नयी दिल्ली, एजेंसी। दिल्ली के उप राज्यपाल (एलजी) और केंद्र ने दिल्ली उच्च न्यायालय से कहा है कि पिछले साल गणतंत्र दिवस पर हुई हिंसा और 2020 के दंगों के मामलों के लिए एलजी ने प्रभावी, निष्पक्ष और न्यायोचित मुकदमे के हित में विशेष सरकारी अभियोजकों (एसपीपी) की नियुक्ति की थी क्योंकि दोनों ही मामले ‘गंभीर राष्ट्रीय चिंता’ वाले हैं।

दिल्ली पुलिस के चुने हुए वकीलों को एलजी द्वारा एसपीपी नियुक्त किये जाने को चुनौती देने वाली दिल्ली सरकार की याचिका पर अपने साझा जवाब में उन्होंने कहा कि चूंकि दोनों मामले संसद के कानूनों- नागरिकता संशोधन कानून और कृषि कानूनों से सीधे ताल्लुक रखते थे, इसलिए राष्ट्रपति के प्रतिनिधि के रूप में उप राज्यपाल की जिम्मेदारी है कि वह ‘इन मामलों में और अधिक सक्रिय भूमिका अदा करें’।

उन्होंने दावा किया कि ये मामले ‘अत्यंत संवेदनशील प्रकृति’ के हैं और ‘सार्वजनिक व्यवस्था’ से जुड़े हैं जो दिल्ली सरकार के दायरे में नहीं आते।

दोनों ने दलील दी कि महज इसलिए इन मामलों को सीधे दिल्ली सरकार के नियंत्रण में नहीं बताया जा सकता क्योंकि घटनाएं राष्ट्रीय राजधानी के भौगालिक न्यायक्षेत्र में घटीं।

उनके हलफनामों में कहा गया है कि दंगों ने देश के धर्मनिरपेक्ष तानेबाने को चुनौती दी और इसलिए देश की एकता एवं अखंडता के हित में केंद्र सरकार का प्रत्यक्ष रूप से शामिल होना अपेक्षित था, वहीं पूरे देश में किसानों के प्रदर्शन हुए और इन पर अंतरराष्ट्रीय नजरें भी रहीं।

उप राज्यपाल के विशेष सचिव द्वारा दाखिल संयुक्त हलफनामे में कहा गया, ‘‘हिंसा की दुर्भाग्यपूर्ण घटनाओं की वजह से सार्वजनिक व्यवस्था बिगड़ी और (पूर्वोत्तर दिल्ली के सांप्रदायिक दंगों में) जान-माल की हानि हुई। उसी समय जारी किसान आंदोलन और हिंसा की दुर्भाग्यपूर्ण घटना ने मामलों में प्रभावी, निष्पक्ष और न्यायोचित मुकदमे की जरूरत रेखांकित की ताकि देश के कानून व्यवस्था के तंत्र पर भरोसा कायम रहे।’’

अदालत ने पिछले साल 27 अगस्त को दिल्ली सरकार की याचिका पर नोटिस जारी किया था और उप राज्यपाल तथा केंद्र को याचिका तथा फैसले पर रोक लगाने का अनुरोध करने वाले आवेदन पर जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया था।

 

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