डॉ. गोपाल नारायण आवटे
मैं और मेरे पति गरीबी का जीवन बिता रहे हैं। कई बार कोई अच्छा कारोबार करने का मन भी बनाया, लेकिन जेब में रुपया नहीं होने से टांय-टांय फिस्स होकर रह गए।
किस्मत का रोना हम दोनों नहीं रोते। प्रतिदिन, प्रतिपल प्रयास करने में विश्वास रखते हैं, लेकिन रुपया हमें चांद जमीन पर लाने जैसा दूभर कार्य लगता है। हालांकि इनके रिश्तेदार काफी अमीर हैं, लेकिन गरीब रिश्तेदार को कौन पहचानता है? संसार में भी दो जातियां रह गई हैं- एक अमीर की, दूजी गरीब की। तीसरी जाति यानी मध्यम श्रेणी का कोई भी स्थान संसार में नहीं है।
मैंने दो-तीन बार इनके अमीर रिश्तेदारों से रुपए उधार लेने की बात कही, लेकिन इन्होंने पुराने रिकार्ड की तरह घिसा-पिटा उत्तर दे दिया- क्यों उधार मांगकर अपनी इज्जत खराब करें।
मैंने कहा, हमें कोशिश करना चाहिए।
हम एक घंटे और मेहनत कर लेंगे, लेकिन रिश्तेदारों से भीख नहीं मांगे।
भीख नहीं, उधार रुपए।
उधारी और भीख दोनों में मेरे लिए कोई अंतर नहीं है। मुझे इन्होंने स्पष्टï कहा।
मैंने कहा, यदि बिना मांगे दे दिए तो क्या करोगे?
पागल हो गई हो… ऐसा कभी संभव हो सकता है…?
नेपोलियन ने कहा था कि- उसके शब्दकोष में असंभव शब्द है ही नहीं, हमने ज्ञान का बघार लगाते हुए कहा।
यदि कोई अपनी मर्जी से हमें काम करने या व्यवसाय हेतु देगा तो मैं लेने से इंकार नहीं करूंगा। पति महोदय ने हमें बताया।
ठीक है- ईश्वर जो करेगा ठीक करेगा- मैं कंकड़ेश्वरी मांई से प्रार्थना करूंगी। मैंने कहा तो पति महोदय जोरों से हंस दिये।
ये कंकड़ेश्वरी देवी कौन है?
तुम नहीं जानते? यह सबकी मंशा पूरी करती हैं, मैंने आंख बंद करके श्रद्धापूर्वक कहा
इनका नाम तो मैंने पहली बार सुना।
संतोषी माता का कभी सुना था?
कभी सुना था।
यह उन्हीं की सौतेली बड़ी बहन हैं बड़ी पहुंची हुईं- इनके हाथों में सिद्धियां हैं और भूत, पिशाच, प्रेत इत्यादि इनके दरबार में रहते हैं। हमने अपने ज्ञान का बखान करते हुए कहा।
तुम ठीक तो हो…? तुम्हें यह सब क्या हो गया है? पति महोदय थोड़े घबरा से गए। आज का इंसान जीवित से कम, भूत से अधिक डरता है।
दो दिनों बाद मैंने सुबह उठते ही इन्हें बताया कि- माता कंकड़ेश्वरी ने मुझे सपना दिया है और मुझसे कहा है- जो भी पूरब दिशा में तुम्हारा रिश्तेदार है उसके घर जाओ, वह तुम्हारी मनोकामना पूरी करेगा।
कब कहा?
एकदम सुबह-सुबह देवी मैया का सपना आया था।
पतिदेव सोच में पड़ गये। वह पूरब दिशा की ओर मुंह करके विचार करने लगे, फिर एकदम खुश होकर बेाले- उस तरफ तो तुम्हारे जेठ के ससुर का घर है, लेकिन वह तो बहुत ही कंजूस हैं।
अमीर हैं या नहीं? मैंने प्रश्र किया।
अरे! अमीर तो बहुत हैं, लेकिन वह तो एक फूटी छदाम भी नहीं देंगे, पतिदेव ने कहा।
देखो! देवी मैया का आदेश है, यदि हम नहीं गए तो वह नाराज हो जाएंगी, इसलिए हमें जाना ही पड़ेगा, बाकी का काम देवी मैया संभालेगी… जय हो कंकड़ेश्वरी देवी मैया की… मैंने श्रद्धा से आंखें बंद करके कहा।
हमने अगले दो घंटों में जाने की पूरी तैयारी कर ली जहां हमें जाना था वह परिवार बहुत घाघ था। पचास-एक लाख रुपया खर्च करना उनके लिए बड़ी मामूली बात थी, लेकिन आजकल इस जमाने में कौन किसकी मदद करता है? धक्ï-धक्ï दिल करते हुए हमने सामान बांधा और बेशर्मों की तरह अपने अमीर रिश्तेदार के घर जा पहुंचे।
एक घंटा दरबान ने मेन गेट पर रोककर रखा। मैं आंखें बंद किए प्रार्थना करती रही फिर अंदर रिश्तेदार होने के चलते बुलावा आ गया। बंगला क्या था, महल था। सब चकाचक। हम तो उस महल में मखमल पर टाट के पैबंद की तरह लग रहे थे। उन्होंने हमसे बैठने को भी नहीं कहा फिर भी पतिदेव वहां बैठ गए। मैंने अंदर महिलाओं के कक्ष में प्रवेश कर लिया। अंदर बादाम का हलवा, दूध, फल खाए जा रहे थे। मैंने अपनी पूरी बत्तीसी निकालकर हंसते हुए कहा- बड़ी ताई हम एक जजमान के यहां पूजा करने आए थे, तो सोचा कि आपसे भी मिलते चलें… मैंने जबर्दस्ती हंसते हुए कहा।
हूं- ठीक किया, बड़े रूखे स्वर में जेठजी के ससुर की पत्नी ने कहा।
नौकरानी से कहा गया- पानी पियें तो ले आओ।
मैंने साड़ी के पल्लू से पसीना पोंछा और कहा- क्यों नहीं… क्यों नहीं-पानी भी पी लूंगी, चाय भी लूंगी। मैंने ही…ही कर हंसते हुए कहा। बड़े घर की ससुरी ने बुझे मन से चाय लाने को कहा।
कमरा जैसे ही खाली हुआ। मैंने एक मिनट की देर किए बिना, तेज सांस से सूंघने का प्रयास किया और मेरे सामने बैठी अधेड़ अमीरन रिश्तेदार से कहा- बड़ी ताई एक राज की बात कहूं..?
क्या बात है? उन्होंने मुझे लंबी सांस लेते देख लिया था।
यहां परिवार में किसी के घुटने में दर्द है? और किसी को ब्लड प्रेशर की बीमारी के साथ-साथ शक्कर की बीमारी भी है….? मैंने कमरे को बहुत ध्यान से देखकर कहा।
अरे! तुझे कैसे मालूम? चौंककर बड़ी ताई ने प्रश्न किया।
बड़ी ताई मैं कंकड़ेश्वरी देवी की पूजा करती हूं। कुछ सिद्धियां भी प्राप्त हैं- वही बता रही हैं कि नट प्रेतन ने परिवार के किसी बड़े बुजुर्ग को परेशान कर रखा है…मैंने किसी जानकार की तरह कहा।
अरे तेरे बड़े तायाजी को दो और मुझे दो बीमारियां हैं- बड़ी ताई ने कहा।
मैंने घूमकर कमरे का एक चक्कर लगाकर कहा- बड़ी ताई पिछले तीन महीनों से फायदे में कमी, आमदनी में घाटा हो रहा है?
अरी – तू तो देवी है, तुझे ये सब कैसे मालूम?
मैंने हाथ जोड़कर आसमान की ओर प्रणाम करते हुए कहा, सब माता की कृपा है- बड़ी ताई यहां बहू का सुख कम है…?
नहीं री बहू तो मेरा बहुत ध्यान रखती है, बड़ी ताई ने मेरी बात काटते हुए कहा।
बड़ी ताई मैं कह रही हूं। बहू को सुख कम है। इसका अर्थ है वह मानसिक रूप से चिंता कर रही है-परेशान है.. मैंने अपने शब्दों को सुधारते हुए कहा।
सच कह रही है तू, मुन्ना (बहू का पति) का ध्यान उस पर कम, एक कोठेवाली पर अधिक है, बड़ी ताई ने रहस्य खोले।
इतने में चाय आ गई। बड़ी ताई ने नाराजी से भरे स्वर में नौकरानी से कहा- अरी नाश्ता तो साथ में लाती।
वह नौकरानी बड़बड़ाती नाश्ता लेने चली गई। मुझसे बड़ी ताई ने पूछा- बहू तो बता क्या करना होगा?
इतने में अचानक मुझे छींक आ गई- मैंने कहा- अपशगुन हो गया है बड़ी ताई- बड़ी पूजा करनी होगी…।
कहां करनी होगी…?
मर्ज यहीं है तो दवाई भी यहीं होगी।
तो तू पूजा कर दे बहू।
अरे बड़ी ताई मैं तो कर देती, लेकिन वह तो जाने की जिद किए बैठे हैं। मैंने पतिदेव की तरफ इशारा किया जो बड़े ताया के साथ ड्राइंग रूम में बैठे हुए थे।
अरे मैं मना लूंगी उसे- तू तो पूजा करके जाना। एक-एक बात सच बताई बहू तूने। बड़ी ताई ने कहा।
मैंने एक लिस्ट पूजा सामग्री की बना दी। एक घंटे में सामान आ गया। मैंने एक कमरे में बैठकर पूजा प्रारंभ कर दी। पूरे दो दिनों तक मेरी और पतिदेव की बड़ी भारी आवभगत हुई। भाग्य का खेल देखें कि शेयर बाजार में उछाल आ गया और एक दिन में ही लाखों का लाभ उन्हें हो गया। पूजा इतनी चमत्कारी होगी, इसकी कल्पना मैंने कभी की ही नहीं थी। मैं पूजा करके कमरे से बाहर निकली तो ढेर सारे कपड़े, मिठाई वगैरह रखी थी। मैंने उन्हें छुआ और कहा- इसे गरीबों में बंटवा देना। मैं पूजा-पाठ का कुछ लेती नहीं हूं वरना कंकड़ेश्वरी माता नाराज हो जाएंगी।
इसका प्रभाव भी बहुत अधिक पड़ा। जाते समय किस मुंह से उधार मांगू सोच रही थी कि बड़े ताया ने एक लिफाफा मुझे दिया और कहा- दामाद ने मुझसे कुछ मांगा नहीं, लेकिन ऐसे पूजा-पाठ से गृहस्थी कैसी चलाओगी? कुछ धंधा-पानी करो इसलिए पचास हजार रुपए तुम्हें दे रहा हूं- बड़े तायाजी ने कहा।
मेरे पतिदेव ने मना किया, लेकिन वह नहीं माने और अपनी कार से हमें घर के लिए रवाना किया। मैंने लौटते हुए बड़ी ताई से कहा- अगली बार एक बड़ी पूजा और कर दूंगी बहू के लिए…।
बड़ी सद्ïभावना से हम विदा हुए। घर आकर हमने अपने व्यवसाय को फैलाया- ईमानदारी से मेहनत की और व्यापार चल निकला। रुपए एकत्र करके हम दोनों बड़ी ताई के घर जब रुपए लौटाने गए तो उनके घर की स्थिति बहुत खराब हो चुकी थी। विश्व बाजार की आर्थिक मंदी की मार उन पर भी पड़ी थी। उन्होंने मुझे देखा तो खुश हो गईं। कहने लगीं- बहू तू अच्छी आई- एक पूजा कर दे तेरी कंकड़ेश्वरी देवी प्रसन्न हो जाए…।
मैंने हाथ जोड़कर क्षमा मांगी और कहा- बड़ी ताई कर्म ही पूजा है। हमें जो आपने पचास हजार दिए थे वह लौटाने आई हूं और यदि इसके अलावा भी कोई मदद की जरूरत हो तो अवश्य बताएं। आपने बुरे समय में हमारी मदद की थी।
कभी और भी आर्थिक मदद की जरूरत हो तो हम आपके लिए उपलब्ध हैं- मैंने कहा।
बड़ी ताई के कुछ समझ में नहीं आया, लेकिन बहू जब गोद में मुन्ना को लेकर आई और कहने लगी- बड़ी जिज्जी आपके ये पचास हजार हमारे लिए पचास लाख के बराबर हैं- हम आपका एहसान कभी नहीं भूलेंगे।
अरे पगली- एहसान तो तुमने किया था, कहकर मैं गले से लिपट गई।
हम दोनों उनकी दी गई राशि लौटाकर अपने घर लौट आए।
अत: मैं आपको बता दूं कि ये कंकड़ेश्वरी देवी उसी तरह एक काल्पनिक माता थीं, जैसी हजारों धर्म में और काल्पनिक देवी माताएं हैं। इनके नाम से मूर्ख बनाया जा सकता है और पेट भरा जा सकता है। लेकिन जीवन में मैंने एक बार गलती की और उसके बाद कभी नहीं दोहराई। न कभी ऐसी देवी कंकड़ेश्वरी का नाम ही जुबान पर लाई…।