक्षण क्षमता उपलब्ध थी।

इस जानकारी के साथ, हमने यूके में 4,000 उपयोगकर्ताओं के नमूने के लिए एक सर्वेक्षण भेजा, जिनके लक्षण थे लेकिन कोई परीक्षण नहीं था, यह बेहतर ढंग से समझने के लिए कि उनका परीक्षण क्यों नहीं हुआ। हमने पाया कि यह ज्यादातर तीन कारणों से था।

सबसे पहले, ऐसे लोगों के परीक्षण की संभावना कम थी जिन्हें तीन लक्षणों में से केवल एक था या यदि उनके लक्षण केवल एक दिन तक रहे थे। इससे पता चलता है कि लोगों को शाायद यह गलतफहमी थी कि यदि उनके लक्षण संक्षिप्त या हल्के हैं तो उनकी बीमारी के कोविड होने की संभावना नहीं है।

हमने यह भी पाया कि हमारे 40% उत्तरदाता उन सभी तीन लक्षणों को पहचान नहीं पाए, जो उन्हें कोविड परीक्षण के योग्य बनाते हैं। बड़ी उम्र के लोगों की इसे जानने की संभावना कम थी: 25-34 वर्ष के आयु वर्ग के 80% उत्तरदाता तीनों लक्षणों की पहचान कर सकते थे, लेकिन 75 वर्ष या उससे अधिक आयु के केवल 25% ही ऐसा कर पाए।

साथ ही, जब लोगों को पता था कि उन्हें यह परीक्षण करवाना चाहिए, तब भी हमने पाया कि उन्होंने ऐसा नहीं किया। ऐसे लोग जो टेस्ट करवाना तो चाहते थे, लेकिन करवा नहीं पाए उनका सबसे आम कारण था, ‘‘मुझे नहीं पता था कि परीक्षण कराने के लिए कहां जाना है’’। अन्य सामान्य कारण थे ‘‘मैं किसी परीक्षण स्थल पर नहीं पहुंच पाया।’’ और ‘‘मैंने परीक्षण कराने की कोशिश तो की, लेकिन करवा नहीं पाया’’।

इन परिणामों से यह भी पता चलता है कि जानकारी का अभाव अक्सर कोविड के परीक्षण में एक बाधा है। हो सकता है कि लोगों को पता ही न हो कि उनकी हल्की बीमारी भी कोविड हो सकती है, उन्हें इस बात का एहसास ही न हो कि उनके लक्षणों का मतलब है कि उन्हें टेस्ट करवाना चाहिए, और यदि वह टेस्ट करवाना भी चाहते हैं तो यह नहीं जानते कि कहां और कैसे करवाया जाए।

लक्षण वाले लोगों की पहचान जरूरी

इन निष्कर्षों के बड़े परिणाम हो सकते हैं। यह महत्वपूर्ण है कि हम बीमारी के प्रसार को कम करने में मदद के लिए कोविड के अधिक से अधिक मामलों की पहचान करें और उन्हें अलग थलग करें। जिन लोगों की जांच नहीं हुई है, वह अपनी दिनचर्या को जारी रखने के दौरान, अनजाने में घर और काम पर लोगों को संक्रमित कर सकते हैं।

हमारे नतीजे बताते हैं कि टेस्ट करवाने वाले लोगों की संख्या बढ़ाने के लिए जनता को शिक्षित करना महत्वपूर्ण है। जनता को यह सूचित करने का प्रयास करने की आवश्यकता है कि हल्के लक्षण भी कोविड हो सकते हैं, उन्हें यह सिखाने के लिए कि ये लक्षण क्या हैं, और उनका परीक्षण कैसे किया जा सकता है। इस संदेश को बड़ी उम्र के लोगों तक पहुंचाना ज्यादा जरूरी है, जिनके लिए यह जानने की संभावना शायद कम है कि उन्हें कौन से लक्षण होने पर टेस्ट करवाना चाहिए।

 

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