माता-पिता का यथायोग्य सम्मान करना चाहिए। भगवान प्रसन्न होते हैं आपसे, अगर आप अपने माता-पिता की बात मानें, उनकी सेवा करें। भगवान को सबका पिता कहा गया है। लेकिन अगर आप जागतिक माता-पिता को प्रसन्न नहीं कर पाएंगे तो आध्यात्मिक पिता अर्थात भगवान को कैसे प्रसन्न कर पाएंगे? यदि आप माता-पिता को आप प्रसन्न नहीं कर पाते तो कोई गुरु-सद्गुरु आपको सन्मार्ग पर नहीं ले जा सकता। अगर वे प्रसन्न नहीं हैं तो भगवान भी प्रसन्न नहीं होंगे।
तिब्बत के कलियांग प्रांत के एक गांव में वानचुंग और उसका बेटा सानचुंग रहते थे। उस देश के राजा की आज्ञा से बूढ़े लोगों को परिवार में रहने की अनुमति नहीं थी। परिवार के सदस्य उन्हें पहाड़ों पर अकेले छोड़ देते थे। पहाड़ों पर ही भूख-प्यास या रोगों से तड़प-तड़प कर वे मर जाते थे।
जब वानचुंग बूढ़ा हो गया, तब सानचुंग उसे पीठ पर लाद कर पहाड़ की ओर चल पड़ा। अपने पिता को इस प्रकार पहाड़ पर छोडऩे के लिए वह विवश था। सानचुंग जिस पहाड़ी रास्ते पर चल रहा था वह उसके लिए अपरिचित था। सानचुंग की पीठ पर चढ़ा हुआ बूढ़ा वानचुंग अपने हाथ फैला कर पेड़ों की टहनियां तोड़ता रहा और उन्हें जमीन पर गिराता रहा।
पहाड़ पर पहुंच कर सानचुंग ने एक झोंपड़ी बनाई। अपने पिता को बिठाकर वह चलने लगा। पुत्र और पिता दोनों ही रोने लगे। रोते-रोते पिता बोला, ‘‘बेटे तुम रास्ता न भूल जाओ, इसलिए पहचान के लिए मैं पूरे रास्ते पर पेड़ों की टहनियां गिराता आया हूं। तुम उन्हें देखते हुए घर पहुंच जाना।’’
रोता-बिलखता सानचुंग घर पहुंचा। दो दिनों तक वह लेटा-लेटा रोता ही रहा। उसे यह बात भूलती नहीं थी कि पहाड़ पर पिता को असहाय दशा में छोडऩे वाले कृतघ्न पुत्र के लिए भी वानचुंग को चिंता थी कि कहीं वह रास्ता न भूल जाए। फिर एक रात वह चोरी-चोरी अपने पिता को घर ले आया। दूसरे दिन वह राजा के पास गया और बोला, ‘‘मैं अपने पिता को घर वापस ले आया हूं। उनके बिना जीने की बजाय आपकी आज्ञा का उल्लंघन करने का दंड भुगतने के लिए मैं तैयार हूं। मैं आपके सामने दंड पाने के लिए खड़ा हूं।’’
सानचुंग के पितृ-प्रेम से प्रभावित होकर राजा ने बूढ़े लोगों को पहाड़ पर छोड़ आने का अपना आदेश भी वापस ले लिया।
