‘‘बदायूँ जनपद का स्वतंत्रता संग्राम आंदोलन में योगदान’’

                              (डाॅ. अक्षत अशेष)

कवि/गीतकार

सचिव, बदायूँ  क्लब, बदायूँ

आजादी की 75वीं वर्षगांठ का वर्ष प्रारम्भ हो चुका है। आजादी की इस गौरवमयी यात्रा में जनपद बदायूँ  भी विभिन्न ऐतिहासिक पलों एवं घटनाओं का साक्षी रहा है। प्राप्त जानकारी के अनुसार भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन में प्रारंभ से ही बदायूँ  के नागरिकों ने बढ़ चढ़कर भाग लिया है। 1919 ई. के जलियांवाला बाग हत्याकांड के बाद अमृतसर के आहूत अधिवेशन में बदायूँ  के रधुवीर सहाय, बाल मुकुन्द सहाय, राजा ब्रजलाल भदवार, राजकुमार, अमीरचन्द्र जौहरी, दयाशंकर, मौलाना अब्दुल हसन कादरी, और आर. आर. मिगलानी प्रतिनिधि के रुप में पहुचे। इन लोगों ने खिलाफत आन्दोलन तथा अहसयोग आन्दोलन में बढ़ चढ़कर भाग लिया।

गुलड़िया गांव में नमक कानून का तोड़ना – बदायूँ  जनपद में स्वतंत्रता संग्राम के दौरान कुछ विशेष स्मरणीय कार्य हुए। उनमें अप्रैल सन्30 में ग्राम गुलड़िया में जो दातागंज की ओर जाने वाली सड़क पर बदायूँ  से 7 मील दूर है, नमक कानून तोड़ा गया। इस आन्दोलन में बरेली, मुरादाबाद, पीलीभीत, शाहजहांपुर तथा बदायँू के लगभग 15 हजार स्त्री पुरुषों ने हिस्सा लिया। यहां पर खुर्रा मिट्टी से नमक बनाकर कानून का उल्लंघन किया गया। यह व्यवस्था रणवीर सिंह के खेत में की गई। इसके परिणामस्वरुप पृथ्वीराज हसंह तथा और अनेक आन्दोलनकारियों को बन्दी बनाकर जेल भेज दिया और यातनायें दी गई।

अलापुर में आन्दोलन – गुलड़िया गांव के अतिरिक्त कस्बा अलापुर ने भी अप्रैल सन् 1930 में नमक कानून भंग करने का आन्दोलन किया। पुलिस थाने के सामने पं. विभूति प्रसाद के द्वारा इस कानून को भंग करने के समय पुलिस के सिपाहियों द्वारा गर्म पानी की कढ़ाई उनके ऊपर लौट दी जिससे वह पूरी तरह जल गए। वह जले हुए निशान उम्र भर उनके शरीर पर रहे। वस्तुतः सन् 1920 से 1947 तक के सभी आन्दोलनों में बदायूँ  जनपद के महान देशभक्तों ने सक्रिय भाग लिया तथा असहनीय कष्ट और यातनांए भोगकर बदायँू को गौरवान्वित किया।

महात्मा गांधी का बदायूँ मे आगमन – गांधी जी मार्च सन् 1921 तथा 9 नवम्बर सन् 1929 में बदायँू आये थे। पहली बार जब गांधी जी ने अहसयोग आन्दोलन प्रारम्भ किया व बदायँू पधारे, बदायँू जिले के प्रसिद्ध खिलाफत नेता मौलाना अब्दुल माजिद, जो गांधी जी के बहुत नजदीकी थे, के प्रयासों से यहां आना मुमकिन हुआ। गांधी जी की बदायँू यात्रा का विशेष प्रबन्ध बाबू रधुवीर सहाय, चै. तुलसाराम व मौ. अब्दुल माजिद ने मिलजुल कर किया। गांधी जी को स्टेशन से जुलूस के रुप में कादरी मंजिल ले जाया गया। उनके जुलूस में कई हाथी थे। गांधी जी के साथ बा (गांधी जी की धर्मपत्नी), मौ. शौकत अली, डाॅ. सैफउद्दीन किचलू, सैय्द मौहम्मद हुसैन व दूसरे दूसरे मुस्लिम उलमा थे। रेलवे स्टेशन पर उनका शानदार स्वागत किया गया। स्वागत करने वालों मेें खासतोर पर मौलाना रागिब, बाबू राजकुमार वकील, राय बहादुर ब्रजलाल भदवार, मीर महफूज अली साहब उपस्थित थे।

गांधी जी ने स्टेशन के निकट सभास्थल पर अपना भाषण दिया, इसके बाद वर्तमान में आर्यसमाज चैक के पास स्थित आर्य समाज मन्दिर गए। पार्वती आर्य कन्या इण्टर कालिज जो उस समय पार्वती कन्या पाठशाला में स्त्रियों को सम्बोधित किया। यहां उनको लोगों द्वारा चन्दा भी दिया गया।

दूसरी बार गांधी जी 1929 में बदायँू आए। सन् 1930 में प्रारम्भ होने वाले दूसरे आन्दोलन की तैयारियां चल रही थीं। गांधी जी को थैली भेंट करने के लिए बाबू रधुवीर सहाय ने पूरे जिले में घूम-घूम कर धन  एकत्रित किया।

गांधी जी उझानी से बदायँू रेवेरन्डटाइटस, अमेरिकन मिशनरी की कार में बैठ कर आए। उनके साथ आचार्य कृपलानी, कुमार मिसस्टेड, प्रभावती देवी व महादेव देसाई भी आए। पहले गांधी ने चै. तुलसीदास का खद्दर भण्डार देखा फिर रामलीला मैदान में एक सार्वजनिक सभा को संबोधित किया जहां उनको मानपत्र व रुपयों की थैली भेंट की गई। स्व. रायजादा की कोठी में गांधी जी को ठहराया गया। दूसरे दिन सबसे पहले गांधी गुरुकुल गए। वहां के विद्याथियों ने 51/- रुपये एवं मान पत्र भेंट किया। वहां से पार्वती कन्या पाठशाला गए। वहां की लडकियों ने 291/- रुपये भेंट किए। इसके बाद कंपनी बाग के मैदान में गांधी ने जलसे को संबोधित किया। यहां दो हजार पैंतीस रुपये की थैली गांधी जी को भेंट की गई। वहां से डाॅ. रायजादा की कोठी पर वापिस आकर सूक्ष्म भोजन लेकर सिंगलर गल्र्स स्कूल गए और फिर रेल द्वारा बरेली चले गए।

 

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