नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को केंद्र सरकार से घरेलू हिंसा का शिकार हुई महिलाओं के लिए कानूनी मदद और शेल्टर होम्स के इंतजाम को लेकर जवाब मांगा है। जस्टिस यूयू ललित और जस्टिस रविंद्र भट की बेंच ने केंद्र सरकार, महिला एवं बाल विकास मंत्रालय और सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय को नोटिस जारी कर 6 दिसंबर तक जवाब दाखिल करने के लिए कहा है।
सर्वोच्च न्यायालय में हाल ही में घरेलू हिंसा का शिकार हुई महिलाओं को कानूनी मदद और उनके लिए शेल्टर होम्स की मांग को लेकर एक याचिका दाखिल हुई थी। इसी पर सोमवार को कोर्ट ने सुनवाई की। मामले पर टिप्पणी करते हुए कोर्ट ने कहा, “अभी हम मामले में प्रतिवादी एक से तीन को नोटिस जारी कर रहे हैं। हम फिलहाल राज्यों को नोटिस नहीं दे रहे, वर्ना यह एक मेला जैसा बन जाएगा। इसके बाद हम निगरानी के लिए मामले को केंद्र सरकार को को सौंप सकते हैं।”
सुप्रीम कोर्ट में दायर पीआईएल में क्या?
सुप्रीम कोर्ट में जो याचिका दाखिल हुई है, उसे एक अपंजीकृत संस्था ‘वी द वीमेन ऑफ इंडिया ‘की तरफ से दायर किया गया है। इस एनजीओ ने देशभर में वैवाहिक घरों में दुर्व्यवहार सहने वाली महिलाओं को कानूनी मदद और आश्रय गृह मुहैया कराने के लिए घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम (Protection of Women from Domestic Violence Act) के तहत बुनियादी ढांचे में व्यापक पैमाने पर मौजूद खामियों को दूर करने के लिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।
इसके अलावा याचिका में पति और ससुराल वालों के खिलाफ शिकायत दर्ज कराने के बाद महिलाओं को आश्रय और प्रभावी कानूनी मदद दिए जाने की मांग की गई है। याचिका में कहा गया है कि 15 साल से अधिक समय पहले DV अधिनियम लागू होने के बावजूद घरेलू हिंसा भारत में महिलाओं के खिलाफ सबसे आम अपराध है। साल 2019 के लिए राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) की रिपोर्ट के आंकड़ों का हवाला दिया गया है कि ‘महिलाओं के खिलाफ अपराध’ के तहत वर्गीकृत 4.05 लाख मामलों में से 30% से अधिक घरेलू हिंसा के मामले थे।
याचिका में नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे की रिपोर्ट का जिक्र करते हुए का गया कि 86 फीसदी महिलाएं जो घरेलू हिंसा का शिकार होती हैं, वे कभी मदद ही नहीं मांगतीं। पीआईएल में केंद्र के साथ सभी राज्यों, केंद्र शासित प्रदेशों को पार्टी बनाने की मांग की गई है।

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