आज वेलेंटाइन्स डे (14 फरवरी) है। इस दिन दुनियाभर में प्रेमियों के खास महत्व रखता है। प्रेम एक ऐसी अनुभूति है, जिसका असर व्यक्ति की आत्मा तक होता है। जो लोग संदेह करते हैं, वे प्रेम नहीं कर पाते हैं, क्योंकि प्रेम और संदेह एक जगह नहीं रह सकते हैं। यहां जानिए प्रेम और जीवन साथी से जुड़े कुछ ऐसे किस्से, जिनमें लव लाइफ को बेहतर बनाने के सूत्र छिपे हैं…

जीवन साथी के हाव-भाव देखकर समझ सकते हैं मन की बात

रामायण में श्रीराम और सीता से जुड़ा किस्सा है। केवट ने श्रीराम, सीता और लक्ष्मण को नदी पार करवा दी थी। उस समय श्रीराम के पास केवट को देने के लिए कुछ नहीं था। सीता जी ने श्रीराम के हाव-भाव देखकर ये बात समझ ली थी। सीता जी ने अपनी अंगूठी उतार को केवट को भेंट कर दी थी। इस किस्से का संदेश यही है कि हमें अपने जीवन साथी के मन की बात हाव-भाव से ही समझ लेनी चाहिए।

साथी ही सलाह मानें या न मानें, लेकिन मजाक न उड़ाएं

सीता हरण के बाद श्रीराम वानर सेना के साथ लंका पहुंच गए थे। उस समय मंदोदरी ने रावण को समझाया कि वह श्रीराम से बैर न करें और सीता को सकुशल लौटा दें, लेकिन रावण ने मंदोदरी की बात नहीं मानी। रावण ने मंदोदरी की सही सलाह नहीं मानी, उल्टा उसका मजाक उड़ाया। रावण ने मंदोदरी का अपमान करते हुए कहा कि तुम औरतों में आठ अवगुण होते हैं। ये आठ अवगुण हैं – साहस, झूठ, चंचलता, छल, डरपोकपन, मूर्खता, अपवित्रता और निर्दयता।

रावण की बात सुनकर मंदोदरी कहती हैं कि स्त्रियों का मजाक उड़ाकर आप कोई बुद्धिमानी नहीं कर रहे हैं। मंदोदरी की बातें सुनकर रावण हंसा और वहां से चला गया। सही सलाह न मानने की वजह से रावण और उसके कुल का अंत हो गया।

इस प्रसंग की सीख यह है कि जीवन साथ की सलाह पर ध्यान देना चाहिए और साथी की बात का मजाक न उड़ाएं।

जीवन साथ पर अविश्वास न करें

शिव जी और सती माता ने श्रीराम को सीता के वियोग में भटके हुए देखा तो सती माता ने सोचा कि शिव जी के श्रीराम को आराध्य मानते हैं, लेकिन ये तो एक सामान्य इंसान की तरह भटक रहे हैं। जब ये बात सती ने शिव जी को बताई तो शिव जी ने कहा कि ये सब श्रीराम की लीला है। उन पर संदेह नहीं करना चाहिए।

शिव जी ने सती को समझाया, लेकिन सती को शिव जी की बात पर विश्वास नहीं हुआ। तब सती ने श्रीराम की परीक्षा लेने की योजना बनाई। सती ने सीता जी का रूप धारण किया और श्रीराम के सामने पहुंच गईं। श्रीराम ने देवी को देखते ही प्रणाम किया और कहा कि देवी आप अकेली आई हैं, मेरे प्रभु शिव जी कहां हैं। ये सुनते ही सीता बनी हुई सती को समझ आ गया कि श्रीराम भगवान के अवतार ही हैं।

जब सती अपने संदेह का समाधान करके शिव जी के पास पहुंची तो शिव जी ने जान लिया था कि सती ने उनकी बात पर भरोसा नहीं किया और श्रीराम की परीक्षा ली है। इस बात से क्रोधित होकर शिव जी सती का मानसिक त्याग कर दिया था। इस प्रसंग की सीख यह है कि जीवन साथी की बात पर अविश्वास नहीं करना चाहिए, वर्ना दिक्कतें आ सकती हैं।

 

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