इस्लामाबाद : पाकिस्तान में नई घोषित हुई राष्ट्रीय सुरक्षा नीति (एनएसपी) के खिलाफ विपक्ष अब खुल कर सामने आ गया है। विपक्षी दलों से जुड़े कई सीनेटरों ने कहा है कि उन्हें दरकिनार करते हुए ये नीति तैयार की गई है। जबकि ऐसी नीति राष्ट्रीय आम सहमति के साथ बननी चाहिए। विपक्ष का आरोप है कि सरकार ने इस मामले में संसद की भी अनदेखी की है।
विपक्ष ने बताया कागज का टुकड़ा
पाकिस्तानी संसद के ऊपरी सदन सीनेट में पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी की सदस्य शेरी रहमान ने कहा कि सरकार ने सुरक्षा नीति के दस्तावेज को सदन में रखने की जरूरत महसूस नहीं की। उन्होंने कहा कि जिस दस्तावेज को नई सुरक्षा नीति बता कर पारित किया गया है, वह कागज के एक टुकड़े के अलावा कुछ और नहीं है। ये दस्तावेज जमीनी हकीकत के बिल्कुल उलट है।
सुरक्षा नीति दस्तावेज पर सरकार और विपक्ष में पैदा हुई कड़वाहट का संकेत इससे भी मिला कि जब शेरी रहमान बोल रही थीं, तब सत्ताधारी पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) के सदस्यों ने लगातार टोका-टाकी की। इसके विरोध में शेरी रहमान ने सदन से वॉकआउट कर दिया। उधर दूसरे विपक्षी सदस्यों ने सदन में शोरगुल मचाया। सत्ताधारी दल के सदस्यों ने कहा कि विपक्ष राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दे पर सियासी दांव चल रहा है। पीटीआई के एक सदस्य ने कहा कि दस्तावेज को राष्ट्रीय सुरक्षा समिति में पेश किया गया था। लेकिन विपक्ष ने उस बैठक का बायकॉट कर दिया।
इमरान खान सरकार ने बीते मंगलवार को नई सुरक्षा नीति पर अपनी मुहर लगा दी थी। उसके बाद सरकार के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार मोईद यूसुफ ने नई नीति को एक एतिहासिक दस्तावेज बताया था। सरकार का दावा है कि उसने एक ऐसी नीति बनाई है, जिसके केंद्र में नागरिक हैं। इसमें आम लोगों की आर्थिक सुरक्षा को भी राष्ट्रीय सुरक्षा का हिस्सा माना गया है। ये नई नीति 2022 से 2026 तक के लिए बनाई गई है। इसमें कहा गया है कि इससे देश की आर्थिक सुरक्षा मजबूत होगी, जबकि बाहरी और आंतरिक दूसरी चुनौतियों का मुकाबला में मदद मिलेगी।
सैन्य मामलों पर नहीं होती आम चर्चा
पर्यवेक्षकों का कहना है कि नई नीति पर चल रही चर्चा के दौरान सेना से जुड़े दूसरे मसले भी उठ रहे हैं। जबकि पाकिस्तान में सेना से जुड़े मामलों पर सार्वजनिक चर्चा आम तौर पर वर्जित रही है। नई सुरक्षा नीति पर चर्चा के दौरान विपक्षी सीनेटरों ने नेशनल डाटाबेस रजिस्ट्रेशन ऑथरिटी में सैन्य कर्मियों की भर्ती का मसला भी उठाया। उन्होंने इस बारे में सरकार से पूरा ब्योरा देने की मांग की। जमात-ए-इस्लामी के सदस्य मुश्ताक अहमद ने पूछा कि कितने लोगों को इस ऑथरिटी में डेपुटेशन पर रखा गया है और वहां कितने सैन्यकर्मी काम कर रहे हैं।
विपक्ष का कहना है कि राष्ट्रीय सुरक्षा नीति पर सरकार का रवैया शुरू से ही एकतरफा था। उसने राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद की बैठक में इसके दस्तावेज को पेश करने की सिर्फ रस्म-अदायगी की। चूंकि उस बैठक में सेना के अधिकारियों को शामिल नहीं होना था, इसलिए विपक्ष ने वहां जाने की जरूरत महसूस नहीं की। पहले विपक्ष ने कहा था कि प्रधानमंत्री इमरान खान ने खुद उस नीति के बारे में जानकारी देने के बजाय ये काम राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार को सौंप दिया। इसलिए विपक्ष ने बैठक का बायकॉट किया था।

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