नई दिल्ली, एजेंसी। मुंबई स्थित एक अस्पताल को उसकी लापरवाही के कारण शिकायती को 14 लाख से ऊपर के भुगतान मामले में सुप्रीम कोर्ट से बड़ी राहत मिली है। नैशनल कंज्यूमर फोरम के निर्देश को अस्पताल ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी जिसपर, कोर्ट ने अपना फैसला सुनाया है। सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि, अस्पताल में ऑपरेशन थियेटर उपलब्ध न होना अस्पताल और डॉक्टर की मेडिकल लापरवाही नहीं है। अगर इमरजेंसी में किसी मरीज को सर्जरी की जरूरत है और उस वक्त ओटी (OT) खाली न हो और वहां दूसरे मरीज का ऑपरेशन चल रहा तो तो इस मामले में अस्पताल की लापरवाही नहीं मानी जा सकती।
मामले की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा, ” इमरजेंसी ओटी हमेशा खाली हो यह जरूरी नहीं है। जब मरीज को गंभीर स्थिति में अस्पताल में लाया गया उसके बाद उसकी सर्जरी की गई लेकिन, उसे बचाया नहीं जा सका। इसके लिए अस्पताल और डॉक्टर पर आरोप नहीं लगाया जा सकता क्योंकि, अस्पताल में डॉक्टरों ने मरीज के इलाज की हरसंभव कोशिश की लेकिन मरीज बचाया नहीं जा सका। इलाज के दौरान तमाम एक्सपर्ट्स की भी मदद ली गई। सर्जरी में कोई लापरवाही हुई हो इसका कोई सबूत नहीं है। ऐसी अपेक्षा नहीं की जा सकती है कि, अस्पताल में मरीज के बेड के बगल में हमेशा डॉक्टर खड़ा मिले।”
सर्वोच्च न्यायालय के जस्टिस हेमंत गुप्ता की अगुवाई वाली बेंच ने कहा कि, मरीज को अटेंड न किया गया हो ऐसा मामला नहीं है। उसे गंभीर स्थिति में मुंबई स्थित अस्पताल में लाया गया था लेकिन, सर्जरी के बाद भी वह नहीं बच पाया। चूंकि डॉक्टर ने इलाज की हरसंभव कोशिश की इसलिए ये नहीं कहा जा सकता है कि डॉक्टर या अस्पताल ने लापरवाही की। उसका डीएसए टेस्ट 22 अप्रैल 1998 को किया गया था। अस्पताल में चारों ओटी में ऑपरेशन चल रहे थे। स्पेशलिस्ट डॉक्टरों ने उसे देखा था। कोई भी डॉक्टर किसी मरीज के जीवन को सुनिश्चित नहीं कर सकता है, वह सिर्फ इलाज कर सकता है । ओटी का खाली न होना मेडिकल लापरवाही का मामला नहीं बनता है।
कोर्ट ने आगे कहा, ” टेस्ट में देरी मशीन में तकनीकी खामी के कारण अगर हुई, तो यह डॉक्टर के नियंत्रण के बाहर की बात थी। ” अदालत ने कहा कि, अंतरिम आदेश के तहत पांच लाख रुपये जो शिकायती को दिए गए थे वह अनुग्रह राशि के तौर पर माना जाएगा। अस्पताल की अर्जी सुप्रीम कोर्ट ने स्वीकार कर ली। वहीं, शीर्ष अदालत ने नैशनल कंज्यूमर फोरम के फैसले को खारिज कर दिया
आपको बता दें कि, मौजूदा मामला नैशनल कंज्यूमर फोरम में तब आया था जब, 2010 में कंज्यूमर फोरम ने मुंबई स्थित एक अस्पताल को निर्देश दिया था कि, वह मेडिकल लापरवाही के एवज में शिकायती को 14 लाख 18 हजार 491 रुपये का भुगतान करे जिसके बाद अस्पताल की ओर से सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया गया था।