प्रकृति बड़ी दयालु है। इधर बच्चे ने जन्म लिया, उधर मां के दूध से स्तन भर गए। नवजात संपन्न घर में है या निर्धन। मां के आंचल में, प्रकृति ने बच्चे के जन्म के साथ ही उसके लिए मुफ्त में संतुलित भोजन की व्यवस्था कर दी। कुछ माताओं ने प्रकृति की इस अमृत समान अनुपम देन को अपने नौैनिहालों तक पहुंचाया तो कुछ ने अपने शिशुओं को इससे वंचित रखा।
प्रसव के तुरन्त पश्चात् मां को अपने नवजात शिशु को स्तनपान कराना चाहिए। शिशु के जन्म के तुरन्त पश्चात् मां के स्तनों से कोलोस्ट्रम (हल्के पीले रंग का गाढ़ा दूध) निकलता है। यह कोलोस्ट्रम प्रसव के तीन से 6 दिन तक रहता है। कोलोस्ट्रम में एन्टीबॉडीज और श्वेत रुधिर कणिकाएं प्रचुर मात्रा में होती हैं। हालांकि कोलोस्ट्रम कम मात्रा में निकलता है, लेकिन प्रोटीन से भरपूर होने के कारण यह नवजात के लिए अत्यन्त लाभकारी होता है। कोलोस्ट्रम पौष्टिकता से भरपूर होता ही है, साथ ही इसमें शिशु को रोगों के संक्रमण से बचाने वाले तत्व भी होते हैं, इसीलिए कोलोस्ट्रम को नवजात का पहला प्रतिरक्षण कहा जाता है।
नवजात के लिए मां का दूध रोगाणु रहित पौष्टिकता से भरपूर सुपाच्य होता है। अत्यन्त कोमल नवजात को प्रथम चार माह तक केवल मां का ही दूध दिया जाना चाहिए। इसके पश्चात् भी जितना अधिक समय तक संभव हो सके, स्तनपान कराना चाहिए। मां के दूध में शिशु के लिए आवश्यक पानी, प्रोटीन, वसा, लैक्टोज और लवण उचित मात्रा में होते हैं। मां का दूध पीने वाले बच्चों को किसी भी मौसम में अलग से पानी देने की आवश्यकता नहीं।
मां के दूध में कुछ ऐसे तत्व (इम्यूनोग्लोब्यूलिन्स, लैक्टोफेरिन, लाइसोजाइम आदि) पाए जाते हैं, जो बच्चे को विभिन्न रोगों के संक्रमण से बचाते हैं। मां का दूध पीने वाले बच्चों में रोग प्रतिरोधक शक्ति का विकास होता है और बच्चा जल्दी-जल्दी बीमार नहीं पड़ता।
बच्चे के मस्तिष्क के विकास में आवश्यक कुछ एमिनो एसिड मां के दूध में प्रचुर मात्रा में होते हैं। मां का दूध पीने वाले बच्चे ऊपर का दूध पीने वाले बच्चों की अपेक्षा मानसिक और शारीरिक रूप से अधिक स्वस्थ होते हैं। मां का दूध पीने वाले बच्चे खून की कमी (एनीमिया) से ग्रसित नहीं होते।
ऊपर का दूध पीने वाले बच्चों में गैस्ट्रोएन्ट्राइटिस और श्वसन तंत्र संबंधी संक्रमण आम बात है, जबकि मां का दूध पीने वाले बच्चों को ये बीमारियां कम ही सताती हैं। एग्जीमा जैसे त्वचा के रोग डिब्बा बंद दूध पीने वाले बच्चों को अधिक सताते हैं। मां का दूध पीने वाले बच्चों को एलर्जी की संभावना भी कम होती है।
हमारे देश में नवजात शिशुओं की मृत्यु का मुख्य कारण इंफेक्शन और कुपोषण है। ऊपर का दूध पीने वाले बच्चों को बोतल के ठीक से स्टरलाईज न होने के कारण गैस्टोएन्ट्राइटिस हो जाती है, जबकि मां के दूध के साथ इस तरह का कोई खतरा नहीं। यदि बच्चे को मां का दूध प्रचुर मात्रा में मिलता रहे तो बच्चे में कुपोषण का खतरा भी नहीं रहता। स्तनपान से शिशु और मां के बीच एक भावनात्मक रिश्ता भी कायम होता है, जो समाज के स्वास्थ्य के लिए जरूरी है। जो माताएं अपने शिशुओं को स्तनपान नहीं करातीं, उनमें स्तन और जनन अंगों के कैंसर होने की संभावना बढ़ जाती है। स्तनपान एक प्राकृतिक परिवार नियोजन का साधन भी है, क्योंकि स्तनपान के दौरान गर्भ ठहरने की संभावना अपेक्षाकृत कम रहती है। (वि0फी0)