नयी दिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने पटना उच्च न्यायालय के उस फैसले के खिलाफ दायर एक अपील खारिज कर दी है जिसमें 38 साल पुराने मामले में एक व्यक्ति की दोषसिद्धि एवं आजीवन कारावास में बदलाव करते हुए उसे पांच साल की सजा कर दिया गया था। इस मामले में फसल की चराई को लेकर हुई मारपीट में एक व्यक्ति की मौत हो गई थी।

न्यायमूर्ति यू यू ललित, न्यायमूर्ति एस आर भट और न्यायमूर्ति बेला एम त्रिवेदी की पीठ ने कहा कि उच्च न्यायालय द्वारा किया गया आकलन ‘‘शायद उदारता बरतते हुए किया गया’’ था। पीठ ने अगस्त 2019 के फैसले में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया।

पीठ ने 14 दिसंबर के अपने आदेश में कहा, ‘‘हमें उच्च न्यायालय के फैसले और आदेश में हस्तक्षेप करने का कोई कारण नहीं दिखता। तदनुसार अपील खारिज की जाती है।’’ शीर्ष अदालत ने उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ दोषी की अपील पर सुनवाई करते हुए यह आदेश दिया।

याचिकाकर्ता और कुछ अन्य आरोपियों को बिहार की एक निचली अदालत ने हत्या सहित अन्य अपराधों के लिए दोषी ठहराया था और इस मामले में आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी। इसके बाद उन्होंने निचली अदालत के फैसले को चुनौती देते हुए उच्च न्यायालय का रुख किया था।

उच्च न्यायालय ने अपने फैसले में भारतीय दंड संहिता की धारा 302 (हत्या) के तहत कथित अपराध के लिए एक आरोपी की सजा को धारा 304 भाग 1 (गैर इरादतन हत्या) में बदल दिया था और उसे पांच साल जेल की सजा सुनाई थी। उच्च न्यायालय ने अन्य सभी आरोपियों को बरी कर दिया था। उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती देते हुए दोषी ने शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटाया।

शीर्ष अदालत ने कहा कि अन्य आरोपियों को बरी करना चुनौती के अधीन नहीं है और यह अंतिम रूप ले चुका है।

अभियोजन पक्ष के अनुसार घटना फरवरी 1983 में हुई थी जब फसल चराने के मुद्दे पर हाथापाई हुई थी। इस हाथापाई में एक व्यक्ति को चोट आयी थीं और जांच के दौरान उसकी मृत्यु हो गई थी।

 

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