नयी दिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने 2016 में तीन साल की बच्ची के साथ बलात्कार कर उसकी हत्या करने के जुर्म में मौत की सजा पाने वाले मुजरिम की सजा मंगलवार को उम्रकैद में तब्दील कर दी। ऐसा करते समय शीर्ष अदालत ने उसके सुधार एवं पुनर्वास की संभावना पर भी विचार किया।

न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव, न्यायमूर्ति बीआर गवई और न्यायमूर्ति बीवी नागरत्ना की पीठ ने छत्तीसगढ़ के निवासी की मौत की सजा उम्रकैद में बदलते हुए कहा कि त्वरित कार्रवाई जरूरी है, लेकिन आरोपी के वकील को बचाव की दलीलें तैयार करने का समय भी दिया जाना चाहिए।

निचली अदालत ने 17 जून 2016 को लोचन श्रीवास को मामले में दोषी ठहराते हुए मौत की सजा सुनाई थी, जिसे छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय ने बरकरार रखा था। श्रीवास ने इस फैसले के खिलाफ उच्चतम न्ययालय में अपील दायर की थी।

शीर्ष अदालत ने अपने फैसले में कहा कि दोषी कोई पेशेवर अपराधी नहीं है।

पीठ ने कहा, ‘‘ इसलिए, यह नहीं कहा जा सकता कि याचिकाकर्ता के सुधरने या उसके पुनर्वास की कोई संभावना नहीं है…और कम सजा के वैकल्पिक विकल्प को ठुकरा, मौत की सजा ही दी जाए।’’

शीर्ष अदालत ने कहा कि निचली अदालत और उच्च न्यायालय ने केवल अपराध पर गौर किया…अपराधी पर नहीं, उसकी मानसिक स्थिति, उसकी सामाजिक-आर्थिक पृष्ठभूमि आदी पर नहीं।

पीठ ने कहा, ‘‘ याचिकाकर्ता एक नौजवान है और घटना के समय 23 वर्ष का था। वह एक ग्रामीण क्षेत्र से नाता रखता है। राज्य ने ऐसा कोई सबूत पेश नहीं किया, जिससे लगे की उसके सुधरने या पुनर्वास की कोई संभावना नहीं है।’’

शीर्ष अदालत ने दोषी के छोटे भाई और बड़ी बहन के हलफनामों पर भी गौर किया, जिन्होंने दावा किया था कि दोषी स्कूल में पढ़ाई में अच्छा था और परिवार को गरीबी से बाहर निकालने के लिए लगातार प्रयास कर रहा था।

पीठ ने कहा, ‘‘जेल में भी याचिककर्ता का व्यवहार संतोषजनक पाया गया है। उसका कोई आपराधिक इतिहास नहीं है। यह उसके द्वारा अंजाम दिया गया पहला अपराध है। हालांकि कोई संदेह नहीं है कि यह एक जघन्य अपराध है।’’

न्यायालय ने अपने फैसले में कहा कि दोषी की ओर से पेश हुए वकील को उनके मुवक्किल के बचाव में दलील तैयार करने का समय दिया जाना चाहिए। ‘‘ हमें लगता है कि त्वरित सुनवाई जरूरी है, आरोपी के वकील को बचाव की दलीलें तैयार करने का समय दिया जाना चाहिए।’’

अभियोजन पक्ष के अनुसार, पीड़िता और आरोपी एक ही इमारत में रहते थे। 24 फरवरी 2016 को बच्ची लापता हो गई थी और बाद में दोषी ने उसके परिवार से उसे ढूंढने में मदद करने की पेशकश की। इसके बाद उसने बच्ची के परिवार को बताया कि बच्ची को बांध कर एक बोरी में सड़क के पीछे झांडियों में रखा गया है। इस पर लोगों को शक हुआ और उन्होंने पुलिस को इसकी जानकारी दी। पुलिस के पूछताछ करने पर याचिकाकर्ता ने अपना जुर्म कबूल कर लिया था।

बच्ची का शव खून में लथपथ झाड़ियों के पास से बरामद हुआ था।

 

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