नई दिल्ली, एजेंसी। अमेरिकी सैनिकों के अफगानिस्तान छोड़ते ही आतंकी सगंठन अल कायदा ने तालिबान को अफगानिस्तान पर जीत की बधाई भेज दी। आतंकी समूह के मीडिया विंग, अस-साहब पर यह बधाई संदेश प्रकाशित है। अल कायदा ने अफगानिस्तान पर तालिबान की जीत को ‘यूरोप और पूर्वी एशिया में जनता के लिए अमेरिकी आधिपत्य की बेड़ियों से मुक्त होने का अवसर’ बताया है। उसने कश्मीर, फिलिस्तीन, मघरेब (उत्तर पश्चिमी अफ्रीका) को “इस्लाम के दुश्मनों के चंगुल” से “मुक्ति” दिलाने की भी बात कही है।
अपने बधाई संदेश में अलकायदा ने कहा है कि “फिलिस्तीन को ज़ायोनी कब्जे से और इस्लामिक मगरेब को फ्रांसीसी कब्जे से मुक्त किया जाए। लेकिन चीन के शिनजियांग में मानवाधिकारों के हनन के बारे में उसने एक शब्द भी नहीं कहा है। जबकि उइगर मुसलमानों के मानवाधिकार हनन की खबरें अक्सर सुनने को मिलती हैं।
और क्या कहा है अलकायदा ने
अलकायदा ने तालिबान को भेजे बधाई में ‘इस्लामिक उम्माह को अफगानिस्तान में अल्लाह की दी गई आजादी मुबारक’ कहा है। इस संदेश में तालिबान ने लिखा है, ‘ओ अल्लाह, लेवंत, सोमालिया, यमन, कश्मीर और दुनिया के अन्य इस्लामी जमीनों को इस्लाम के दुश्मनों को आजाद कराओ। ओ अल्लाह, दुनिया भर में मुस्लिम कैदियों को आजादी दिलाओ।’अमेरिका का साम्राज्य तोड़ने के लिए अलकायदा ने ईश्वर की तारीफ की है और कहा है इस्लाम की धरती अफगानिस्तान पर उसे शिकस्त मिली है।
उइगर मुसलमानों पर क्यों चुप है अलकायदा
हैरानी की बात है कि दुनिया भर के मुस्लिम कैदियों की बात करने पर अलकायदा को उइगर मुसलमानों की याद नहीं आई है। उइगर मुसलमानों के बारे में अलकायदा के कुछ नहीं बोलने की वजह के बारे में रक्षा विशेषज्ञ मेजर जनरल ए के सिवाच (रिटायर्ड) की राय यह है कि अलकायदा हों या तालिबान वे चीन से डरते हैं। क्योंकि चीन से न केवल उन्हें आर्थिक मदद मिलती है बल्कि हर तरह से उनको प्रोत्साहन मिलता है। चीन की वजह से इन आतंकी संगठनों के पास संसाधन की कोई कमी नहीं है।
वे कहते हैं इस सबके बदले में चीन अफगानिस्तान के संसाधनों का इस्तेमाल अपने हक में करना चाहता है। उसकी मंशा अफगानिस्तान के लीथियम पर पूरा कब्जा करने की है। वह अफगानिस्तान में भारी निवेश करने की योजनाएं बना रहा है, चीन-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर को वह ईरान तक ले जाना चाहता है। इस काम में उसे अफगानिस्तान और पाकिस्तान दोनों की सरकारों का सहयोग चाहिए।
तालिबान ने चीन से उइगर मुसलमानों के बारे में बात नहीं करने का वादा किया है। इसलिए अलकायदा भी नहीं कर रहा है। अलकायदा का गढ़ अफगानिस्तान और पाकिस्तान है और पाकिस्तान और चीन मौसेरे भाई की तरह हैं। तालिबान के चीन के साथ भी अच्छे रिश्ते हैं और अलकायदा के साथ भी। इसलिए तालिबान के हित को अलकायदा अपना हित समझता है। तालिबान ने ही अलकायदा को शह दिया था। 9/11 के बाद अलकायदा ने पाकिस्तान में शरण ले थी।
हालांकि सिवाच यह मानते हैं कि कश्मीर को लेकर अलकायदा ने जो बात की है, उससे भारत को चिंता करने की जरूरत है, क्योंकि इस बात की आशंका लगातार जताई जा रही है कि अलकायदा और तालिबान पाकिस्तान को फायदा पहुंचाने के लिए कश्मीर में अपने पैर पसार सकते हैं।
तालिबान पहले ही चीन को दे चुका है भरोसा
एक अंतरराष्ट्रीय मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक तालिबान ने 15 अगस्त को काबुल पर हमले से पहले ही चीन को अफगानिस्तान का “मित्र” बताते हुए उसे यह भरोसा दिया था वह उइगर मुसलमानों की कोई मेजबानी नहीं करेगा। जाहिर है तालिबान का मित्र अलकायदा भी इसी नीति का पालन कर रहा है। पिछले बुधवार को, चीन ने काबुल पर कब्जा करने के बाद पहली बार तालिबान के साथ एक बैठक की थी। माना जा रहा है कि दोनों के बीच उइगर मुसलमानों को लेकर भी बातचीत हुई है।
उइगर मुसलमानों को लेकर चीन पर क्या है आरोप
उइगर मुख्य रूप से मुस्लिम अल्पसंख्यक तुर्क जातीय समूह हैं। जो शिनजियांग के उत्तर-पश्चिमी क्षेत्र में रहते हैं। इनकी संख्या तकरीबन 12 मिलियन है। वे अपनी भाषा बोलते हैं, जो तुर्की के समान है। वे अपनी सांस्कृतिक और जातीय पहचान बनाए हुए हैं। 20वीं शताब्दी की शुरुआत में, उइगरों ने इस क्षेत्र के स्वतंत्रता की घोषणा की थी, लेकिन 1949 में चीन की नई कम्युनिस्ट सरकार से इसे पूर्ण नियंत्रण में ले लिया था।
चीन पर आरोप है कि वह उइगर आबादी और अन्य ज्यादातर मुस्लिम जातीय समूहों पर इस तरह के अत्याचार कर रहा है जो मानवता के खिलाफ है। चीन पर इन जातियों के नरसंहार करने के भी आरोप लगते रहते हैं। मानवाधिकार समूहों का मानना है कि चीन ने पिछले कुछ सालों में दस लाख से अधिक उइगरों को उनकी इच्छा के विरुद्ध हिरासत में रखा हुआ है। इन लोगों को “पुर्न शिक्षा शिविर” में डाल दिया गया है और सैकड़ों लोगों को जेल की सजा सुनाई है।
मानवाधिकार संगठनों का यह भी कहना है कि उइगरों से बंधुआ मजदूरों की तरह काम कराया जाता है। महिलाओं की जबरन नसबंदी कराई जा रही है। शिविर के कुछ पूर्व बंदियों ने यह भी आरोप लगाया है कि उन्हें प्रताड़ित किया गया और उनका यौन शोषण किया गया।
सिवाच अपने आधिकारिक दौरे पर कई बार चीन की यात्रा कर चुके हैं। वे कहते हैं चीन में उइगर मुसलमानों के बारे में कोई खुल कर बात नहीं करता है। उनके प्रति किसी की सहानुभूति नहीं है। चीन के अंदर कोई इस बारे में बात नहीं करता है, जो बात होती है वह बाहरी दुनिया में है। लेकिन सच तो यह है कि उइगर मुसलमानों पर बहुत ज्यादा अत्याचार हो रहा है इस मामले पर चीन मनमानी कर रहा है। हालांकि चीन शिनजियांग में मानवाधिकारों के हनन के सभी आरोपों से इनकार करता रहा है। चीन का दावा रहा है वह इस क्षेत्र में अलगाववाद और इस्लामी उग्रवाद को हतोत्साहित करने के लिए “पुर्न शिक्षा” शिविरों में उइगर मुसलमानों को रखता है।