बच्चे की अच्छी परवरिश के लिए हर माता-पिता चिंतित रहते हैं और चाहते हैं कि उनका बच्चा अच्छे संस्कार सीखे और आगे चलकर कामयाब बने। यस या नो पेरेंटिंग बच्चे के परवरिश में बेहद अहम किरदार निभाता है, तो चलिये जानते हैं इसके बारे में विस्तार से।

माता-पिता होने के नाते हमें जरूरत महसूस पड़ने पर बच्चे को नही बोलना पड़ता है, ताकि वे अनुशासन में रहें। जैसे वो स्कूल नही जाना चाह रहे हों या ज्यादा देर तक टीवी के सामने बैठना चाहते हों, तब “नही”बोलकर उन्हें ऐसा करने से रोकना पड़ता है। लेकिन, कई बार बच्चे को बार-बार नही बोलना हमें ये सोचने के लिए मजबूर कर देता है कि क्या हम बच्चे को कुछ ज्यादा ही टोक तो नही रहे?

साइकोलॉजिस्ट का मानना है कि बच्चे को ज्यादा ना बोलने से उनका विकास प्रभावित होता है और आगे चलकर किसी भी तरह का डिसीजन लेने में वो अपने आप को कॉन्फिडेंट फील नहीं कर पाते। इसी वजह से आजकल बच्चों को ना बोलने या नहीं बोलने को कम करने का कॉन्सेप्ट सामने आया है। इसका मतलब है कि पेरेंट्स बच्चे को “हां” बोलें, जब तक ना बोलने का कोई ठोस कारण न हो। इसे ही “येस पेरेंटिंग” कहते हैं।

​येस पेरेंटिंग क्या है?

येस पेरेंटिंग का मतलब होता है बच्चे को किसी भी बात के लिए रोक-टोंक ना करना, चाहे वो ब्रेकफास्ट में चॉकलेट खाने की जिद करें या दीवार पर क्रेयोन से पेंटिंग करें। लेकिन हर बार हां बोलने का मतलब ये नही है कि बच्चे अपनी मनमानी करना शुरू कर दे।

बस “ना” बोलने को लिमिट करना है और जब तक जरूरत ना हो इस शब्द का प्रयोग नही करना है। बच्चे के सही डिमांड “येस” शब्द का प्रयोग ज्यादा से ज्यादा करना है ताकि बच्चा हमेशा पॉजिटिव सोचे।

​बच्चे को येस बोलने के फायदे

एक्सपर्ट्स का मानना है कि येस पेरेंटिंग के बहुत से फायदे हैं। येस पेरेंटिंग बच्चे को भविष्य में ज्यादा सक्सेसफुल बनने में मदद करेगा, साथ ही पेरेंट्स और बच्चे के रिश्ते को भी मजबूत बनाता है। येस पेरेंटिंग बच्चों को उनके जीवन को भरपूर रूप से जीने के लिए प्रेरित करता है, और उनके मन में किसी भी प्रकार के डर को कम करने में मदद करता है।

​बच्चे को हमेशा येस बोलने के नुकसान

येस पेरेंटिंग बेशक बच्चों के बेहतर भविष्य और उनके कॉन्फिडेंस के लिए अच्छा है, लेकिन हर बार येस बोलना भी उनके लिए कभी-कभी मुसीबत का कारण बन सकता है।

जैसे कभी कभार पेरेंट्स को नही का भी उपयोग करना पड़ता है जब बच्चा अनुशासन से बाहर काम करने लगे। हमेशा येस बोलने से बच्चे बिना पूछे ही कुछ ऐसे काम भी करने लग जाते हैं जो उनके लिए सही नही है।

येस पेरेंटिंग से बच्चे पर प्रभाव

येस पेरेंटिंग का अच्छा और बुरा दोनों प्रभाव पड़ता है। इसलिए पेरेंट्स को बड़ी ही सावधानी के साथ और बच्चे के व्यवहार को समझते हुए ही उसको “येस” या “नो” का इस्तेमाल करना चाहिए।

बेशक, बच्चे को हर बार नो बोलना सही ना हो, लेकिन हर बार येस बोलना भी बच्चे के लिए नुकसानदायक हो सकता है। वे अनुशासनहीन हो सकते हैं और स्वार्थी होने की प्रवृत्ति भी उनमें देखी जा सकती है।

​सबसे महत्वपूर्ण बात

जब बात पेरेंट्स पर आती है कि उन्हें बच्चे को किस तरह से गाइड करना है या बड़ा करना है तब हर बच्चे पर एक ही रूल फिट नही बैठता। सभी बच्चे अलग होते हैं और उन्हें अलग तरीके से बड़ा करने की आवश्यकता होती है। बच्चे पर आपको आजमा कर देखने की आवश्यकता होती है कि उनके लिए क्या सही है और क्या नहीं।

पेरेंट्स से बेहतर बच्चे को और कोई भी नही समझ सकता। इसलिए येस पेरेंटिंग की लिमिट,या नही बोलने की लिमिट तय करना पेरेंट्स के हाथ में होता है, ताकि बच्चे को अच्छी परवरिश और सही अनुशासन मिल सके।

 

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