पूरे साल में सूर्य और चंद्रमा की गति के मुताबिक दो भाग होते हैं। एक उत्तरायन और दूसरा दक्षिणायन। इन दो अयन के भी तीन-तीन हिस्सों में 6 ऋतुएं होती हैं। शिशिर (जनवरी-फरवरी), बसंत (मार्च -अप्रैल ), ग्रीष्म (मई-जून), वर्षा (जुलाई-अगस्त), शरद (सितंबर-अक्टूबर) और हेमंत (नवंबर-दिसंबर)।
तीन तरह के मौसम के बदलाव भी इन ऋतुओं से संबधित होते हैं। प्रकृति इन ऋतुओं के हिसाब से ही फल, फूल, सब्जियां उत्पन्न करती हैं। ऋतुओं के अनुसार जीवन जीने से इंसान खुश रहता है और उसे निरोगी जीवन और लंबी उम्र मिलती है। राशि के अनुसार भी लोगों पर इन ऋतुओं का असर पड़ता है।
वर्षा ऋतु में पीना चाहिए उबला पानी
ये ऋतु बीमारियों को जन्म देने वाली होती है। इसी दौरान सूर्य मिथुन राशि में भी रहता है इस वजह से रोगों का संक्रमण ज्यादा बढ़ता है। इसलिए इस समय उबला हुआ पानी पीना चाहिए। बारिश का पानी ग्रीष्म ऋतु से प्रभावित जमीन पर पड़ता है, जिससे दूषित भाप बनती है। इस ऋतु में गेहूं, मूंग, दही, अंजीर, छाछ, खजूर आदि का सेवन करना लाभदायक होता है। इस ऋतु में कर्क और सिंह राशि वाले लोगों को ज्यादा ऊर्जा मिलती है।
वर्षा ऋतु में शुरू होता है चातुर्मास
वर्षा ऋतु में आषाढ़ी पूर्णिमा से चातुर्मास शुरू होता है जो कि कार्तिक पूर्णिमा तक रहता है। वैदिक प्रथा में आषाढ़ से आसोज तक का समय चातुर्मास कहलाता है। चातुर्मास का समय आत्म-वैभव को पाने और अध्यात्म की फसल उगाने की दृष्टि से अच्छा माना जाता है। इसी कारण से पदयात्रा करने वाले साधु-संत भी वर्षा ऋतु के दौरान एक जगह रहकर प्रवास करते हैं और उन्हीं की प्रेरणा से धर्म जागरण होता है।
सूर्य की राशि बदलने से होता है ऋतुओं का निर्धारण
सूर्य की गति दो तरह से होती है निरयन और सायन। सूर्य का महीनेभर में एक राशि में गोचर पूरा होता है। दो राशियों में सूर्य की स्थिति से एक ऋतु का निर्धारण होता है। 19 अप्रैल से 21 जून तक वृष और मिथुन राशि में के दौरान ग्रीष्म ऋतु हुई। जबकि सूर्य कर्क राशि में 21 जून को आ गया। उस दिन से दक्षिणायन के साथ वर्षा ऋतु भी शुरू हो गई है।
22 अगस्त तक वर्षा ऋतु रहेगी। इसके बाद कन्या और तुला राशि में होने पर शरद ऋतु होगी, जो 22 अगस्त से 23 अक्टूबर तक रहेगी। वृश्चिक और धनु राशि में होने पर 23 अक्टूबर से 21 दिसंबर तक हेमंत ऋतु और उसके बाद मकर और कुंभ राशि में रहने पर 21 दिसम्बर से 18 फरवरी तक शिशिर ऋतु होगी।