नई दिल्ली, एजेंसी : पांच साल पहले वह ऐन वक्त पर दबोच नहीं लिया जाता तो दिल्ली फिर दहल उठती। अब उस आतंकी का डीटेल खुद उसके संगठन ने ही जारी किया है। इस्लामिक स्टेट ऑफ खुरासान प्रॉविंस (ISKP) ने अपनी मैग्जीन जारी की है। ‘वॉइस ऑफ खुरासान’ नाम से जारी पत्रिका के पहले अंक में इस खूंखार आतंकी संगठन ने बताया है कि कैसे सुइसाइड मिशन पर 2017 में दिल्ली पहुंचा अब्दुर्रहमान अल लोगरी पुलिस के हत्थे चढ़ गया था। आईएसकेपी का दावा है कि दिल्ली पुलिस अगर हफ्ते भर तक लोगरी का पता लगाने में चूक जाती तो दिल्ली को दहलाने का मिशन पूरा हो जाता। उसी लोगरी ने पिछले साल काबुल एयरपोर्ट पर आत्मघाती हमला किया था।
अफगानिस्तान में जन्मा, पाकिस्तान में हुई पढ़ाई
आईएसकेपी की मानें तो लोगरी का बचपन पाकिस्तान में बीता था। वह अपने किशोरावस्था में पत्रकारिता करने का शौकीन था और पांच भाषा बोलने में सक्षम था। वॉइस ऑफ खुरासान में बताया गया है कि कैसे लोगरी अफगानिस्तान की बगराम जेल से फरार हो गया था और 11वें दिन ही उसने काबुल एयरपोर्ट के एंट्रेंस पर खुद उड़ा लिया था। उस वक्त काबुल पर तालिबान का कब्जा हो गया था और अमेरिकी सेना की देखरेख में विदेशियों के साथ-साथ भारी संख्या में अफगानी नागरिकों को भी विमानों के जरिए बाहर निकाला जा रहा था।
सितंबर 2021 में भी खुला था अब्दुर्रहमान का राज
इस्लामिक स्टेट ने भारत में जुड़ी अपनी आतंकी गतिविधियों को लेकर पिछले सितंबर में प्रकाशित मैग्जीन ‘स्वात अल हिंद’ में भी इस बात की पुष्टि की थी कि काबुल एयरपोर्ट को उड़ाने वाला दिल्ली में पकड़ा गया था। अब आईएसकेपी ने उसके दावे की पुष्टि करते हुए आतंकी का नाम और तस्वीर भी सार्वजनिक कर दी। मैग्जीन में विस्तार से बताया गया है कि कैसे दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल ने लोगरी को कॉलेज से दबोचकर काबुल में अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआईए को सौंप दिया था। सीआईए ने बगराम एयरबेस पर उससे एक हफ्ते तक पूछताछ की थी। उसी की दी गई जानकारी पर अमेरिकी सेना ने हिंदुकुश की पहाड़ियों पर ड्रोन हमलों के जरिए आईएसआईएस के 400 से भी ज्यादा आतंकियों को मौत के घाट उतार दिया था।
अमीर परिवार में पैदा हुआ था लोगरी
आईएसकेपी की पत्रिका के मुताबिक, अब्दुर्रहमान अल लोगरी का जन्म वर्ष 1996 में अफगानिस्तान के लोगर प्रांत में हुआ था। वह बहुत अमीर परिवार में पैदा हुआ था। मैग्जीन के मुताबिक, ‘पाकिस्तान में पढ़ाई के बाद लोगरी 2016 में अफगानिस्तान लौट गया था जहां उसकी मुलाकात इस्लामिक स्टेट के लिए आतंकियों की भर्ती करने वालों से हुई। उस वक्त विलाया खुरासा की नई-नई स्थापना हुई थी। लोगरी ने मुजाहिद को रूप में ट्रेनिंग ली और सोशल मीडिया के जरिए दुनियाभर में कई लोगों को जिहाद का संदेश देता रहा।’
जिहादी ट्रेनिंग के बाद बना सुइसाड बॉम्बर
मैग्जीन में प्रकाशित लेख में दावा किया गया है कि ट्रेनिंग के दौरान लोगरी विस्फोटकों की विशेषज्ञता हासिल कर ली थी। उसके बाद वह तुरंत अमेरिका सेना के खिलाफ साजिशों में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेने लगा। उसकी रुचि आत्मघाती हमलों में बढ़ गई और एक दिन उसे सुइसाइड अटैक के लिए चुन लिया गया। अपनी बारी आने के इंतजार में उसने आत्मघाती दस्ते के अपने साथियों से कहा कि वो अपनी अंतिम इच्छा अपने-अपने परिवारों को बता दें।
2017 में दिल्ली आकर प्राइवेट संस्थान में लिया था एडमिशन
पत्रिका में कहा गया है, ‘वर्ष 2017 में उसे आईएसकेपी ने एक इस्तहादी मिशन (सुइसाइड मिशन) पर भारत भेजा था। वह दिल्ली पहुंचा और बाहरी दिल्ली की एक प्राइवेट यूनिवर्सिटी में एडमिशन ले लिया।’ इसमें आगे कहा गया है, ‘वह अपने मिशन को अंजाम देने से एक सप्ताह पहले गिरफ्तार कर लिया गया। दरअसल, उसका एक साथी भारत की खुफिया एजेंसी के हाथ लग गया और उसी ने लोगरी की जानकारी दे दी।’ लोगरी को अफगानिस्तान भेजने से पहले भारत में भी पूछताछ की गई थी। अफगानिस्तान में उसे पांच साल की जेल की सजा मिली थी। उसे काबुल के पुर-ए-चल्खी जेल में रखा गया था।
बगराम जेल पर आतंकी हमले के दौरान भाग निकला
लेख में कहा गया है, ‘दौलतमंद परिवार से होने के नाते उस पर जिहाद छोड़ने का गहरा पारिवारिक दबाव था। उसे परिवार वालों ने उसे जिहाद छोड़ने के बदले उसकी मर्जी की जिंदगी बिताने का पूरा खर्च उठाने का ऑफर दिया। हालांकि, वह अपने रास्ते पर अटल रहा। आखिर में परिवार ने उससे नाता तोड़ लिया और पैसे देने बंद कर दिए। जेल की सजा के चौथे साल में उसे टीबी हो गया और उसे सीआई के आग्रह पर अफगानिस्तान सरकार ने बगराम जेल में शिफ्ट कर दिया। तब उसे अकेले में रखकर दो हफ्तों तक काबुल में आत्मघाती हमलों के बारे में पूछताछ की गई।’
काबुल एयरपोर्ट पर सुइसाइड अटैक में ली 183 जानें
आईएसकेपी ने अपनी पत्रिका में कहा है कि पिछले वर्ष 15 अगस्त को आईएस ने जेल पर हमला बोलकर करीब दो हजार आतंकियों और उनके परिवारों को छुड़ा लिया। जेल से भागने के बाद लोगरी ने घर जाने के बजाय सुइसाइड मिशन पर भेजे जाने का जिद्द पर अड़ गया। 26 अगस्त को तालिबान के चेकपोस्ट्स से बचते हुए काबुल एयरपोर्ट पहुंच गया और एंट्रेस के लिए लगी लाइन में घुस गया। जैसे ही सुरक्षा बल का जवान जांच के लिए लोगरी की तरफ बढ़ा, उसने खुद को उड़ा लिया। उस आत्मघाती हमले में 183 लोगों की जानें गईं जिनमें 13 अमेरिकी सेना के जवान थे।