अगर आपके दो बच्‍चे हैं, तो आप समझती ही होंगी कि कभी भी दो प्रेग्‍नेंसी एक जैसी नहीं होती हैं। प्रेग्‍नेंसी के लक्षणों से लेकर मूड स्विंग्‍स और फूड क्रेविंग तक अलग होती है। कभी आप बच्‍चे के आने से खुश हो जाती हैं तो कभी हार्मोंनल बदलावों की वजह से चिड़चिड़ा महसूस करती हैं।

कई महिलाओं को डिलीवरी के बाद ‘बेबी ब्‍लू’ महसूस होता है जिसमें मूड स्विंग्‍स, रोने का मन करना और एंग्‍जायटी होना शामिल है। कुछ मामलों में ये सब चीजें गंभीर रूप ले लेती हैं और रोजमर्रा की जिंदगी पर भी प्रभाव डालती हैं। मेडिकल भाषा में इसे पोस्‍टपार्टम डिप्रेशन कहते हैं। एक रिसर्च के अनुसार साल के एक खास समय में शिशु को जन्‍म देने वाली महिलाओं में पोस्‍टपार्टम डिप्रेशन का खतरा ज्‍यादा रहता है।

​क्‍या कहती है स्‍टडी

अध्‍ययन के लिए शोधकर्ताओं ने 20,000 से ज्‍यादा मांओं के मेडिकल रिकॉर्ड को रिव्‍यू किया था। इन महिलाओं की जून 2015 से अगस्‍त 2017 के बीच डिलीवरी हुई थी। अध्‍ययन के निष्‍कर्षों से पता चला है कि जिन महिलाओं ने सर्दी या वसंत के मौसम में जन्‍म दिया, उनमें गर्मी या पतझड़ के मौसम में डिलीवरी होने वाली महिलाओं की तुलना में पोस्‍टपार्टम डिप्रेशन का खतरा कम था।

अमेरिकन सोसायटी ऑफ एनेस्‍थेसिओलोजिस्‍ट की मीटिंग में शोधकर्ताओं ने इस स्‍टडी के निष्‍कर्ष दिखाई और साफ किया कि मौसम ही नहीं बल्कि मां का वजन, रंग, एपिड्यूरल का इस्‍तेमाल, शिशु की जेस्‍टेशनल एज और अन्‍य कारक भी अहम भ‍ूमिका निभा सकते हैं।

मौसम क्‍यों होता है जिम्‍मेदार

गर्मी और पतझड़ के मौसम में शिशु को जन्‍म देने वाली महिलाओं में पोस्‍टपार्टम डिप्रेशन का खतरा ज्‍यादा होने के लिए कुछ कारण जिम्‍मेदार हैं। इसका पहला कारण यह है कि गर्मी में महिलाएं शिशु की देखभाल के लिए घर पर ही ज्‍यादा रहती हैं और खुद को दोस्‍तों से दूर कर लेती हैं। वो गर्मी के चक्‍कर में बाहर घूमने नहीं जाती हैं।

दूसरा कारण है कि ठंड के महीनों में धूप से विटामिन डी न लेने पर उन्‍हें गर्मी या पतझड़ में शिशु को जन्‍म देने पर उन्‍हें दुखी महसूस हो सकता है। कुछ अध्‍ययनों का मानना है कि कई महिलाओं को अपनी प्रेग्‍नेंसी के दौरान पोस्‍टपार्टम डिप्रेशन होता है लेकिन इनमें से आधी महिलाओं को इसका एहसास ही नहीं होता है।

​क्‍या करें

पोस्‍टपार्टम डिप्रेशन एक दीर्घकालिक स्थिति है और कुछ सही उपाय कर के आप इस स्थिति को बदतर होने से बचा सकती हैं। लंबे समय तक डिप्रेशन में रहने से नई मांओं के लिए अपने शिशु के साथ बॉन्‍ड बनाने में दिक्‍कत होती है और पार्टनर, दोस्‍तों और परिवार के अन्‍य सदस्‍यों के साथ भी रिश्‍ता ठीक नहीं रहता है।

पोस्‍टपार्टम डिप्रेशन से निकलने के लिए अपने परिवार और दोस्‍तों की मदद लें और उन्‍हें बताएं कि आपको कैसा महसूस होता है। इसके लिए आप किसी प्रोफेशनल की मदद भी ले सकती हैं। डिप्रेशन को खत्‍म करने के लिए आप मेडिटेशन और योग की मदद ले सकती हैं। इसके अलावा ब्रीदिंग एक्‍सरसाज भी बहुत मददगार साबित हो सकती हैं।

 

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