पर्थ, एजेंसी। टोंगा और हंगा टोंगा-हंगा हपाई द्वीपों के आसपास पानी के अंदर ज्वालामुखी फटने की घटना के कारण प्रशांत क्षेत्र के चारों ओर के देशों में सुनामी का प्रभाव दिखाई दिया है और पेरू में तो 21 समुद्र तटों पर तेल बिखरने की भयावह घटना सामने आई।

टोंगा में सुनामी के कारण करीब दो मीटर ऊंची लहरें उठती देखी गयीं और इसके बाद समुद्र के स्तर को मापना मुश्किल हो गया। वहीं टोंगा टापू, एउआ और हपाई द्वीपों के पश्चिमी तटों पर 15 मीटर तक ऊंची लहरें आईं। ज्वालामुखी के फटने की घटनाएं कई सप्ताह या महीनों तक चल सकती हैं, लेकिन यह अनुमान लगाना कठिन है कि इस तरह का शक्तिशाली ज्वालामुखी विस्फोट अब कब होगा।

अधिकतर सुनामी भूकंप के कारण आती हैं लेकिन करीब 15 प्रतिशत ऐसी आपदाओं के पीछे भूस्खलन या ज्वालामुखियों के फटने की घटनाएं जिम्मेदार होती हैं। इनमें से कुछ के कारण आपस में जुड़े भी हो सकते हैं। मसलन भूस्खलन के कारण आई सुनामी के पीछे भूकंप या ज्वालामुखीय गतिविधियां भी शामिल होती हैं।

लेकिन क्या इसमें जलवायु परिवर्तन की भी कोई भूमिका होती है? धरती पर तापमान बढ़ने के साथ हम जल्दी-जल्दी तूफान और चक्रवातों की आपदाओं के गवाह बन रहे हैं। ग्लेशियरों के पिघलने और समुद्र स्तर के बढ़ने जैसे घटनाक्रम सामने आते हैं। हालांकि जलवायु परिवर्तन केवल वातावरण और समुद्र को प्रभावित नहीं करता, बल्कि पृथ्वी की सतह पर भी असर डालता है।

जलवायु से संबंधित भूगर्भीय परिवर्तन भूकंप आने और ज्वालामुखी में विस्फोट जैसी घटनाओं को बढ़ा सकते हैं जिनके नतीजतन सुनामी का खतरा बढ़ सकता है। इन पांच तरीकों से यह घटनाक्रम सामने आ सकता है:

  1. समुद्र स्तर का बढ़ना

अगर ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन की दर उच्च बनी रही तो औसत वैश्विक समुद्र स्तर 60 सेंटीमीटर से 1.1 मीटर के बीच बढ़ने का पूर्वानुमान होता है। दुनिया के 50 लाख से अधिक आबादी के करीब दो तिहाई शहर इस जोखिम में हैं।

समुद्र स्तर बढ़ने से तटीय क्षेत्रों में रहने वाली आबादी को न केवल तूफान के कारण आई बाढ़ का खतरा होता है बल्कि सुनामी का डर भी बना रहता है। समुद्र स्तर में मामूली बढ़ोतरी से बाढ़ आने का खतरा तेजी से बढ़ जाता है और ऐसे में सुनामी आ सकती है।

उदाहरण के लिए 2018 के एक अध्ययन की बात करते हैं जिसके अनुसार समुद्र स्तर में केवल 50 सेंटीमीटर की वृद्धि से चीन के मकाऊ में सुनामी के कारण बाढ़ आने का खतरा दोगुना होने की आशंका व्यक्त की गयी थी। इसका मतलब है कि भविष्य में छोटी सुनामी आपदाएं भी आज की बड़ी सुनामी जितना नुकसान पहुंचा सकती हैं।

  1. भूस्खलन

तापमान में वैश्विक वृद्धि से पानी के अंदर और भूतल पर, दोनों ही जगह भूस्खलन का खतरा बढ़ जाता है और इससे स्थानीय स्तर पर सुनामी आने का जोखिम बना रहता है।

ऊंचे स्थानों पर जमी हुई मिट्टी की परत (पर्माफ्रोस्ट) के पिघलने से मिट्टी की स्थिरता कम हो जाती है और भूक्षरण तथा भूस्खलन का खतरा बढ़ जाता है। मूसलाधार बारिश से भी धरती के फटने जैसी घटनाएं सामने आती हैं।

पानी के अंदर भूस्खलन से सुनामी का खतरा होता है।

  1. हिमशैलों का टूटना

वैश्विक तापमान वृद्धि से हिमशैलों के पिघलने की दर बढ़ रही है। इसमें ग्लेशियर के बड़े हिस्से पिघलकर समुद्र तक पहुंच जाते हैं। अध्ययनों के अनुसार अंटार्कटिका में थ्वैट्स ग्लेशियर जैसे बड़े हिमखंडों के अगले पांच से दस साल में टूटकर पिघल जाने का अनुमान है। इसी तरह ग्रीनलैंड में बर्फ तेजी से पिघलती जा रही है।

मौजूदा अनुसंधान में मुख्य रूप से समुद्र में पानी के स्तर के बढ़ने और ग्लेशियरों के पिघलने के संबंध पर जोर दिया गया है, लेकिन सुनामी का जोखिम भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।

  1. हिमशैलों के पिघलने से ज्वालामुखी का फटना

करीब 12,000 साल पहले जब अंतिम ‘हिमयुग’ समाप्त हुआ था तब बर्फ पिघलने से ज्वालामुखीय गतिविधियों में तेजी से इजाफा देखा गया। जलवायु परिवर्तन तथा और अधिक ज्वालामुखियों के फटने के बीच किसी तरह के संबंध को अभी व्यापक रूप में समझा नहीं जा सका है, लेकिन इसे पृथ्वी की सतह पर पड़ने वाले दबाव में बदलाव से जोड़कर देखा जा सकता है जहां बर्फ पिघलने से उसका भार कम होता है।

अगर इस सह-संबंध को जलवायु परिवर्तन और ऊंचे क्षेत्रों में बर्फ पिघलने के मौजूदा कालखंड के लिए सही माना जाए तो ज्वालामुखियों के फटने और उससे संबंधित सुनामी जैसे खतरों का जोखिम भी बढ़ जाता है।

  1. भूकंप की घटनाएं बढ़ना

जलवायु परिवर्तन अनेक तरह से भूकंप की घटनाओं को बढ़ाता है और इससे सुनामी का जोखिम भी बढ़ जाता है।

सबसे पहले तो बर्फ की चादरों के पिघलने से पृथ्वी पर दबाव कम होने के साथ भूकंप आने का जोखिम होता है क्योंकि पृथ्वी की सतह कम हुए भार को समायोजित करने के लिए कंपन करती है।

इसके अलावा तूफानों से जुड़ा कम वायु का दबाव क्षेत्र भी एक कारक है।

हम कैसे हो सकते हैं तैयार?

सुनामी से निपटने की तैयारियों को मजबूत करने के कारकों में जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने की अनेक रणनीतियां शामिल होनी चाहिए। इसमें सुनामी पूर्वानुमान मॉडलों में अनुमानित समुद्र स्तर वृद्धि को शामिल करना तथा संवेदनशील तटीय क्षेत्रों में अवसंरचना के लिए निर्माण संहिता बनाना जोड़ा जा सकता है।

अनुसंधानकर्ता जलवायु परिवर्तन के प्रभाव वाले वैज्ञानिक मॉडलों में भूकंप, भूस्खलन और ज्वालामुखी फटने की घटनाओं में वृद्धि के पूर्वानुमान को जोड़ सकते हैं।

 

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