रायपुर, एजेंसी फल खाइए और भूलने की बीमारी को ही भूल जाइए। जी हां, बुढ़ापे में होने वाली भूलने की बीमारी ‘अल्जाइमर’ के लिए जिम्मेदार ‘एसिटाइल कोलीन एस्टरेज’ नामक एंजाइम से मुकाबले में फल उपयोगी होते हैं, जिनमें कुछ जंगलों में ही पाए जाते हैं। इनमें पाए जाने वाले औषधीय गुण स्मृति लोप के कारकों को नियंत्रित करते हैं। छत्तीसगढ़ के जंगलों में पाए जाने वाले करीब 30 प्रकार के फलों में से छह में गुणकारी तत्व मिले हैं।

ये हैं पीपल (फाइकस रिलिजियोसा) का फल, कसही (ब्राइडेलिया रिट्युसा), तेंदु (डायोस्पाइरास मेलेनोजाइलोन), कदंब (नियोलैर्मािकया कदंबा), छिन (फिनिक्स सिल्वेस्ट्रिक्स) और भेलवा (सेमेकार्पस एनार्कािडयम)। इनके अलावा अमरूद, जामुन, बेर, बेल, इमली, महुआ आदि फलों के रसों में भी सूक्ष्म उपयोगी गुण मिले हैं। पंडित रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय के जीवन विज्ञान अध्ययनशाला (लाइफ साइंस) के अनुसंधानकर्ता प्रोफेसर रोहित कुमार प्रधान और शोधार्थी ज्ञानचंद्र साहू ने अध्ययन के बाद बताया कि उक्त जंगली फलों को आहार में शामिल करके न्यूरो ट्रांसमीटर को सुरक्षित रखा जा सकता है। इससे भूलने की बीमारी यानी अल्जाइमर की समस्या आदमी के नजदीक भी नहीं आएगी।

गौरतलब है कि हमारे मस्तिष्क में असंख्य तंत्रिका कोशिकाएं होती हैं, जिनके बीच सूचनाओं का आदान-प्रदान ‘एसिटाइल कोलीन’ के जरिये होता है, लेकिन अल्जाइमर रोग की अवस्था में ‘एसिटाइल कोलीन एस्टरेज’ की मात्रा बढ़ जाती है, जो एसिटाइल कोलीन को निष्क्रिय कर देती है। इस कारण कोई भी आदमी छोटी-छोटी बातों को भी कम समय में ही भूलने लगता है। अध्ययन में विज्ञानियों ने पाया कि जंगली फलों में तंत्रिका तंत्र की कोशिकाओं को स्वस्थ रखने के गुण मौजूद हैं। इससे भूलने के कारकों को नियंत्रित किया जा सकता है।

ऐसे किया अध्ययन:

लोगों के खान-पान में किस खास फल, फूल या सब्जी को शामिल करके किस बीमारी को रोकने का प्रयास किया जा सकता है, इस बात को ध्यान में रखकर अध्ययन किया गया। जंगल से फल लाकर उनके रस आदि का एसिटाइल कोलीन एस्टरेज पर प्रभाव देखा गया। जांच में पाया गया कि इन फलों के औषधीय तत्व एसिटाइल कोलीन एस्टरेज की अतिरिक्त मात्रा को नियंत्रित करते हैं।

ये है ‘भूलने का रोग’:

‘भूलने का रोग’ यानी अल्जाइमर के लक्षणों में याददाश्त की कमी होना, निर्णय न ले पाना, बोलने में दिक्कत आना शामिल है। इसकी वजह से सामाजिक और पारिवारिक समस्याओं की गंभीर स्थिति बन जाती है। बुजुर्गों पर अल्जाइमर का सबसे अधिक प्रभाव होता है। शुरुआती दिनों में इससे पीड़ित व्यक्ति को बातें याद रखने में काफी मुश्किलें आती हैं। वह याद करने की कोशिश तो करता है, लेकिन दिमाग तक वह बात पहुंचनी बंद हो जाती है। जब ये बीमारी गंभीर रूप ले लेती है तो धीरे-धीरे व्यक्ति अपने जीवन के खास लोगों को भी भूल जाता है। इसलिए प्रभावकारी होगा अनुसंधान: जीवन विज्ञान के विशेषज्ञ प्रो. प्रधान ने बताया कि रासायनिक तत्वों की जगह आर्गेनिक व हर्बल उपचार का विकल्प ढूंढने के लिए यह अनुसंधान किया गया है। अनुमान है कि देश में वर्ष 2050 तक अल्जाइमर के मरीजों की संख्या 50 लाख तक पहुंच जाएगी। इसे देखते हुए यह शोध काफी लाभकारी साबित हो सकता है।

मस्तिष्क रोग विशेषज्ञ डा. अभिजीत कुमार ने बताया कि विश्व में सबसे अधिक युवा भारत में हैं। इसकी वजह से भविष्य में बुजुर्ग भी सबसे अधिक भारत में होंगे। चूंकि, यह बीमारी सबसे अधिक बुजुर्गों को प्रभावित करती है, इसलिए चुनौती से मुकाबले के लिए रणनीतिक तैयारी जरूरी है। भूलने की बीमारी के उपचार के लिए दवाइयों पर लगातार अनुसंधान चल रहा है। विवि में जिन फलों पर प्रारंभिक अध्ययन हुआ है, उन पर विस्तार से प्रयोग करने पर सार्थक परिणाम की उम्मीद की जा सकती है।

 

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