लेखक: पं. विजयशंकर मेहता

कहानी – रामायण की एक घटना है। वानर सेना सीता की खोज कर रही थी। उस समय संपात्ति नाम के एक गिद्ध ने वानरों से कहा, ‘मैं यहां से देख सकता हूं कि लंका में रावण ने सीता जी को कहां रखा है। सौ योजन का समुद्र लांघकर आपको लंका जाना पड़ेगा। जो जा सके, वो चला जाए।

वानर सेना में द्वैत, मयंद, सुक्षेण जैसे कई बलवान वानर थे, लेकिन इन सभी ने अपनी-अपनी सीमाएं बताईं। वानरों ने कहा, ‘सौ योजन का समुद्र तो नहीं लांघ सकते।’ किसी ने कहा अस्सी योजन, किसी ने कहा नब्बे योजन का समुद्र लांघ सकते हैं। अंगद उस दल का नेतृत्व कर रहे थे, उन्होंने कहा, ‘मैं जा सकता हूं, लेकिन लौट कर नहीं आ सकता।’

हनुमान जी तो चुप ही थे। उस समय वानर सेना के सबसे बुढ़े व्यक्ति जामवंत ने कहा, ‘जब मैं युवा था और विष्णु जी ने वामन अवतार लिया था यानी छोटे बालक बने थे। राजा बलि से संकल्प कराने के बाद वे विराट हो गए थे। उन्होंने तीन पग धरती मांगी थी। एक पग में स्वर्ग और दूसरे में धरती ले ली थी। उस समय मैंने 21 बार परिक्रमा की थी। मैं इतना समर्थ था। समुद्र मंथन के समय मैंने बड़ी-बड़ी औषधियां लाकर समुद्र में डाली थीं, लेकिन अब मैं बूढ़ा हो गया हूं। इसलिए मैं भी समुद्र लांघ कर लंका नहीं जा सकता।’

जब सभी ने लंका जाने से मना कर दिया तो जामवंत ने हनुमान जी से कहा था कि लंका तुम जाओ।

सीख – जामवंत ने संदेश दिया है कि हर व्यक्ति की अलग-अलग उम्र में अलग-अलग काम करने की क्षमता होती है। उम्र गुजरने के बाद हमें अपनी क्षमता याद तो रखनी चाहिए, लेकिन फिर वैसा ही काम करने की कोशिश नहीं करनी चाहिए। जामवंत ने साफ कह दिया था कि मैं बूढ़ा हूं मैं ये काम नहीं कर सकता। हमें भी ये याद रखना चाहिए कि अगर हम उम्र के उस पड़ाव में हैं, जिसे बुढ़ापा कहते हैं तो उस समय ऐसा कोई जोखिम वाला काम नहीं करना चाहिए जो हमने युवा अवस्था में किया हो। बुढ़ापा मे शरीर कमजोर हो जाता है, नुकसान उठाना पड़ सकता है। हमें अपनी उम्र और शक्ति के अनुसार ही काम करना चाहिए।

 

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