नई दिल्ली, एजेंसियां। भारतीय नौसेना अब और भी पावरफुल होने वाली है। उसे इस साल अमेरिका से दुनिया के बेहतरीन MH-60R सीहॉक हेलिकॉप्टर मिलेंगे। भारत को 24 में से 2 हेलिकॉप्टर जुलाई में, जबकि एक साल के आखिर में मिलेगा। यह हेलिकॉप्टर समुद्री जहाजों और पनडुब्बियों को ढूंढकर मारने की क्षमता रखते हैं।

अधिकारियों के मुताबिक, नौसेना के करीब 15 ऑफिसर अभी हेलिकॉप्टर ऑपरेट करने की ट्रेनिंग ले रहे हैं। यह ट्रेनिंग सोमवार से अमेरिका में फ्लोरिडा के पेंसाकोला शहर में शुरू हुई है।

सीहॉक हेलिकॉप्टर ब्रिटिश सी किंग की जगह लेंगे

रोमियो सीहॉक हेलिकॉप्टरों को लॉकहीड-मार्टिन कंपनी ने बनाया है। भारत सरकार का पिछले साल ही हेलिकॉप्टर खरीदने को लेकर अमेरिकी सरकार से करार हुआ था। 24 हेलिकॉप्टर्स की कीमत करीब 17,500 करोड़ रुपए है। करार के मुताबिक अमेरिका को सभी हेलिकॉप्टर 2024 तक भारत को देने हैं।

भारत सरकार नौसेना के लिए पिछले 15 साल में पहली बार हेलिकॉप्टर खरीद रही है। यह भारतीय नौसेना में ब्रिटिश सी किंग हेलिकॉप्टर्स की जगह लेंगे। सी किंग 2 दशक पहले ही सर्विस से रिटायर हो गए।

MH-60R के आने से नई ताकत मिलेगी

समुद्री मामलों के विशेषज्ञ रिटायर्ड रियर एडमिरल सुदर्शन श्रीखंडे ने कहा कि 1960 के बाद से किसी भी नौसेना के लिए कई तरह की विशेष क्षमता रखने वाले हेलिकॉप्टर्स बेहद जरूरी हो गए हैं। मुझे याद है कि 1980 के आखिर में सी किंग 42 और कामोव वैरियंट जैसे हेलिकॉप्टर्स बेड़े में शामिल किए गए थे। अब MH-60R के आने से नई ताकत मिलेगी।

एडवांस टेक्नोलॉजी वाले हथियारों से लैस है सीहॉक

सीहॉक हेलिकॉप्टर AGM-114 हेलफायर मिसाइल, MK 54 टॉरपीडो और एडवांस टेक्नोलॉजी वाले हथियारों से लैस है। इस डबल इंजन वाले हेलिकॉप्टर को जंगी जहाज, क्रूजर्स और एयरक्राफ्ट करियर से भी ऑपरेट किया जा सकता है। रोमियो के नाम से मशहूर MH-60R सीहॉक हेलिकॉप्टर एंटी-सबमरीन के अलावा निगरानी, सूचना, टारगेट सर्च और बचाव, गनफायर और लॉजिस्टिक सपोर्ट में कारगर है।

यह हेलिकॉप्टर दुश्मन की पनडुब्बियों को नष्ट करने के अलावा जहाजों को खदेड़ने और समुद्र में सर्च अभियान में कारगर साबित होंगे। इन हेलिकॉप्टर्स की मदद से घरेलू स्तर पर भारत की सुरक्षा मजबूत होगी और उसे क्षेत्रीय दुश्मनों से निपटने में मदद मिलेगी। अमेरिका के मुताबिक, भारत को इन हेलिकॉप्टरों को नौसेना में शामिल करने में कोई दिक्कत नहीं होगी। फिलहाल यह अमेरिकी नेवी में एंटी-सबमरीन और एंटी-सरफेस वेपन के रूप में तैनात हैं।

 

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