अपने ही बच्चे की जासूसी करना या उन पर कड़ी निगरानी रखना भले ही हर मां-बाप को शुरू में अटपटा लगता हो परंतु किशोर होते बच्चों को सही राह पर चलाने हेतु उनकी जासूसी हर जैनरेशन में मां-बाप द्वारा की गई है। भले ही उस समय बच्चों को इस बात का पता न चला हो परंतु उन पर नजर रखने के पेरैंट्स के अपने ही तरीके थे। आज की जैनरेशन के पास इंटरनैट एवं मोबाइल जैसे गैजेट्स होने के कारण घर और बाहर दोनों जगह उन पर नजर रखने की जरूरत पड़ती है ताकि इस बात का पता चल सके कि वे पढ़ाई के अलावा कहां बिजी रहते हैं।
जरूरी है नजर रखना
अक्सर पेरैंट्स को यह गिल्ट महसूस होता है कि अपने ही बच्चों की निगरानी या जासूसी करना वास्तव में उन पर अविश्वास साबित करना है जो गलत साबित होने पर हमेशा उन्हें गिल्ट में रखेगा और सही होने के बावजूद यदि बच्चों को पता चल गया तो मां-बाप के बारे में वे क्या सोचेंगे। वास्तव में देखा जाए तो बच्चों की जासूसी करने के कदम को नकारात्मक रूप में लेने या उसके लिए खुद पर शर्मिंदा होने की अपेक्षा यह सोचें कि आपके इस कदम से आपको यह तो पता चलेगा कि आपके बच्चे किस दिशा में जा रहे हैं या फिर वे क्या सोच रहे हैं।
जरूरी है बच्चों की बेहतरी
किशोर होते बच्चों को बाहर की दुनिया बेहद खूबसूरत नजर आती है और उसके बारे में जानने तथा उस जीवन को जीने की ललक उन्हें अक्सर अपने लक्ष्य से भटका देती है, सो बेटी हो या बेटा उनकी बेहतरी के लिए उनकी हर बात, हर हरकत तथा उनके हर काम पर नजर रखनी बेहद जरूरी है। आपके बच्चे कब और कहां जाते हैं, उनका हाव-भाव कैसा है, कम्प्यूटर पर नैट सर्फिंग के दौरान वे लोग क्या-क्या सर्च करते हैं तथा उनके ऑनलाइन फ्रैंड्स किस तरह के हैं इसकी जांच करें। यही नहीं मोबाइल पर उनकी चैटिंग एवं फोटो एक्सचेंज की लिस्ट इत्यादि भी चैक करें। वे कहीं स्कूल से बंक तो नहीं करते? यदि करते हैं तो कहां जाते हैं।
एक चुनौती
वैसे तो सभी माता-पिता अपने बच्चों के आचार-विचार और व्यवहार पर काफी हद तक विश्वास करते हैं, परंतु इसके साथ कई सावधानियां भी बरतते हैं कि उनके बच्चे स्कूल में, खेल के मैदान में, ट्यूशन के दौरान या घर के बाहर होने के दौरान क्या-क्या करते हैं, यह जानना मां-बाप के लिए बड़ी चुनौती है।
इसके लिए कभी-कभी उनके स्कूल जाएं, उनके फ्रैंड्स से मिलें। टीचर्स एवं पड़ोसियों से मिलें। लगभग 60 प्रतिशत अभिभावक बच्चों के लैपटॉप, मोबाइल, सोशल साइट्स आदि की जासूसी करते हैं, जबकि 40 प्रतिशत अभिभावक अपने बच्चों के कम्प्यूटर, मोबाइल एवं फेसबुक आदि की जासूसी के मुद्दे पर दोराहे पर खड़े होते हैं। वे लोग इस द्वंद्व में फंसे रहते हैं कि बच्चों की जासूसी कहीं उनकी व्यक्तिगत स्वतंत्रता का हनन तो नहीं है, जबकि माता-पिता के लिए यह जानना बहुत जरूरी है कि उनके बच्चे ऑनलाइन किस प्रकार के लोगों से अपने विचार सांझे करते हैं।
डर से ऊपर उठें
कई अभिभावकों को यह डर सताता है कि यदि उनके बच्चों को चोरी-छिपे उन पर नजर रखने के बारे में पता चलेगा तो वे अपने बच्चों का विश्वास भी खो सकते हैं। उनके लिए इस डर से ऊपर उठना बेहद जरूरी है ताकि वे अपने बच्चों को एक बेहतर भविष्य दे सकें और कल को बच्चा यह न कह पाए कि उनके बहकते कदमों को मां-बाप ने रोकने की कोशिश नहीं की।