नई दिल्ली, एजेंसी।  केंद्रीय अर्धसैनिक बलों में पिछले एक दशक के दौरान 81000 जवानों ने स्वैच्छिक रिटायरमेंट ले ली है। इतना ही नहीं, वर्ष 2011-20 तक 16 हजारों जवानों ने नौकरी से त्यागपत्र दे दिया। कॉन्फेडरेशन ऑफ एक्स पैरामिलिट्री फोर्स वेलफेयर एसोसिएशन का कहना है, कि एक सिपाही को भर्ती करने से लेकर उसकी ट्रेनिंग और उसे ड्यूटी देने तक सरकार के 15 से 20 लाख रुपये खर्च हो जाते हैं। इतनी भारी संख्या में जवानों के समय से पहले रिटायरमेंट लेने और नौकरी से त्यागपत्र देने के कई बड़े कारण हैं। केंद्र में एक दशक के दौरान दो सरकारें आई हैं, मगर किसी ने भी ‘सीएपीएफ’ को जानने की जरूरत नहीं समझी। जवानों को समय पर छुट्टी नहीं मिलती, सौ दिन का अवकाश देने की घोषणा दो साल से फाइलों में ही घूम रही है। केंद्रीय गृह मंत्रालय से आरटीआई के जरिए जब इस घोषणा के अमल को लेकर जानकारी मांगी गई तो वह देने से मना कर दिया गया।

‘नॉन फैमिली स्टेशन’ की पोस्टिंग वाले ‘सीएपीएफ’ जवानों को अपना सरकारी आवास बचाने के लिए अदालत में जाना पड़ रहा है, जबकि ये मामला केंद्रीय गृह मंत्रालय और शहरी विकास मंत्रालय आसानी से निपटा सकते हैं। परिवार की सुरक्षा के लिए ‘सीएपीएफ’ जवानों को वकीलों की महंगी फीस देनी पड़ रही है। फोर्स से मोहभंग होने के कई दूसरे कारण भी हैं।

‘100 दिन’ छुट्टी की घोषणा बेमानी सी लगती है…

कॉन्फेडरेशन ऑफ एक्स पैरामिलिट्री फोर्स वेलफेयर एसोसिएशन के महासचिव रणबीर सिंह के अनुसार, केंद्र सरकार ने इन बलों में पुरानी पेंशन व्यवस्था लागू करने की तरफ ध्यान नहीं दिया। इन बलों में 2004 के बाद से पुरानी पेंशन खत्म कर दी गई है। समय पर जवानों को छुट्टी नहीं मिल रही। कई महीनों तक उन्हें परिवार से दूर रहना पड़ता है। सीआईएसएफ के जवानों को मात्र 30 दिन का वार्षिक अवकाश मिलता है। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की वह घोषणा कि एक साल में ‘100 दिन’ जवान अपने परिवार के साथ रह सकेंगे, बेमानी सी लगती है। महासचिव रणबीर सिंह ने गृह मंत्रालय में आरटीआई लगाकर फोर्स-वाइज यह जानकारी मांगी थी कि कितने जवानों को पिछले साल 100 दिन का अवकाश दिया गया है। मंत्रालय ने जानकारी देने से ही मना कर दिया। छुट्टी न मिलने और ड्यूटी की अधिकता के चलते जवानों में चिड़चिड़ापन आ जाता है। वे मानसिक तनाव के शिकार हो रहे हैं।

सरकारी आवास के लिए दिल्ली उच्च न्यायालय में गुहार

बाढ़, भूकंप जैसी प्राकृतिक आपदाएं या फिर समय-समय पर होने वाले चुनाव, जवानों की दिनचर्या पर गहरा असर डालते हैं। असामयिक आगजनी, हड़ताल व सांप्रदायिक दंगों में इन सुरक्षा बलों की जिम्मेदारी बढ़ जाती है। शिक्षा, चिकित्सा, आवास एवं पुनर्वास जैसी मूलभूत सुविधाओं की भारी कमी का होना भी इन जवानों का बलों से मोहभंग होने का एक बड़ा कारण है। भारत की पहली रक्षा पंक्ति यानी ‘बीएसएफ’ के जवानों को सरकारी आवास के लिए दिल्ली उच्च न्यायालय में गुहार लगानी पड़ रही है। सुरक्षा बलों में अफसरशाही हावी हो रही है। इसका शिकार सिपाही, हवलदार और निरीक्षक रैंक तक के जवान बनते हैं। पिछले साल ही सीआरपीएफ में एक डीआईजी ने जवान के चेहरे पर खौलता पानी उड़ेल दिया था। हरियाणा में पांच साल पहले ‘सैनिक विभाग और अर्धसैनिक कल्याण, हरियाणा सरकार’ की स्थापना की गई, लेकिन अभी तक ‘सीएपीएफ’ मुख्यालयों से जवानों व उनके परिजनों का रिकॉर्ड तक विभाग के पास नहीं पहुंच सका है। यह एक बड़ी सरकारी लापरवाही है।

सीएपीएफ के साथ दोहरी नीति आखिर क्यों ?

सीएपीएफ में जवानों के बच्चों के लिए उत्तम शिक्षण संस्थानों की बेहद कमी झलकती है। पिछले बजट में केंद्रीय वित्त मंत्री द्वारा सेना के लिए 100 सैनिक स्कूल खोलने की घोषणा की गई, लेकिन अर्धसैनिक बलों के लिए इस प्रकार की कोई घोषणा नहीं हुई। रणबीर सिंह के मुताबिक, बेहतर होता कि 3500 करोड़ रुपये की सरदार पटेल की मूर्ति स्थापित करने के बजाए उनके नाम पर उच्च शिक्षा के लिए अर्धसैनिक स्कूल खोल दिए जाते। केंद्रीय अर्धसैनिक बलों की सेंट्रल पुलिस कैंटीन जो कि जीएसटी के चलते बाजार भाव पर आ गई है, क्या पैरामिलिट्री चौकीदारों को हक नहीं कि उन्हें भी जीएसटी से छूट मिले।

सेना के जवान सीएसडी कैंटीन में जीएसटी छूट का लाभ उठा रहे हैं। सीएपीएफ के साथ दोहरी नीति आखिर क्यों अपनाई जा रही है। जवानों को ‘एनपीएस’ का झुनझुना थमा दिया गया है। इससे जवानों को रिटायरमेंट के बाद अपना भविष्य अंधकारमय लग रहा है। हैरानी की बात है कि किसी भी बल के आईपीएस डीजी ने पुरानी पेंशन बंद किए जाने का विरोध नहीं किया। आईपीएस लॉबी का कैडर अफसरों के प्रति सौतेला व्यवहार जगजाहिर है। कैडर रिव्यू में निचले स्तर के फॉलोवर्स रैंक से निरीक्षक रैंक तक के कमेरा वर्ग की अनदेखी की जा रही है। उच्च स्तर के एडीजी, आईजी, डीआईजी व कमांडेंट आदि पदों की बेहिसाब वृद्धि हो रही है। कंपनी व बटालियन में कार्यरत सिपाहियों के पदों में कमी करना, ये सब बातें जवानों का मोह भंग करने के लिए पर्याप्त हैं।

नेताओं-नौकरशाहों को ‘सीएपीएफ’ से कोई लेना देना नहीं

कॉन्फेडरेशन ऑफ एक्स पैरामिलिट्री फोर्स वेलफेयर एसोसिएशन, पिछले 7 सालों से अर्धसैनिक बलों के हकों के लिए बराबर धरना प्रदर्शन कर रही है। सरकार के मंत्रियों, ब्यूरोक्रेट्स, बलों के डीजी, केंद्रीय मंत्रियों, मुख्यमंत्रियों व राज्यपालों से मुलाकात कर उन्हें सीएपीएफ जवानों की मांगों को लेकर ज्ञापन सौंपा गया है। कहीं से कोई कार्यवाही नहीं हुई। बतौर रणबीर सिंह, दरअसल केंद्र सरकार को अर्धसैनिक बलों से कोई लेना देना नहीं है। मौजूदा प्रधानमंत्री, सिने जगत के नायक नायिकाओं, खेल जगत के खिलाड़ियों से मिल सकते हैं तो फिर पैरामिलिट्री चौकीदारों से क्यों नहीं मिल रहे हैं। वे कई वर्षों से उनके बीच पहुंचकर दिवाली मनाते रहे हैं। एसोसिएशन ने इस बार भी प्रधानमंत्री मोदी से मांग की है कि 15 अगस्त को जब वे लालकिला की प्राचीर से देश को संबोधित करें तो उसमें केंद्रीय सुरक्षा बलों की पुरानी पेंशन बहाली व अन्य कल्याणकारी योजनाओं की घोषणा शामिल करें।

 

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