नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को दिल्ली हाईकोर्ट से गुजरात कैडर के आईपीएस अधिकारी राकेश अस्थाना की दिल्ली पुलिस आयुक्त के रूप में नियुक्ति को चुनौती देने वाली याचिका पर दो सप्ताह के भीतर फैसला लेने के लिए कहा है।
चीफ जस्टिस एन वी रमण, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस सूर्यकांत की पीठ ने कहा कि चूंकि हाईकोर्ट में एक याचिका पहले ही दायर की जा चुकी है इसलिए उसे इस विषय पर अपना फैसला देने दें।
शीर्ष अदालत ने कहा कि सीपीआईएल एनजीओ की ओर से अधिवक्ता प्रशांत भूषण द्वारा दायर एक जनहित याचिका को उसके समक्ष लंबित रखने का फैसला करते हुए कहा कि वह हाईकोर्ट द्वारा इस विषय पर अंतिम निर्णय का इंतजार करना पसंद करेगी।
शुरुआत में चीफ जस्टिस ने कहा कि दो मुद्दे हैं। पहला, आस्थाना के सीबीआई निदेशक के पद पर चयन में उनकी भागीदारी और उनके विचार है और दूसरा, हाईकोर्ट में अस्थाना की दिल्ली पुलिस आयुक्त के रूप में नियुक्ति वाली याचिका का लंबित होना। मालूम हो कि चीफ जस्टिस ने तब सीबीआई प्रमुख के पद पर अस्थाना के नाम पर आपत्ति जताई थी।
वकील प्रशांत भूषण ने अपनी ओर से कहा, ‘चीफ जस्टिस अभी भी मामले की सुनवाई कर सकते हैं। उन्होंने कहा, ‘इस व्यक्ति को समायोजित करने के लिए हर नियम को ताक पर रख दिया गया। यह एक गंभीर मामला है। मैंने ऐसा मामला कभी नहीं देखा जहां सरकार ने ‘कानून के शासन’ का इस कदर खुला उल्लंघन किया। सेवानिवृत्ति से ठीक चार दिन पहले उन्हें एक पुलिस प्रमुख नियुक्त किया गया था। हाईकोर्ट के समक्ष याचिका के संबंध में भूषण ने कहा कि यह वास्तविक याचिका को खारिज करने के लिए सरकार की मिलीभगत से दायर एक याचिका है।
वहीं सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सवाल किया कि नियुक्ति से याचिकाकर्ता का कौन सा मौलिक अधिकार छीन लिया गया है। मेहता ने कहा कि जहां तक मिलीभगत में याचिकाओं के आरोप का संबंध है कम कहा जाना बेहतर है क्योंकि पेशेवर जनहित याचिकाकर्ता हैं जिन्होंने दौड़ में हारने वाले लोगों के इशारे पर इस तरह की परोक्ष रूप से याचिका दायर की है।
हाईकोर्ट ने मंगलवार को अस्थाना की नियुक्ति को लेकर 27 जुलाई के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई टाल दी थी।
