नई दिल्ली: महंगा पेट्रोल-डीजल खरीद रहे लोगों के लिए टेंशनभरी खबर है। अब बिजली का बिल भी बढ़ने वाला है। केंद्रीय विद्युत मंत्रालय चाहता है कि बढ़े हुए खर्चे के मद्देनजर बिजली वितरण कंपनियां (Power Bill 2022) समय से अपना टैरिफ बढ़ाएं। अगर राज्य इस पर अमल करते हैं तो महंगे ईंधन से परेशान परिवारों पर अतिरिक्त बोझ पड़ेगा। एक संसदीय समिति के नोट में देरी से या अपर्याप्त टैरिफ रीविजन का जिक्र किया गया है, जिससे नुकसान हो रहा है। नोट में कहा गया है, ‘टैरिफ को लेकर सिफारिश देर से होती है और ज्यादातर बार ऐसा देखा गया है कि राज्य विद्युत नियामक आयोग (SERC) समय से इस पर कदम नहीं उठाता… कई एसईआरसी ऐसे टैरिफ सेट करते हैं जो खर्चे में दिखाई नहीं देते हैं। यह अंतर रेवेन्यू गैप या रेगुलेटरी एसेट्स के तौर पर दिखता है। यह निरर्थक है क्योंकि वितरण कंपनियां उसे रिकवर नहीं कर सकती हैं।’
राज्यों का हाल
नोट में कहा गया कि 36 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में से 17 ने मार्च 2021 से पहले 2021-22 के लिए टैरिफ आदेश जारी किया और 12 ने अप्रैल-नवंबर 2021 में ऐसा किया और सात राज्यों ने किया ही नहीं। नोट में आरोप लगाया गया है कि वितरण कंपनियों के सामने कैश का संकट होता है क्योंकि राज्य सरकार की ओर से छूट का पेमेंट देर से किया जाता है। इसके साथ-साथ खस्ताहाल बिलिंग और कलेक्शन में ढिलाई के चलते ऐसी स्थिति बनती है। कैश संकट के चलते वितरण कंपनियों को ज्यादा कर्ज लेना पड़ता है और इससे उनका बोझ बढ़ता है और आखिर में ऑपरेशन लागत बढ़ जाती है।
सब्सिडी के पैसे में भी देरी
नोट में साफ कहा गया है कि राज्य ग्राहकों को विभिन्न श्रेणियों में सब्सिडी की घोषणा करते हैं और वितरण कंपनियों को उसी हिसाब से छूट वाली दर पर बिजली आपूर्ति का निर्देश दिया जाता है। हालांकि राज्य की ओर से समय पर उस सब्सिडी का पूरा पैसा नहीं दिया जाता।
बिजली वितरण कंपनियों के खस्ताहाल होने की 5 वजहें
- टैरिफ में खर्च नहीं जुड़ता, आम तौर पर ऐसा देर से होता है। 17 राज्यों-केंद्रशासित प्रदेशों ने वित्त वर्ष 2022 के लिए ऑर्डर मार्च 2021 से पहले जारी किया था। 12 ने अप्रैल-नवंबर में और 7 ने जारी ही नहीं किया।
- घाटे से कर्ज बढ़ता है और ब्याज ज्यादा देना पड़ता है।
- सरकारी विभागों का बकाया भी बढ़ता जाता है। कुल मिलाकर देखें तो इनका 59,489 करोड़ रुपये बकाया है। इसमें सबसे खराब स्थिति में तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र और कर्नाटक हैं।
- बिलिंग और कलेक्शन एक बड़ी समस्या है।
- सब्सिडी दी जाने लगती है लेकिन राज्यों की ओर से भुगतान में काफी देर होती है।