कहानी – सृष्टि का निर्माण करना था। शिव जी, ब्रह्मा जी और विष्णु जी में बातचीत चल रही थी। शिव जी ने इन दोनों से कहा, ‘हम अपने-अपने कर्तव्यों को बांटकर ही सृष्टि का निर्माण कर सकेंगे। मेरे पांच कर्तव्य हैं। पहला, संसार की रचना करना। दूसरा, उसका पालन करना। तीसरा, फिर उसका विनाश करना। चौथा, कुछ लोगों का उद्धार करना है और पांचवां, अनुग्रह करना यानी मोक्ष देना।’

शिव जी ने आगे कहा, ‘ये पांच मेरे कर्तव्य हैं, चूंकि हमें सृष्टि बनाना है और इसे चलाना भी है, इसलिए हम इन कामों में बंटवारा कर लेते हैं। सृजन यानी रचना का काम ब्रह्मा जी संभालें, विष्णु जी पालन करें और जब सृष्टि की फिर से रचना करनी होगी, उस समय मैं इसका संहार करूंगा।’

इस तरह से सृष्टि आज तक चल रही है। इन पांच बातों का संबंध पंच तत्वों से भी है। पृथ्वी यानी निर्माण, पालन यानी जल, संहार यानी अग्नि, उद्धार करना यानी पवन, मोक्ष यानी आकाश। इन पांच बातों से प्रकृति बनती है, जिसे ये त्रिदेव चलाते हैं और आज्ञा होती है शक्ति की। यही पूरे आध्यात्म का विज्ञान है।

सीख – इन तीन देवताओं की बातचीत हमें ये शिक्षा देती है कि जब भी कोई बड़ा काम करना हो तो काम का बंटवारा कर लेना चाहिए। सही ढंग से बंटवारा हो जाए और कर्तव्य पालन की भावना जाग जाए तो बड़े-बड़े लक्ष्य हासिल किए जा सकते हैं।

लेखक: पं. विजयशंकर मेहता

 

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