नई दिल्ली, एजेंसी ; सुप्रीम कोर्ट ने उस याचिका पर केंद्र सरकार को नोटिस जारी कर जवाब दाखिल करने को कहा है जिसमें याचिकाकर्ता ने कहा है कि देशभर के प्रत्येक नागरिकों के लिए उत्तराधिकार संबंधी नियम और आधार एक होना चाहिए। मौजूदा समय में अलग-अलग धर्म और लिंग के आधार पर अलग-अलग कानून है। याचिकाकर्ता ने कहा कि देशभर के प्रत्येक नागरिक के लिए उत्तराधिकार का आधार एक होना चाहिए और ये धर्म या लिंग के आधार पर अलग-अलग नहीं बल्कि यूनिफॉर्म होना चाहिए।

सुप्रीम कोर्ट में याचिकाकर्ता वकील अश्विनी उपाध्याय ने अर्जी दाखिल कर कहा कि उत्तराधिकार के नियम और आधार जेंडर न्यूट्रल और रिलिजन न्यूट्रल होना चाहिए। यानी लैंगिक अथवा धार्मिक भेदभाव के बिना यह नियम प्रत्येक नागरिक के लिए एकसमान होना चाहिए। याचिका में कहा गया है कि संविधान में समानता और जीवन का अधिकार प्रत्येक नागरिक को मिला हुआ है और उसके मद्देनजर उत्तराधिकार नियम एक समान होना चाहिए। अभी देशभर में अलग-अलग धर्मों के लिए उत्तराधिकार अधिनियम अलग-अलग हैं।

हिंदू के लिए हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम 1956 है जबकि मुस्लिम में ये शरियत लॉ 1937 से रेग्युलेट होता है। ईसाई और पारसी धर्म में इंडियन सक्सेशन एक्ट 1925 लागू है। मौजूदा नियम के तहत हिंदू महिलाओं को पैतृक संपत्ति में अधिकार है, लेकिन मुस्लिम, ईसाई और पारसी महिलाओं को यह अधिकार नहीं है। हिंदुओं के बेटों और बेटियों को समान अधिकार है जबकि बाकी धर्मों में बेटो और बेटिंयों के अधिकारों में अंतर है। हिंदू, पारसी और ईसाई महिला को विल यानी वसीयत बनाने का अधिकार है, लेकिन मुस्लिम महिलाओं को ये अधिकार नहीं है। हिंदू पत्नी को बाकी वारिस की तरह हिस्सा मिलने का अधिकार है, लेकिन ईसाई, पारसी और मुस्लिम पत्नी को ये अधिकार नहीं है।

सुप्रीम कोर्ट में याची ने गृह मंत्रालय, कानून मंत्रालय और महिला एवं बाल विकास मंत्रालय को प्रतिवादी बनाकर गुहार लगाई है कि उत्तराधिकार संबंधित विषमताओं को दूर किया जाए और इसे जेंडर न्यूट्रल और रिलिजन न्यूट्रल किया जाए। सभी नागरिकों के लिए उत्तराधिकार संबंधित नियम के आधार एक हों। याचिकाकर्ता ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट संविधान का कस्टोडियन है। ऐसे में वह अनुच्छेद-14, 15 और 21 के मद्देनजर वैसे प्रावधान को खत्म करे जो भेदभावपूर्ण हैं।

 

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