नई दिल्ली, एजेंसी।  सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) द्वारा 16 जून को आयोजित की जानी वाली आईएनआई सीईटी परीक्षा को एक महीने के टालने का आदेश दिया है। कोविड-19 की स्थिति को देखते हुए शीर्ष अदालत ने यह निर्णय लिया है। जस्टिस इंदिरा बनर्जी और जस्टिस एमआर शाह की पीठ ने एम्स द्वारा 16 जून को आईएनआई सीईटी परीक्षा आयोजित करने के फैसले को मनमाना करार दिया है। पीठ ने परीक्षा को स्थगित करते हुए एम्स को एक महीने के बाद किसी भी तारीख को आयोजित करने की इजाजत दे दी है।

सुनवाई की शुरुआत में एम्स की ओर से पेश वकील दुष्यन्त पराशर ने परीक्षा को स्थगित करने वाली याचिकाओं का विरोध करते हुए कहा है कि यह परीक्षा को आयोजित करना जरूरी है। उन्होंने कहा कि परीक्षा की तैयारी पूरी हो गई है। साथ ही पराशर ने उस आदेश का भी हवाला दिया, जिसमें कहा गया था कि परीक्षाएं चलती रहनी चाहिए। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने एम्स की दलीलों को नकारते हुए कहा कि प्रथम दृष्टया हमारा मानना है कि आईएनआई सीईटी परीक्षा, 2021 को कम से कम एक महीने के लिए स्थगित किया जाना चाहिए।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि यह जरूर है कि दिल्ली में कोविड-19 कई स्थिति में काफी सुधार है, लेकिन देश के कई हिस्सों में स्थिति अब भी खराब है। हालांकि, सुनवाई की शुरुआत में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि संविधान के अनुच्छेद-32 के तहत इस तरह की याचिकाओं पर कैसे विचार किया जा सकता है। कोर्ट ने कहा कि परीक्षा आयोजित करने का मामला नीतिगत होता है, ऐसे में हमारी ओर से कैसे दखल दिया जा सकता है।

ढाई दर्जन डॉक्टरों ने लगाई थी याचिका

दरअसल, ढाई दर्जन डॉक्टरों ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) द्वारा 16 जून को आयोजित होने वाली आईएनआई सीईटी परीक्षा, 2021 को स्थगित करने की गुहार लगाई थी। यह परीक्षा चिकित्सा शिक्षा क्षेत्र में उच्च स्तरीय पाठ्यक्रमों में प्रवेश के लिए आयोजित की जाती है।

पीएमओ से मिले आश्वासन की अवहेलना

दो अलग-अलग याचिकाओं में कहा गया था कि 16 जून को परीक्षा आयोजित करना, प्रधानमंत्री कार्यालय  द्वारा नीट (पीजी) परीक्षा, 2021 को चार महीने के लिए स्थगित करने का निर्णय लेते वक्त पीजी परीक्षाओं को स्थगित करने के संबंध में दिए गए आश्वासन की घोर अवहेलना है। पीएमओ की ओर से यह भी कहा गया कि उक्त परीक्षा की तैयारी के लिए छात्रों को कम से कम एक महीने का समय दिया जाएगा।

अदालत में ये दलीलें बनीं आधार

याचिका में कहा गया था कि इस मामले में केवल 19 दिन की पूर्व सूचना दी गई है। याचिकाकर्ता डॉक्टरों का कहना था कि कोरोना काल में वे फ्रंट लाइन वर्कर्स की तरह काम कर रहे हैं। ऐसे में 19 दिनों की पूर्व नोटिस पर परीक्षा आयोजित करना उचित नहीं है। इसके अलावा उनका यह भी कहना था कि परीक्षा केंद्र अलग-अलग राज्यों में हैं या उम्मीदवारों के काम करने की जगह से दूर हैं। कोविड-19 को लेकर पाबंदियों की वजह से परीक्षा के लिए बाहर जाने में परेशानी आ सकती है।

 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *