लेखक: पं. विजयशंकर मेहता

कहानी – श्रीराम अपनी लीला समेटकर इस संसार को छोड़कर जा रहे थे। उस समय श्रीराम को चिंता हो रही थी कि मेरे जाने के बाद मेरे भक्तों की रक्षा कौन करेगा? रावण रूपी दुर्गुण भक्तों को परेशान करते ही रहेंगे। उन्होंने हनुमान जी की ओर देखा तो हनुमान जी ने श्रीराम से एक वरदान मांगा कि जब तक इस संसार में आपकी कथाएं लोग सुनते रहेंगे, तब तक मैं इस संसार में जीवित रहूं।

श्रीराम ने तुरंत ही ये वरदान हनुमान जी को दे दिया। हनुमान जी आज भी जीवित रूप में हैं। त्रेता युग के बाद द्वापर युग आया। हनुमान जी द्वापर युग में हिमालय के गंधमादन पर्वत पर रह रहे थे। स्वर्ग का रास्ता वहीं से होकर जाता था।

महाभारत काल में एक दिन भीम अपनी पत्नी द्रौपदी के लिए सुगंधित फूल लेने गंधमादन पर्वत जा रहे थे। रास्ते में बूढ़े वानर की पूंछ दिखाई दी तो भीम ने अपने बल पर घमंड करते हुए कर्कश वाणी में कहा, ‘अपनी पूंछ हटाओ।’

हनुमान जी समझ गए कि भीम को अपनी शक्ति पर घमंड हो गया है। उन्होंने कहा, ‘तूम खुद हटा दो।’

इसके बाद भीम ने कोशिश की, लेकिन वे वानर की पूंछ हटा नहीं सके। हनुमान जी ने भीम को अपनी पूंछ में लपेटकर गिराया तो भीम ने कहा, ‘कृपया बताएं आप कौन हैं?’

हनुमान जी ने अपना परिचय दिया तो भीम ने क्षमा मांगते हुए कहा, ‘आप स्वयं मुझे पहले ही बता देते, आपने मेरी पिटाई क्यों की?’

हनुमान जी बोले, ‘भीम मैंने तुम्हारी नहीं, तुम्हारे अहंकार की पिटाई की है। अहंकारी व्यक्ति को अगर सफलता भी मिलेगी तो अधूरी ही मानी जाएगी।’

सीख – इस प्रसंग में हनुमान जी ने संदेश दिया है कि हमें कभी भी अपनी शक्ति पर घमंड नहीं करना चाहिए। जो लोग बलशाली हैं, उन्हें बच्चों की, महिलाओं की और बूढ़ों की रक्षा करनी चाहिए। अगर हम समर्थ हैं तो विनम्र रहें और दूसरों की मदद करें।

 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *