अभी हेमंत ऋतु चल रही है जो की 21 दिसंबर को खत्म होगी। इस ऋतु के दौरान अगहन महीने के आखिरी दिन रहेंगे। हेमंत ऋतु के दौरान ठंड की शुरुआत होती है। इसे पितरों की ऋतु भी कहा गया है। इसलिए पुराणों में बताया गया है कि अगहन महीने में पितरों के लिए विशेष पूजा और दान करना चाहिए। ये दक्षिणायन की आखिरी ऋतु होती है। इसलिए अगहन महीने में इस ऋतु से जुड़ी पंरपराएं बनाई गई हैं। इसके बाद शिशिर ऋतु के साथ उत्तरायण भी शुरू हो जाता है।
दक्षिणायन की आखिरी ऋतु
ठंड के शुरुआती दिनों में हेमंत ऋतु होती है। इस दौरान खाई गई चीजों से शरीर की ताकत बढ़ने लगती है। इस ऋतु में सूर्य, वृश्चिक और धनु राशियों में रहता है। मंगल और बृहस्पति की राशियों में सूर्य के आ जाने से मौसम में अच्छे बदलाव होने लगते हैं। इसलिए भूख भी बढ़ने लगती है। इस ऋतु के खत्म होते ही सूर्य उत्तरायण हो जाता है। यानी उत्तरी गोलार्ध की ओर बढ़ने लगता है।
धार्मिक महत्व
हेमंत को पितरों की ऋतु भी कहा गया है। इस दौरान सूर्योदय से पहले उठकर स्नान और पूजा-पाठ करने से पितृ प्रसन्न होते हैं। इस ऋतु में सूर्य वृश्चिक और धनु राशि में रहता है। सूर्य की इस स्थिति के प्रभाव से धर्म और परोपकार के विचार आते हैं। साथ ही इस ऋतु के दौरान मन भी शांत रहता है। शीतल वातावरण में मन प्रसन्न भी रहता है मन की ये स्थिति पूजा-पाठ और भगवद भजन के लिए अनुकूल मानी गई है। इसलिए इस ऋतु में नदी स्नान और श्रीकृष्ण पूजा के साथ ही अन्य पूजा-पाठ एवं स्नान दान की परंपराए बनाई गई हैं।
सेहत के नजरिये से भी खास
हेमंत को रोग दूर करने वाली ऋतु कहा गया है। इस ऋतु में डाइजेशन अच्छा होने लगता है। भूख बढ़ने लगती है। साथ ही इस दौरान खाई गई सेहतमंद चीजें भी शरीर को जल्दी फायदा देती हैं। इसलिए इस ऋतु में शारीरिक ताकत बढ़ने लगती है।
इस ऋतु में ताजी हवा और सूर्य की पर्याप्त रोशनी सेहत के लिए फायदेमंद होती है। यही कारण है कि इस ऋतु में सुबह नदी स्नान का विशेष महत्व धर्म शास्त्रों में लिखा है। सुबह उठकर नदी में स्नान करने से ताजी हवा शरीर में स्फूर्ति का संचार करती है। इस प्रकार के वातावरण से कई शारीरिक बीमारियां खत्म हो जाती हैं।