नई दिल्ली, एजेंसी : अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया ने रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के इरादों को पूरी तरह भांप लिया था। इसलिए राष्ट्रपति जो बाइडन व प्रधानमंत्री स्कॉट मॉरिसन ने हमले को लेकर सटीक चेतावनियां दी थीं। ऑस्ट्रेलिया के पीएम मॉरिसन ने तो बुधवार को 24 घंटे में रूस द्वारा पूर्ण जंग छेड़ने का दावा किया था जो गुरुवार सुबह सच साबित हो गया।

अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन रूस के राष्ट्रपति पुतिन को लगातार समझाइश दे रहे थे। उन्होंने पुतिन से बीते दिनों फोन पर लंबी बात भी की थी। कूटनीतिक प्रयासों के जरिए पुतिन को जंग से रोकने के तेजी से प्रयास चल रहे थे। लेकिन पुतिन टस से मस नहीं हुए। पुतिन को यूक्रेन से नजदीकी रूसी संघ के लिए बड़ा खतरा नजर आ रही है, इसलिए उन्होंने जंग छेड़ने की बात कही है।

जनवरी से रूस व यूक्रेन के बीच तनाव बढ़ने लगा था। फरवरी आते-आते यह चरम पर पहुंचने लगा। अमेरिका व ऑस्ट्रेलिया रूस-यूक्रेन सीमा की हर हलचल पर नजर रखे हुए थे। वहां रूस ने धीरे धीरे सवा लाख सैनिकों को तैनात कर दिया था। तीन दिन पूर्व जब रूस ने अपने लड़ाकू विमान क्षेत्र में भेजे और यूक्रेन के डोनेत्स्क व लुहांस्क शहरों को स्वायत्त क्षेत्र घोषित किया तो पुतिन के इरादों को समझने में अमेरिका व ऑस्ट्रेलिया को देर नहीं लगी।

अमेरिका को जहां खुफिया एजेंसियों से मॉस्को में होने वाली हर हलचल की जानकारी मिल रही थी वहीं उपग्रहों से मिल रही रूसी सैन्य तैनाती की तस्वीरें भी बता रही थीं कि हालात किस ओर बढ़ रहे हैं। अमेरिकी संसद व रूस की ड्यूमा भी लगातार प्रस्ताव पारित कर अपने-अपने राष्ट्रपतियों की ताकत में इजाफा करती जा रही थीं।

जैसे ही पुतिन ने यूक्रेन के डोनबास प्रांत के डोनेत्स्क व लुहांस्क को आजाद क्षेत्र घोषित किया तो पश्चिमी देशों ने ताबड़तोड़ रूस पर कठोर पाबंदियां लगा दीं। हालांकि 2014 के बाद से ही पाबंदियों को झेल रहे रूस पर इनका कोई असर नहीं दिखा और पुतिन ने इन्हें नजरअंदाज कर दिया।

ऑस्ट्रेलिया के पीएम स्कॉट मॉरिसन ने जब बुधवार को रूस पर अपने देश की ओर से पाबंदियों का एलान करते हुए यह दावा किया कि अगले 24 घंटे में रूस पूर्ण युद्ध का एलान करेगा तो दुनिया हैरान रह गई। उनका यह दावा इतना सटीक होगा, यह किसी को अंदाजा नहीं था।

दरअसल, रक्षा विशेषज्ञों का कहना है कि मौजूदा संचार व डिजिटल क्रांति के दौर में सूचनाएं जितनी तेजी से फैलती हैं, उतना ही उनमें सेंधमारी का खतरा भी है। जमीन से लेकर आसमान तक फैले खुफिया तंत्र के दम पर सुरक्षा व खुफिया एजेंसियां हर क्षण के घटनाक्रम पर नजर रखती हैं। विभिन्न देशों के नेताओं व राजनयिकों के बीच होने वाली बातचीत हो या प्रशासनिक या सैन्य संदेशों का आदान-प्रदान यह पूरी तरह गोपनीय नहीं रह सकता।

बहरहाल, जंग छिड़ने के बाद अब बड़ी जरूरत इसे दोनों देशों के बीच झड़प तक सीमित रखना है। यह महाशक्ति देशों के बीच टकराव का सबब न बनना चाहिए, वरना भारी तबाही से बचना मुश्किल होगा।

 

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