नयी दिल्ली, एजेंसी। उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को उस याचिका को खारिज कर दिया जिसमें उत्तर प्रदेश में कथित तौर पर संवैधानिक तंत्र ध्वस्त होने और बढ़ते अपराध का हवाला देकर वहां राष्ट्रपति शासन लागू करने का आग्रह किया गया था। शीर्ष अदालत ने याचिकाकर्ता-अधिवक्ता पर जुर्माना लगाने की चेतावनी दी और उनसे अन्य राज्यों के अपराध के रिकॉर्ड पर शोध से जुड़े सवाल पूछे।

प्रधान न्यायाधीश एस ए बोबडे और न्यायमूर्ति ए एस बोपन्ना और न्यायमूर्ति वी रामासुब्रमण्यम की पीठ ने याचिकाकर्ता-अधिवक्ता सीआर जया सुकिन को बताया कि वह जो दावे कर रहे हैं उसके संदर्भ में कोई शोध नहीं है और पूछा कि उनके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन कैसे हो रहा है। सुकिन ने राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) और राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) के आंकड़ों का हवाला देते हुए कहा कि उन्होंने शोध किया है और उत्तर प्रदेश में अपराध का ग्रॉफ बढ़ा है। पीठ ने कहा, “आपने कितने राज्यों में अपराध के रिकॉर्ड का अध्ययन किया? क्या आपने अन्य राज्यों के अपराध रिकॉर्ड का अध्ययन किया? अन्य राज्यों में अपराध रिकॉर्ड पर आपका शोध क्या है? हमें दिखाइये कि आप किस आधार पर यह कह रहे हैं।” न्यायालय ने कहा कि उनके द्वारा किये गए दावों के संदर्भ में कोई शोध नहीं किया गया। पीठ ने उनकी याचिका खारिज करते हुए कहा, “अगर आप और बहस करेंगे तो हम आप पर भारी जुर्माना लगाएंगे।” वीडियो कॉन्फ्रेंस के जरिये हुई सुनवाई में खुद पेश हुए सुकिन ने आरोप लगाया कि उत्तर प्रदेश में पुलिस द्वारा गैर न्यायेतर हत्याओं समेत गैरकानूनी और मनमाने तरीके से हत्याएं की जा रही हैं। उन्होंने आरोप लगाया कि राज्य में ऐसी स्थितियां बन गई हैं जिसमें उत्तर प्रदेश सरकार को संविधान के प्रावधानों के अनुरूप बने रहने की इजाजत नहीं दी जा सकती। उन्होंने याचिका में दावा किया, “उत्तर प्रदेश में संविधान के अनुच्छेद 356 को लागू किया जाना भारतीय लोकतंत्र और राज्य के 20 करोड़ लोगों को बचाने के लिये जरूरी है।”

 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *