नई दिल्ली, एजेंसी। दुनिया भर में पिछले एक साल से कोरोना वायरस का कहर जारी है। कोरोना संक्रमण की रफ्तार एक बार फिर बेकाबू हो गई है। भारत, अमेरिका, रूस और ब्रिटेन समेत ज्यादातर देशों में महामारी पर नियंत्रण पाने के लिए लोगों का तेजी से टीकाकरण किया जा रहा है। इस बीच एक हैरान कर देने वाला आंकड़ा सामने आया है। एक शोध से पता चला है कि जहां दुनिया भर में एक फीसद लोग ही कोरोना वायरस से दोबारा संक्रमित हुए हैं। वहीं भारत में यह दर 4.5 फीसद पहुंच चुकी है।
एचटी में प्रकाशित एक रिपोर्ट के मुताबिक, ‘इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च’ के वैज्ञानिकों द्वारा किए गए एक अध्ययन में बताया गया कि दुनिया भर में अब तक कोरोना वायरस से दोबारा संक्रमित होने वाले मरीजों की दर एक फीसदी ही है,जबकि भारत में दोबारा संक्रमित होने वाले मरीजों की संख्या 4.5 फीसदी से अधिक हो चुकी है।हालांकि, इस अध्ययन में पहले और दूसरे संक्रमण के जीनोम का विश्लेषण नहीं किया गया है।
‘इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च’ के वैज्ञानिकों की ओर से किए गए अध्ययन में कहा गया है कि देश में एक बार फिर कोरोना संक्रमण के मामलों में भारी उछाल और नए कोविड स्ट्रेन चिंता का विषय हैं। महाराष्ट्र समेत कई राज्यों में हालात भयावह होते जा रहे हैं। फिलहाल देश में कोरोना वायरस से दोबारा संक्रमित होने की दर 4.5 फीसदी है, जो और बढ़ सकती है।
बता दें कि दोबारा संक्रमित होने का मतलब है कि पहली बार संक्रमण से ठीक होने के बाद मरीज के शरीर में जो एंटीबॉडीज बनी थी, वो नष्ट हो गई। कुछ मरीजों में दूसरी बार संक्रमित होने पर पहली बार से ज्यादा गंभीर लक्षण पाए गए हैं।
दूसरी खुराक देने का अंतराल बढ़ाया जाए
अध्ययन में कहा गया कि कुछ रिपोर्ट हैं, जिनसे पता चलता है कि डॉक्टर कोविड वैक्सीन की दोनों डोज लगवा चुके हैं, जोकि निर्धारित की गईं हैं। वैज्ञानिकों के मुताबिक, कोविड वैक्सीन की दूसरी डोज लगवाने के बाद दो हफ्ते बाद शरीर में एंटीबॉडी बनती हैं। ऐसे में अध्ययन में कोविशील्ड वैक्सीन की दूसरी डोज को देने में अंतराल को बढ़ाने की सिफारिश की गई है ताकि प्रतिरक्षा को अधिकतम किया जा सके।
बता दें कि भारतीय कोविड वैक्सीन के 70 से 80 फीसदी प्रभावी होने का दावा किया जा रहा है। वहीं कोविड वैक्सीन निर्माता कंपनियों के दावे के मुताबिक,कोरोना से होने वाली मौतों को रोकने के लिए सौ फीसदी प्रभावी हैं। कोरोना की दूसरी लहर के दौर में संक्रमण की अपेक्षा मौतों की संख्या कम होना राहत की बात है।