‘जान है तो जहान है’ यह कहावत आपने कई बार सुनी होगी। इसका अर्थ यह है कि आपका शरीर रोगमुक्त है तो दुनिया के सभी सुख आपके पास हैं। शरीर अस्वस्थ होने पर हम कोई भी काम नहीं कर सकते हैं। लक्ष्य को पाने के लिए हमें अपने स्वास्थ्य का ख्याल रखने की जरूरत है। चाणक्य कहते हैं कि हर किसी को अपनी सेहत के प्रति सतर्क व जागरूक रहना चाहिए। आचार्य चाणक्य ने नीति शास्त्र में आहार से जुड़े कुछ नियमों का जिक्र किया है, जिनका पालन करने से बीमारी से अपना बचाव किया जा सकता है।
अजीर्णे भेषजं वारि जीर्णे वारि बलप्रदम्
भोजने चामृतं वारि भोजनान्ते विषप्रदम्।
आचार्य चाणक्य कहते हैं कि भोजन ग्रहण करने के करीब आधा घंटा बाद पिया गया पानी शरीर को मजबूत प्रदान करता है। भोजन के बीच में थोड़ा-थोड़ा पानी पीना अमृत के समान माना जाता है। लेकिन भोजन के तुरंत बाद पानी पीना विष से कम नहीं है। इसलिए ऐसा करने से बचना चाहिए।
राग बढत है शाकते, पय से बढत शरीर
घृत खाये बीरज बढे, मांस मांस गम्भीर।
आचार्य चाणक्य कहते हैं कि शाक खाने से रोग बढ़ते हैं। दूध पीने से शरीर बलवान होता है। घी खाने से वीर्य बढ़ता है और मांस खाने से शरीर में मांस बढ़ जाता है। इसलिए आहार के नियमों का ध्यान रखना चाहिए।
गुरच औषधि सुखन में भोजन कहो प्रमान
चक्षु इंद्रिय सब अंश में, शिर प्रधान भी जान।
चाणक्य ने नीति शास्त्र में औषधियों में गुरच यानी गिलोय को सर्वश्रेष्ठ बताया है। सभी सुखों में भोजन परम सुख होता है। चाणक्य कहते हैं कि शरीर में आंखें प्रधान हैं और सभी अंगों में मस्तिष्क का भी विशेष महत्व है।